बात तो साफ़ और कौतूहल पूर्ण है दोस्तों की ये "जीबन नामक शब्द एक दम एक रेहस्यजनक शब्द है।" इसका गूढ़ रहस्य जाननेकेलिए कितनोने नहीं प्रयास किये हैं। कितने मानब सम्बल खर्च नहीं हुआहै इसे जानने में कि ये असल में है क्या? क्या है इसका केमेस्ट्री, प्रकृति, लक्ष्य और मकसद? क्या है इसका सच्चाई?
युग युगसे अनगिनत दार्शनिक गण "जीबन का रहस्य को जाननेके लिए काफी प्रयास कर चुकेहैं। चाहे श्रीमत भागबत गीता की रूप में श्री कृषणा जी के रिसर्च की बात करें या भगबान बुद्ध, जिसु जी या फिर प्रोफेट महम्मद सारे के निगाहें एक ही बातपे निहित है कि" कैसे जिबनको अच्छी तरहसे समझा जाए ताकि धरती पर मानबता बनाया रहे और जीबन हर प्रकार बन्धन यानी मायासे मुक्त हो जाए। "
अपने अपने गूढ़ अध्ययनों के फल स्वरूप कई सारे महापुरुष अपनेही तरीके में इसे ब्याक्षया करनेको प्रयास किये हैं। जनहित के लिए ये सारे उनके तरफसे अनमोल अबदान है जिसे कभी भुलाया जानहिं सकता। इसीलिए वे सारे मानब समाजके नमस्य है।
आज ऐसा एक कहानी आपके समक्ष्य जहाँ "जीबन का असली मकसत क्या है?" इसे समझने के लिए भारतीय दर्शन तत्व की अनुसार एक धारणा इस कहानी के माध्यम से समझनेको प्रयास करते हैं:
ऐसे तो हम सभीने जानते हैं कि पुराने जमानेमें कोई स्कूल या कॉलेज नहीं था पढ़ाई करनेके लिए मगर एक आचमित कि बात ये की तक्ष्यशिला, नालंदा जैसे बहत बड़ा-बड़ा बिस्वबिद्यालय था जहाँ तब भी ज्यान-बीज्यान, कला, साहित्य, तथा गणित से लेके हर तरह की शिक्षया प्रदान किया जारहाथा। देश बिदेशसे शिक्षयार्थी गण इन्हाँ पढ़ाई करनेकेलिये आतेथे।
जैदा तौर स्कूली पढ़ाई गुरुकुल में ही हो रहीथी। ऐसे एक बन में गुरु राघबानन्द जी की आश्रम। वहाँ कुच्छ शिष्य गण पढ़ाई करते हैं। हर बर्ष कुच्छ नई शिष्य आते हैं और कुच्छ अपने शिक्षया समाप्ति पुर्बक एक नई सामाजिक जीबन जिनेकेलिए वहीं से बिदाई लेते हैं। लेकिन उन लोगोंको एक परिक्षया से गुजरना पड़ता था।
आज ऐसा एक परिक्षया चल रहा है। गुरु एक-एक करके सभी शिक्षयार्थियोंको एक ही प्रश्न पुछरहेथे, "जीबन कैसे जीना?" सभीने अपने-अपने शिक्षया और अन्दाजमे तरह तरहकी उत्तर देरहे थे। कोई कहरहाथा "शांति सुखद जीबन जीना" कोई फिर "बड़ा ही आदमी बनना"। ऐसे कई तरह की उत्तर मिल रहाथा। आखिरमें बारी आया नरोत्तम का व बोला, "गुरु जी, असल में जिबनका असली मकसद अच्छा बननेके लिए जीना ही है। कियूं की जब कोई एक ब्यक्ति अच्छा बननेकेलिए जिलेता तो उसका जीबन सच्चाई की मार्गपर चलताजाता। व सत्कर्म ही करता जाता और सत्कर्मसे सदा सत फलही मिलता। ये तो सत्य ही कि आम की पेडमें कभी निम नहीं लगता। एक मानबमे मानविय गुण होना ज़रूरी है जो श्रीमद भागबत की बाणी है" " स्वधर्मे निधनं श्रेय परधर्म भयाबह। " बास्तविक नरोत्तम का ये एक चमत्कार उत्तर था। सुनके बाद गुरु उसको प्रसंसा करनेलगे और पंडित उपाधि में आभूषित करदी।
यहिसे ये सिख मिलती है कि हर जिबन के लिए जीबन जीनेका एक तरीका होता ही है मगर उसमेंसे "अच्छा बननेके लिए जीना सबसे उत्तम है।"
युग युगसे अनगिनत दार्शनिक गण "जीबन का रहस्य को जाननेके लिए काफी प्रयास कर चुकेहैं। चाहे श्रीमत भागबत गीता की रूप में श्री कृषणा जी के रिसर्च की बात करें या भगबान बुद्ध, जिसु जी या फिर प्रोफेट महम्मद सारे के निगाहें एक ही बातपे निहित है कि" कैसे जिबनको अच्छी तरहसे समझा जाए ताकि धरती पर मानबता बनाया रहे और जीबन हर प्रकार बन्धन यानी मायासे मुक्त हो जाए। "
अपने अपने गूढ़ अध्ययनों के फल स्वरूप कई सारे महापुरुष अपनेही तरीके में इसे ब्याक्षया करनेको प्रयास किये हैं। जनहित के लिए ये सारे उनके तरफसे अनमोल अबदान है जिसे कभी भुलाया जानहिं सकता। इसीलिए वे सारे मानब समाजके नमस्य है।
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स्वधर्मे निधनं श्रेय परधर्म भयाबह |
ऐसे तो हम सभीने जानते हैं कि पुराने जमानेमें कोई स्कूल या कॉलेज नहीं था पढ़ाई करनेके लिए मगर एक आचमित कि बात ये की तक्ष्यशिला, नालंदा जैसे बहत बड़ा-बड़ा बिस्वबिद्यालय था जहाँ तब भी ज्यान-बीज्यान, कला, साहित्य, तथा गणित से लेके हर तरह की शिक्षया प्रदान किया जारहाथा। देश बिदेशसे शिक्षयार्थी गण इन्हाँ पढ़ाई करनेकेलिये आतेथे।
जैदा तौर स्कूली पढ़ाई गुरुकुल में ही हो रहीथी। ऐसे एक बन में गुरु राघबानन्द जी की आश्रम। वहाँ कुच्छ शिष्य गण पढ़ाई करते हैं। हर बर्ष कुच्छ नई शिष्य आते हैं और कुच्छ अपने शिक्षया समाप्ति पुर्बक एक नई सामाजिक जीबन जिनेकेलिए वहीं से बिदाई लेते हैं। लेकिन उन लोगोंको एक परिक्षया से गुजरना पड़ता था।
आज ऐसा एक परिक्षया चल रहा है। गुरु एक-एक करके सभी शिक्षयार्थियोंको एक ही प्रश्न पुछरहेथे, "जीबन कैसे जीना?" सभीने अपने-अपने शिक्षया और अन्दाजमे तरह तरहकी उत्तर देरहे थे। कोई कहरहाथा "शांति सुखद जीबन जीना" कोई फिर "बड़ा ही आदमी बनना"। ऐसे कई तरह की उत्तर मिल रहाथा। आखिरमें बारी आया नरोत्तम का व बोला, "गुरु जी, असल में जिबनका असली मकसद अच्छा बननेके लिए जीना ही है। कियूं की जब कोई एक ब्यक्ति अच्छा बननेकेलिए जिलेता तो उसका जीबन सच्चाई की मार्गपर चलताजाता। व सत्कर्म ही करता जाता और सत्कर्मसे सदा सत फलही मिलता। ये तो सत्य ही कि आम की पेडमें कभी निम नहीं लगता। एक मानबमे मानविय गुण होना ज़रूरी है जो श्रीमद भागबत की बाणी है" " स्वधर्मे निधनं श्रेय परधर्म भयाबह। " बास्तविक नरोत्तम का ये एक चमत्कार उत्तर था। सुनके बाद गुरु उसको प्रसंसा करनेलगे और पंडित उपाधि में आभूषित करदी।
यहिसे ये सिख मिलती है कि हर जिबन के लिए जीबन जीनेका एक तरीका होता ही है मगर उसमेंसे "अच्छा बननेके लिए जीना सबसे उत्तम है।"
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