सच तो ये है दोस्तों पेड़ की ऊंची शाखा पे बैठनेवाला पंछी की मन में कभी ऐसी एक भावना नहीं होता कि जब तेज पवन चलेगा तो व गिरजायेगा। कोई ऐसा आशंका नहीं रहता उनकी मन में कारण बुलंद है उसकी आशा। अपनी मन में खुदकी पंखपर अखंड बिस्वास अपनी आप पे भरोसा जिसे हम self confidence कहते।
हर जीबन में लक्ष्य रहता मगर ये भी सच है दोस्तों की हर कोई में नहीं होता एक जैसा रहता बिभेदता। गन और स्वरूप की दृश्टिकोण से देखाजाए तो ये निर्धारित होता ब्यक्तिगत बिभेदता की आधार पे।जहां एक एहेम भूमिका ग्रहण करता ब्यक्ति की रुचि,समर्थता और अब -श्यक्ता। कभी कबार लक्ष्य कहो या फिर मंजिल निर्धारित होता स्वल्प या दीर्घ कालीन दृश्टिकोण से। जब जैसा रहता ब्यक्ति की आबश्यकता। ये सारे बातें एक ही बातपे निर्धारित होता व है अपनी आप पर प्रचंड बिस्वास। समर्थता और सक्ष्यमता पर भरोसा।
पहलेसे ही किसिम नहीं होता कोई भी क्ष्येत्र में संपूर्णता। सभी को करना पड़ता ढ़ेर सारे अद्यबसाय अपनी में लानेको व समर्थता या सक्ष्यमता। ये भी सच है कि ये अद्यबसाय की मात्रा हमेसा निर्धारित होता मंजिल की स्तर पे। जब मंजिल होता बडा अद्यबसाय उतना अधिक करना पड़ता पानेको सफलता। अपनी मंजिल को पाना हर किसी का है हंक। मंजिल है तो संभाबनायें भी है। अंतर की किसी कोने में निद्रा मुद्रा में व मंजिल को हासिल करनेका भी है शक्ति। उसे जगाना होगा। मंजिल को पाना होगा। जीबन को सफल बनाना होगा। एसा एक भावना किसीको भी देता एक न एक दिन जरूर सफलता। जीबन में लाता सार्थकता।
आज इस विषय पे आधारित एक कहानी:
साबन की महिना चल रही है। रिमझीम करके बारिश हो रही है। चिंटू की मन में कैसा एक भावना चल रहा है पता नहीं कबसे व घरसे बाहर निकल कर बारिश में भीग रहा है। मान में है एक कौतूहल व अभिप्ररित होकर नाचता गुनगुनाते हुए दादी माँ से सुनाई गई कुछ बारिश की लोरी उठा रहा है लुप्त बारिश की। ठीक उसी समय पे सुनाई देता माँ की आवाज किचन से। बोल रहीथी बेटा चिंटू क्या करते हो बेटा। पहले home task निपटालो। मगर चिंटू की मुहूं से कोई उत्तर नहीं मिलातो व भारकी तरफ झांक मारी। देख के ब्यस्त होगेई। कबसे चिंटू बाहर बारिश में भीग रहा है। तुरंत आजाते और उसे पूछते ये क्या है बेटा कियूं बारिश में भीग रहेहो ? उत्तर में चिंटू कहता मुझे जल्दीसे बड़ा हिना है माँ। देखो सारे पेड़ पौधे बारिश में भीग के ही उतना बड़ा होगये हैं। माँ समझगये चिन्टूकि मनकी भाषा समझा बुझा के घर की अंदर लेगये और तौलिया से बाल पोंछते हुए समझाने लगे बेटा बड़ा हिनेके लिए तुम्हे अब पुष्टिकर खाना,खेलकूद और आराम कि जरूरत है। चिंटू समझ जाता मां की बात बोलता ठीक है माँ मेरेलिए वेसा ही करना। मुझे जल्द ही बड़ा होना है ।
कभी कभी खानेकी वक्त चिंटू अझट करता तो माँ उसे रात की समय चन्दा को दिखाके बिबिध नाना प्रकार की बाया गीत गाके खाना खिलाते चिंटू को। व उसी वक्त माँ को कहता माँ मुझे चांद पकड़ना है। खिलादो मुझे मुझे जल्दी ही बड़ा होनेका है। माँ कहते हाँ बेटा हाँ तुम्हे जल्दी ही बड़ा होना है। चांद पकड़ना है। खालो खालो कहके सारे खाना खिला देते।
वही एक मंजिल चांद पकडने का चिंटू की मन में बैठ गेया बपन से। इसे साकार करने केलिए कठिन परिश्रम करते हुए पढ़ाई करने लगा। बन गेया एक एस्ट्रोनॉट। सामिल होगेया भारत की moon mission में चलागेया चांद पे। बहत सारे तथ्य वहींसे लाने में समर्थ बना। जब चांद से वापिस आया सारे जहां से आने लगा सुभेच्छा कि बारतायें। सरकार की ओर से इनाम भी मिला। ऐसे चिंटू को अपना भावना से मंजिल मिलगेयाI
इसी से ये सिख मिलती है कि मन में स्थित भावना जब एक निर्दिष्ट दिशेमे सकारात्मक प्रयास करता जाता तो मंजिल एक न एक दिन मिलहि जाता।
हर जीबन में लक्ष्य रहता मगर ये भी सच है दोस्तों की हर कोई में नहीं होता एक जैसा रहता बिभेदता। गन और स्वरूप की दृश्टिकोण से देखाजाए तो ये निर्धारित होता ब्यक्तिगत बिभेदता की आधार पे।जहां एक एहेम भूमिका ग्रहण करता ब्यक्ति की रुचि,समर्थता और अब -श्यक्ता। कभी कबार लक्ष्य कहो या फिर मंजिल निर्धारित होता स्वल्प या दीर्घ कालीन दृश्टिकोण से। जब जैसा रहता ब्यक्ति की आबश्यकता। ये सारे बातें एक ही बातपे निर्धारित होता व है अपनी आप पर प्रचंड बिस्वास। समर्थता और सक्ष्यमता पर भरोसा।
पहलेसे ही किसिम नहीं होता कोई भी क्ष्येत्र में संपूर्णता। सभी को करना पड़ता ढ़ेर सारे अद्यबसाय अपनी में लानेको व समर्थता या सक्ष्यमता। ये भी सच है कि ये अद्यबसाय की मात्रा हमेसा निर्धारित होता मंजिल की स्तर पे। जब मंजिल होता बडा अद्यबसाय उतना अधिक करना पड़ता पानेको सफलता। अपनी मंजिल को पाना हर किसी का है हंक। मंजिल है तो संभाबनायें भी है। अंतर की किसी कोने में निद्रा मुद्रा में व मंजिल को हासिल करनेका भी है शक्ति। उसे जगाना होगा। मंजिल को पाना होगा। जीबन को सफल बनाना होगा। एसा एक भावना किसीको भी देता एक न एक दिन जरूर सफलता। जीबन में लाता सार्थकता।
आज इस विषय पे आधारित एक कहानी:
साबन की महिना चल रही है। रिमझीम करके बारिश हो रही है। चिंटू की मन में कैसा एक भावना चल रहा है पता नहीं कबसे व घरसे बाहर निकल कर बारिश में भीग रहा है। मान में है एक कौतूहल व अभिप्ररित होकर नाचता गुनगुनाते हुए दादी माँ से सुनाई गई कुछ बारिश की लोरी उठा रहा है लुप्त बारिश की। ठीक उसी समय पे सुनाई देता माँ की आवाज किचन से। बोल रहीथी बेटा चिंटू क्या करते हो बेटा। पहले home task निपटालो। मगर चिंटू की मुहूं से कोई उत्तर नहीं मिलातो व भारकी तरफ झांक मारी। देख के ब्यस्त होगेई। कबसे चिंटू बाहर बारिश में भीग रहा है। तुरंत आजाते और उसे पूछते ये क्या है बेटा कियूं बारिश में भीग रहेहो ? उत्तर में चिंटू कहता मुझे जल्दीसे बड़ा हिना है माँ। देखो सारे पेड़ पौधे बारिश में भीग के ही उतना बड़ा होगये हैं। माँ समझगये चिन्टूकि मनकी भाषा समझा बुझा के घर की अंदर लेगये और तौलिया से बाल पोंछते हुए समझाने लगे बेटा बड़ा हिनेके लिए तुम्हे अब पुष्टिकर खाना,खेलकूद और आराम कि जरूरत है। चिंटू समझ जाता मां की बात बोलता ठीक है माँ मेरेलिए वेसा ही करना। मुझे जल्द ही बड़ा होना है ।
कभी कभी खानेकी वक्त चिंटू अझट करता तो माँ उसे रात की समय चन्दा को दिखाके बिबिध नाना प्रकार की बाया गीत गाके खाना खिलाते चिंटू को। व उसी वक्त माँ को कहता माँ मुझे चांद पकड़ना है। खिलादो मुझे मुझे जल्दी ही बड़ा होनेका है। माँ कहते हाँ बेटा हाँ तुम्हे जल्दी ही बड़ा होना है। चांद पकड़ना है। खालो खालो कहके सारे खाना खिला देते।
वही एक मंजिल चांद पकडने का चिंटू की मन में बैठ गेया बपन से। इसे साकार करने केलिए कठिन परिश्रम करते हुए पढ़ाई करने लगा। बन गेया एक एस्ट्रोनॉट। सामिल होगेया भारत की moon mission में चलागेया चांद पे। बहत सारे तथ्य वहींसे लाने में समर्थ बना। जब चांद से वापिस आया सारे जहां से आने लगा सुभेच्छा कि बारतायें। सरकार की ओर से इनाम भी मिला। ऐसे चिंटू को अपना भावना से मंजिल मिलगेयाI
इसी से ये सिख मिलती है कि मन में स्थित भावना जब एक निर्दिष्ट दिशेमे सकारात्मक प्रयास करता जाता तो मंजिल एक न एक दिन मिलहि जाता।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें