परिबर्तन धरतिकी नियम है। इन्हाँ हर क्षण में परिबर्तन बनता है। इसी नियम की तेहत हर एक पार्थिब जिब और पदार्थ परिबर्तित होता मगर ये भी सत्य है कि इसका मात्रा कभी कम तो कभी जैदा ज़रूर होता।
ऐसा एक धीमी गतिकी परिबर्तन नबकिशोरकी जिबनमे है। बिश शाल बात भी व उसी ही पेड़की नीचे अपना रोजीरोटी की कमाई करता। इसीमे ही सुबह से साम कैसे कटजाता उसे पता भी नहीं लगता। एकदम एक ब्यस्त बहुल जीबन मगर काफी खुशहाल। अपना एक झाल-मुढ़ी की धंदा चलाता।
दीबश की प्रथम प्रहरसे ही प्रारम्भ होजाता उसकी जीबन यात्रा। अपनी नित्यकर्म निपटानेके बाद पत्नी रोमा को कहता, "मेरा टाइम हो गेया है रोमा। लाव मुझे देदो सारे सामान। जल्दही जाना होगा।" रोमा भी कोई बिलंब नहीं करता झट ही सामान लाके देदेता। नबकिशोर अपना साईकल में लोडकर के जब निकलना चाहाता पहलेसे ही रोमा झाँकलेता सारे ओर रास्ताकि ये समझकर की पतिको कोई असुभ ना देखना पड़े। नबकिशोरको तबतक रुकना पड़ता। जब पत्नी रोमासे ग्रीन सिग्नल मिलजाता तो तुरंत ही निकलजाता अपनी धंदे में।
रास्तेमें कहिंपे कभी भी नहीं ठहरता सीधे जामिलता वहीं ही बट बृक्षयकी नीचे जहाँ हरदिन की जैसी पहलेसे ही चिंटू, पिंटू, सीता, गीता उसकी अपेक्षया में होते। नजदीकी होते ही नबकिशोर उन बच्चों को कहता, "अरे तुम लोग आगए हो? थोड़ा तो वेट करलो। मुझे पहले तो सफाई करनेदो। देखो कितने गंदगी फैलाहुआ है सारे ओर? ऐसे में बीमारी फैलजाएगा।" फिर एक झाड़ू निकालके झाडूकरलेता और सुरुकरदेता अपना धंदा।
बच्चोंको जैदा तौर अपना प्यार जताता कियूं की ये उसे भली भांति पता रहता कि वे लोग ही उसका असली ग्राहक। कभी किसीको तंग नहीं करता रुपैया पैसा के लिए। जो जितना भी लाता उसी मुताबक देदेता झालमुढ़ी।
दो दिनसे अब व थोड़ा ब्यतिब्यस्त है। बेटा गोबिंदको बाइस शाल होचुकी है लेकिन बेकार लावारिश जैसे घूमता। न कोई पढ़ाई न कोई काम पर मन। कितनी बार समझा चुका है कि, "बेटा, आखिर कबतक चलेगी तुम्हारा ये फहोकट की ज़िन्दगी? उम्र होगेई है। अबतो कोई काम पर लगजाओ। घरकी कुछतो जिम्मेदारी लेनी चाहिए?" उत्तर में बेटा बोलता, "इँहा मेरेलिए काम काहाँ है बापू जो में करसकूँ? कबसे कहता आयाहूँ कि मुझे दो हजार रुपैया देदो मुझे मेंगालुरु जानाहे। तुमलोग कभी सुनतेही नहीं।" अब इसीही बातमे नबकिशोर जुटाहुआ है। सोचता है एक दो दिनमे ही बेटाकेलिए दो हजार रुपैया उसे जोगाड़ करना पड़ेगा। बेटाको रोजगार क्षयम बनाना भी तो एक पिताका जिम्मेदारी है।
इसीलिए आजसे सभी बच्चोंको अबगत कराचुकि है कि कल व इन्हाँ नहीं आएगी। नजदीकी सालेपुर गांब का फागन मेलेमें दुकान लगवानी है। वेसा ही हुआ। सारे सामान लेके व फागनकी मेले में चलागेया। धंदा अच्छा ही चलरहाथा। ठीक उसीही समय पर एक बोबाल सुनाई देता की उसकी गांब जलरहि है। नबकिशोर ब्यातिब्यस्त होजाता। तुरंत ही धंदा बंद करके एक ही क्षण में जामिलता अपनी घरकी सामने मगर उसवक्त उसकी घर बुरी तरह जलचुकि थी। काफी निराश हुआ नबकिशोर ऐसा एक दृश्य देखके। जिम्मेदारी बढजाता उसका और बेटा गोबिंद का। एहेशास हो जाता कि जिम्मेदारी कैसा एक चीज है? अगली दिनसे ही बेटा किसी काम पर लगजाता और रोजगार क्षयम बनजाता।
यहिसे ये सिख मिलती है कि जिम्मेदारी जीबन में सकारात्मकता लाता और सही दिशामे जिबनको लेजाता। इसीलिए जिम्मेदारी से भागना मत बरंग जिम्मेदारी स्वीकारना हमेसा उत्तम जीबन जीनेका मार्ग है।
ऐसा एक धीमी गतिकी परिबर्तन नबकिशोरकी जिबनमे है। बिश शाल बात भी व उसी ही पेड़की नीचे अपना रोजीरोटी की कमाई करता। इसीमे ही सुबह से साम कैसे कटजाता उसे पता भी नहीं लगता। एकदम एक ब्यस्त बहुल जीबन मगर काफी खुशहाल। अपना एक झाल-मुढ़ी की धंदा चलाता।
दीबश की प्रथम प्रहरसे ही प्रारम्भ होजाता उसकी जीबन यात्रा। अपनी नित्यकर्म निपटानेके बाद पत्नी रोमा को कहता, "मेरा टाइम हो गेया है रोमा। लाव मुझे देदो सारे सामान। जल्दही जाना होगा।" रोमा भी कोई बिलंब नहीं करता झट ही सामान लाके देदेता। नबकिशोर अपना साईकल में लोडकर के जब निकलना चाहाता पहलेसे ही रोमा झाँकलेता सारे ओर रास्ताकि ये समझकर की पतिको कोई असुभ ना देखना पड़े। नबकिशोरको तबतक रुकना पड़ता। जब पत्नी रोमासे ग्रीन सिग्नल मिलजाता तो तुरंत ही निकलजाता अपनी धंदे में।
रास्तेमें कहिंपे कभी भी नहीं ठहरता सीधे जामिलता वहीं ही बट बृक्षयकी नीचे जहाँ हरदिन की जैसी पहलेसे ही चिंटू, पिंटू, सीता, गीता उसकी अपेक्षया में होते। नजदीकी होते ही नबकिशोर उन बच्चों को कहता, "अरे तुम लोग आगए हो? थोड़ा तो वेट करलो। मुझे पहले तो सफाई करनेदो। देखो कितने गंदगी फैलाहुआ है सारे ओर? ऐसे में बीमारी फैलजाएगा।" फिर एक झाड़ू निकालके झाडूकरलेता और सुरुकरदेता अपना धंदा।
बच्चोंको जैदा तौर अपना प्यार जताता कियूं की ये उसे भली भांति पता रहता कि वे लोग ही उसका असली ग्राहक। कभी किसीको तंग नहीं करता रुपैया पैसा के लिए। जो जितना भी लाता उसी मुताबक देदेता झालमुढ़ी।
दो दिनसे अब व थोड़ा ब्यतिब्यस्त है। बेटा गोबिंदको बाइस शाल होचुकी है लेकिन बेकार लावारिश जैसे घूमता। न कोई पढ़ाई न कोई काम पर मन। कितनी बार समझा चुका है कि, "बेटा, आखिर कबतक चलेगी तुम्हारा ये फहोकट की ज़िन्दगी? उम्र होगेई है। अबतो कोई काम पर लगजाओ। घरकी कुछतो जिम्मेदारी लेनी चाहिए?" उत्तर में बेटा बोलता, "इँहा मेरेलिए काम काहाँ है बापू जो में करसकूँ? कबसे कहता आयाहूँ कि मुझे दो हजार रुपैया देदो मुझे मेंगालुरु जानाहे। तुमलोग कभी सुनतेही नहीं।" अब इसीही बातमे नबकिशोर जुटाहुआ है। सोचता है एक दो दिनमे ही बेटाकेलिए दो हजार रुपैया उसे जोगाड़ करना पड़ेगा। बेटाको रोजगार क्षयम बनाना भी तो एक पिताका जिम्मेदारी है।
एहेशास ज़िम्मेदारी की........ |
इसीलिए आजसे सभी बच्चोंको अबगत कराचुकि है कि कल व इन्हाँ नहीं आएगी। नजदीकी सालेपुर गांब का फागन मेलेमें दुकान लगवानी है। वेसा ही हुआ। सारे सामान लेके व फागनकी मेले में चलागेया। धंदा अच्छा ही चलरहाथा। ठीक उसीही समय पर एक बोबाल सुनाई देता की उसकी गांब जलरहि है। नबकिशोर ब्यातिब्यस्त होजाता। तुरंत ही धंदा बंद करके एक ही क्षण में जामिलता अपनी घरकी सामने मगर उसवक्त उसकी घर बुरी तरह जलचुकि थी। काफी निराश हुआ नबकिशोर ऐसा एक दृश्य देखके। जिम्मेदारी बढजाता उसका और बेटा गोबिंद का। एहेशास हो जाता कि जिम्मेदारी कैसा एक चीज है? अगली दिनसे ही बेटा किसी काम पर लगजाता और रोजगार क्षयम बनजाता।
यहिसे ये सिख मिलती है कि जिम्मेदारी जीबन में सकारात्मकता लाता और सही दिशामे जिबनको लेजाता। इसीलिए जिम्मेदारी से भागना मत बरंग जिम्मेदारी स्वीकारना हमेसा उत्तम जीबन जीनेका मार्ग है।
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