दोस्तों,एक बात लोगोंसे अक्सर सुनाइ देता की किसीके पास भले ही हजार गुण हो पर चरित्र नहीं होता तो सबकुछ बेकार ही बेकार है। सत चरित्र बिना मानष जीबन ही बेकार। बात में सत्यता भी परिलक्षित होता है।
ये चरित्र नामक सब्द बड़ा एक गहरा भाव रखता है दोस्तों। बहत काठिगर पाठ होता इसे अमल करने में। इसीलिए सायद सभीके पास नहीं होता। दुरमूल्य सा नजर आता। इसे निर्माण करने में भी काफी समय लगजाता। काफी अद्यबसाय की भी जरूरत पड़ता। एक आदर्शबादी जीबन प्रणालीको अपनाके जीबन में आगे बढ़ना पड़ता जो सभीसे नहीं होता। इसीलिए सायद जैदा लोग जीबन में सहज प्रणाली अपनलेते। आकर्षित होते एक सरल और आम जीबन के प्रति। होजाता चरित्र का हनन बड़ताजाता बाद चरित्र की आदतें। उनमें विकशित होता आदर्शबादी और नीति बिरोधी प्रबृत्तियाँ। परिबेश को करतेजाते कलुषित और सूत्रपात का कर्णधार बनजाते एक स्थाणु सामाजिक परि -स्तिति की।
चरित्र गठन अद्यबसाय का सुरुआत होता जीबन की छोटी उम्र में। कहते हैं लोग बूढ़ा तोता पाठ पढ नहीं सकता। बात सही बैठता। चरित्र निर्माण का ढेरसारे होते उपादान मगर उनमे से स्वाभिमान प्रधान तथा बलिष्ठ प्रतिपादित होता। इसका ढेरसारे प्रमाण भी है। इतिहास है गबाह। देखाजाए तो हर महापुरुष के पास ये एक गुण साधारण रूप से देखने को मिलता।
आज इस बिसय पर एक कहानी आपके सामने:
पुराने जमाने में एक राजा थे। बहत बड़ा पराक्रमी,प्रजा बस्तल ,देशप्रेमी और उदारबादी थे। अपना मातृभूमि को प्राण से भी जैदा प्यार करते थे। अपना पद मर्यादा का भली भांति एहेशास था उनको। कर्तब्य निष्ठा और दयाशीलता गुण में भी कम नहीं थे व। ऐसा एक सर्ब सम्पन राजा को पाकर राज्यबासी अपनिको कृत कृत होरहेथे। सबकुछ सही चलहि रहाथा। इसबीच कहिं से आगेया एक अकाल बिपत्ति।
महा पराक्रमी एक अभियान कारी लुटेरा सम्राट से अचानक एक संदेश आया कि व उसका बसती स्विकर करलें नहीं तो युद्ध के लिए प्रस्तुत हो जाएं। राजा संदेश को ठुकरादिया। अपना जान और पद के लिए व कैसे भला मातृतुल्य मातृ भूमिको विदेशियों के हाथ सौंप सकते। फलतः एक सानी युद्ध का शुत्रपात हुआ।
अभियान कारिओंके पास आधुनिक अस्त्र शस्त्र था तो वे बिजयी हो गए मगर नतमस्तक होगए व बीर योद्धा के समक्ष्य जो अस्त्र शस्त्र बिना अपनी सामर्थ्य और साभिमान को भरोसा करके इतिना बड़ा एक युद्ध लडगेया। ये कोई साधारण सा बात नहीं था।
परिशेष में अनगिनत धन जीबन का बिनस्ट घटा। राजा खुद विपक्षी सत्रुओं के द्वारा बंदी बने और बिजयी सम्राट के पास लाएगए। वेसा सेना की ऊपर आदेश भी था राजा को जीवित लानेको। इसके पीछे सम्राट का एक बहत बड़ा इच्छा था उन्हें देखने को। ऐसा एक बीर पुरुष को सुनना चाहाते थे उनकी मुहं से कुछ बातें।
जब राजा को उनकी समक्ष्य लायागेया सम्राट राजाके आगे दो शर्तें रखा एक तो उनकी बसती स्वीकार नहीं तो सिरछेद का। राजा को इनमेसे एक को चुननेक कहागेया। आश्चर्य की बात तब भी राजा अपनी सिर कटवाने को उचित माने मगर बसती स्वीकारने में राजी नहीं थे। सम्राट पूछते तुम ऐसा कियूं करनेको चाहतेहो। तब राजा का उत्तर था,स्वाभिमान बिना जीना मौत की समान।
ये एक बात सभीको आश्चर्य चकित बनादिया। सम्राट अपनी जीबन में कहिंपे भी ऐसा एक स्वाभिमानी ब्यक्ति को नहीं देखे थे। प्रीत होगए ऐसा एक स्वाभि - मानी ,देश भक्त ,निर्बिक,बीर पुरुष को देख कर। व वापिस देदिये उनको उनका राज्य और मित्र बनगए।
ऐसे इन्हां राजा के पास उस वक्त कुछ भी नहीं था स्वाभिमान के लाबा जब व पराजित हो चुके थे मगर उनके पास एक था प्रबल चरित्रबत्ता। हर कोई इसे सरहनाने लगे। ये है चरित्र गठन में स्वाभिमान का भूमिका।
ये चरित्र नामक सब्द बड़ा एक गहरा भाव रखता है दोस्तों। बहत काठिगर पाठ होता इसे अमल करने में। इसीलिए सायद सभीके पास नहीं होता। दुरमूल्य सा नजर आता। इसे निर्माण करने में भी काफी समय लगजाता। काफी अद्यबसाय की भी जरूरत पड़ता। एक आदर्शबादी जीबन प्रणालीको अपनाके जीबन में आगे बढ़ना पड़ता जो सभीसे नहीं होता। इसीलिए सायद जैदा लोग जीबन में सहज प्रणाली अपनलेते। आकर्षित होते एक सरल और आम जीबन के प्रति। होजाता चरित्र का हनन बड़ताजाता बाद चरित्र की आदतें। उनमें विकशित होता आदर्शबादी और नीति बिरोधी प्रबृत्तियाँ। परिबेश को करतेजाते कलुषित और सूत्रपात का कर्णधार बनजाते एक स्थाणु सामाजिक परि -स्तिति की।
चरित्र गठन अद्यबसाय का सुरुआत होता जीबन की छोटी उम्र में। कहते हैं लोग बूढ़ा तोता पाठ पढ नहीं सकता। बात सही बैठता। चरित्र निर्माण का ढेरसारे होते उपादान मगर उनमे से स्वाभिमान प्रधान तथा बलिष्ठ प्रतिपादित होता। इसका ढेरसारे प्रमाण भी है। इतिहास है गबाह। देखाजाए तो हर महापुरुष के पास ये एक गुण साधारण रूप से देखने को मिलता।
आज इस बिसय पर एक कहानी आपके सामने:
पुराने जमाने में एक राजा थे। बहत बड़ा पराक्रमी,प्रजा बस्तल ,देशप्रेमी और उदारबादी थे। अपना मातृभूमि को प्राण से भी जैदा प्यार करते थे। अपना पद मर्यादा का भली भांति एहेशास था उनको। कर्तब्य निष्ठा और दयाशीलता गुण में भी कम नहीं थे व। ऐसा एक सर्ब सम्पन राजा को पाकर राज्यबासी अपनिको कृत कृत होरहेथे। सबकुछ सही चलहि रहाथा। इसबीच कहिं से आगेया एक अकाल बिपत्ति।
महा पराक्रमी एक अभियान कारी लुटेरा सम्राट से अचानक एक संदेश आया कि व उसका बसती स्विकर करलें नहीं तो युद्ध के लिए प्रस्तुत हो जाएं। राजा संदेश को ठुकरादिया। अपना जान और पद के लिए व कैसे भला मातृतुल्य मातृ भूमिको विदेशियों के हाथ सौंप सकते। फलतः एक सानी युद्ध का शुत्रपात हुआ।
अभियान कारिओंके पास आधुनिक अस्त्र शस्त्र था तो वे बिजयी हो गए मगर नतमस्तक होगए व बीर योद्धा के समक्ष्य जो अस्त्र शस्त्र बिना अपनी सामर्थ्य और साभिमान को भरोसा करके इतिना बड़ा एक युद्ध लडगेया। ये कोई साधारण सा बात नहीं था।
परिशेष में अनगिनत धन जीबन का बिनस्ट घटा। राजा खुद विपक्षी सत्रुओं के द्वारा बंदी बने और बिजयी सम्राट के पास लाएगए। वेसा सेना की ऊपर आदेश भी था राजा को जीवित लानेको। इसके पीछे सम्राट का एक बहत बड़ा इच्छा था उन्हें देखने को। ऐसा एक बीर पुरुष को सुनना चाहाते थे उनकी मुहं से कुछ बातें।
जब राजा को उनकी समक्ष्य लायागेया सम्राट राजाके आगे दो शर्तें रखा एक तो उनकी बसती स्वीकार नहीं तो सिरछेद का। राजा को इनमेसे एक को चुननेक कहागेया। आश्चर्य की बात तब भी राजा अपनी सिर कटवाने को उचित माने मगर बसती स्वीकारने में राजी नहीं थे। सम्राट पूछते तुम ऐसा कियूं करनेको चाहतेहो। तब राजा का उत्तर था,स्वाभिमान बिना जीना मौत की समान।
ये एक बात सभीको आश्चर्य चकित बनादिया। सम्राट अपनी जीबन में कहिंपे भी ऐसा एक स्वाभिमानी ब्यक्ति को नहीं देखे थे। प्रीत होगए ऐसा एक स्वाभि - मानी ,देश भक्त ,निर्बिक,बीर पुरुष को देख कर। व वापिस देदिये उनको उनका राज्य और मित्र बनगए।
ऐसे इन्हां राजा के पास उस वक्त कुछ भी नहीं था स्वाभिमान के लाबा जब व पराजित हो चुके थे मगर उनके पास एक था प्रबल चरित्रबत्ता। हर कोई इसे सरहनाने लगे। ये है चरित्र गठन में स्वाभिमान का भूमिका।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें