दोस्तों, जिबनकी गतिपथ को एक नदी के साथ जोड़ाजाता है। काफी हदतक ये
सही भी बैठता है। जैसे एक नदी कभी भी सरल रेखा में गति नहीं करता, ठीक उसी तरह जिबनकी गतिपथ भी हमेसा एक जैसा नहीं चलता। कभी सरल रेखा में तो फिर कभी बक्र रेखा में चलता जाता चलता जाता नदी। कभी भी किसी भी प्रकारका प्रतिकूल परिबेश को खातिर करता नहीं। प्रतिकूलता की हर कठिनाइयों को प्रतिहत करके चला जाता पानी मंजिलपे मन में हमेसा रखके एक बहादुर का अबधारणा व है "Do or die"
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"Do or die" |
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कियूं..., कौन..., कैसे... ...है? |
आज अबधारणा कैसे एक ब्यक्ति की जीबन में ब्यक्तित्व गठन प्रक्रिया का एक एहम भूमिका होता और अनुरूप एक ब्यक्तित्व बनाता एक कहानिकी माध्यम से समझने को कोसिस करते हैं:
रानीपुर एक छोटीसी गांब है। बोलांगीर सम्बलपुर जानेवाले दक्षिणी-पश्चिमी लाइल्वे लाइन की एकदम नजदीकी। अगर टेप में मापाजाए तो केवल दोषो मीटर। इसी गांब की हर एक बच्चा पैदा होते ही पहचानलेते रेल इंजन का भारी घोर घर्घर नाद को। जब उम्र बढ़ता तो माँकी गोद से फिर बढ़ती उम्र की समय चक्र में पिताकी कांधोंसे और दोस्तों के साथ अबलोकन करते रेलगाड़ी को। देख कर आनंद में उत्फुल्लित भी होते। कभी कभार टागिद भी होते मातापिता, आसप-ड़ोस की लोग तथा हिता कांखिओं के द्वारा ना जानेको उसकी समक्ष्य। बतादेते परिणाम की बारे में। डालदेते सच और भयानक एक अबधारणा बच्चोंके साम-ने। कोई नहीं जाते रेलगाड़ी की सामने। दूर ही रहकर आनंद उठाते।
बलबीर इसीही गांब का एक छोटासा बालक। अपना छोटा भाई दानबीर को साथ लेकर अन्य साथिओंके साथ मैदान में खेलकूद में ब्यस्त है। दानबीर उम्र में काफी छोटा है। जीबन में क्या है भय भ्रांति कुछ नहीं जानता। इसबीच निकल गेया रेलवे ट्रैक पर। चलता ही जारहा है वही ही ट्रैकपर जिसपर उसीही समय एक ट्रेन आही रहीहै जिसकी हॉर्न दूरसे सुनाई देरहि है। ठीक उसी ही समय बलबीर का नजर पडगेया भाईपर। काल बिलाम ना करके दौड़ते गया दौड़ते गया भएको बचानेके लिए। ऐसा एक संजोग आगेया की उसकेलिए ये एक "Do or die" मुहूर्त। व जितिना भाईकी समक्ष्य हो रहाथा ट्रैन भी उतनीही नजदीकी हो रहीथी। दूरसे साथीगण तथा वहीं पर उपस्थित जनता केवल देखहि रहेथे। किसीके पास ऐसा कोई साहस नहीं था कि रेलवे ट्रैक से दानबीरको मौतकी मुहूँ से निकालसके। हरकोई केवल बोबाल कर रहेथे, बोल रहेथे, "बच्चा मरगेया, बच्चा मरगेया।"
लेकिन बलबीर सचमूच एक बहादुर निकला। किसीको भी ना सुनतेहुए दौड़ता गेया दौड़ता गेया वही रेलवे ट्रैक पर और अन्तिमहि क्षयन में बचा ही लिया दानबीरको। व उसके लिए था एक "Do or die" मुहूर्त। उसकी अंदर स्थित सकारात्मक तथा परिमार्जित अबधा-रणा ये एक झलक था। बलबीर को इस बाहादुरी के लिए लोगोंने काफी प्रसंसा करनेलगे जो केवल उसका एक बहादूरी की अबधारणा था ही।
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सकारात्मक तथा परिमार्जित अबधा-रणा |
इसी कहानी से ये एक सिख मिलती है कि अक्सर जीबन में ऐसा "Do or die" की मुहूर्त आता है और जिसके पास बहादुर अबधारणा रहता व विजयी बनजाता है।
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