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संपर्क का एक मधुर संज्ञा

संपर्क का एक मधुर संज्ञा

सीता और गीता दोनों एक ही कॉलेज राधास्वामी बायो टेक्निक में पढ़ते हैं। जबसे उनके दाख़िलात हुआ है तबसे दोनों में अतरंगता बढ़ता ही जारहा है। हमेसा एक साथ खाते,पीते,पढ़ाई करते। शॉपिंग से लेके हरचीज में एक दूसरे को कभी नहीं छोड़ते। जैसे जैसे समय गुजरता, इन दोनों के संपर्क में और निबिडता बढ़ताजाता। जीबन की गतिपथ में संपर्क का अटूट बिस्वास धीरे धीरे और गहराई की ओर चलाजाता। दोनों में कोई अंतर ही नहीं शिबाय भौतिक रूप गुण को छोड़ के।

रूपगुण,चरित्र से लेके रुचि तक दोनों में काफी सामंजस्यता है। कोई किसी से कम नहीं। अब वे पढ़ाई की आड़ में दोस्ती की संपर्क को उस हत्तक लेचुके हैं कि कोई एक किसी और कि बैगर जिनहिं पाएगें। ये सारे बातें दोनों के परिबार बर्ग भी भलीभाँति जनचुके थे।

सीता और गीता एक ही कंपनी कृष्णास्वामी मल्टीनाशनल लिमिटेड में बतौर तकनीशियन की रूप में एक साथ काम करते हैं। यहीं पे भी दोनों एक साथ एक ही कमरे में रहते हैं। काफी मस्ती में। पढ़ाई की कोई टेंशन ही नहीं। नहीं पैसा की कोई कमी। केवल एक बात की है चिंता व है "एक सुंदर,चरित्रबान, कर्मठ, उपार्जन क्षयम, हिम्मतवाला पुरुष जीबन साथी। बेबाहिक जीबन जीनेका उम्र आगेया है दोनों में। इसबात को लेके दोनों में काफी बातें चलता अनेक समय में। कुछ जाने सुने युबक पुरुषों के बारे में चर्चा का प्रसंग आधारित रहता,"कौन है कैसा ?"

सीता और गीता में सबकुछ तो अच्छा ही चलरहा है शिबाय एक बात की"अब पता नहीं कियूं गीता अपनिहि आफिस की सनातन के साथ सीता की बढतीहुई संपर्क को लेके काफी खाफ़ा है।" आज गीता आफिस खत्म होते ही वही चाट की दुकान पे कब से सीता को अपेक्षया करता आरहा है मगर सीता आता ही नहीं। व बोर  हो चुकी थी। कॉल पे कॉल कर रही है लेकिन सीता बार बार वही एक ही बात बोल रही है,"बस जल्द ही कुछ ही मिनट में आरहा हूँ।" लो अब सीता आही गेया मगर सनातन के साथ। देखते ही गीता सीता को तबियत ठीक नहीं बोलके बाहाना बनाके अपनी स्कूटी स्टार्ट करके कमरे की ओर चलदी।

सीता कमरे में आते ही गीता बोलने लगी,"आज तू बहत खुस है न ?" सीता कहता," हाँ कियूं नहीं ,जरूर,सचमुझ आज मैं बहत खुस हूं।" ऐसा सुनते ही गीता बोलनेलगी,"मेरी तबियत बिलकूल सही है। तेरी सर ठीक नहीं है। शशांक भैया को बात देने के बाद भी तेरा सनातन की साथ संपर्क रखना बिलकुल गलत है। सनातन तेरे बारे में कितिना घटिया बात नहीं किया है ? फिर भी तू शशांक भैया को छोड़कर उसका साथ..छि....छि। एक नालायक के साथ तुझे देख के मुझे कहीं अच्छा नहीं लगता।"

गीता को और कुछ जैदा बोलने को ना देतेहुए सीता बोलनेलगा,"प्लीज और कुछ बोलना मत,नहीं तो सच जाननेके बात अपनिआप को माफ नहीं करपाओगे।" पलटवार में गीता बोलती ,"मैं क्या कुछ गलत बोला ?" सीता कहती है," उसदिन केबल तेरे ही भरोसे में शशांक हमारे रजिस्ट्री बिबाह के लिए कलकत्ता से इंहां आएथे लेकिन तू तेरे पापा को डरतेहुए साक्षयी होनेको मना करदिया तो तब शशांक वापिस ही जारहे थे उसके बाद जोकुच्छ हुआ तुझे पता काहाँ। उसवक्त सनातन जी मुझे अपनी बहन की परिचय देके कोर्ट में अपना दस्तखत दियेथे। तब से मेरा सनातन जी के साथ भाई बहन का रीस्ता है। आज ही बिबाह की सर्टिफिकेट देखनेके बाद शशांक की घरवालों ने हमारे सादी को स्वीकृति देचूके हैं जो फ़ोन पे ही शशांक ने मुझे बताये तो ये मेरेलिए बहत बड़ा खुसी की बात है ही। इसी खुसी में मैं सनातन भैया को चाट खिलाने जारही थी।"

जब ये सारे बातें सीता बखान रही थी इधर गीता की दिल में "संपर्क का एक मधुर संज्ञा " स्थिर होने जारहाथा। उसकी आंख से पानी निकल रहीथी।  सीता को अपनी सीनें पे लगाके गीता कहनेलगी ,"कभी कभी संपर्क को पहचानने में असमर्थ सहेली भी भूल करसकती है।"

यही से ये एक सिख मिलती है कि कोई भी संपर्क को ना समझते हुए कोई भी एक भाषा देदेना बिलकुल अनुचित है। संपर्क को लेके सही तरीकेसे बिश्लेसन करके समझना और फिर कोई टिप्पणी करना सही साबित हो सक्ता है।

धन्यवाद.....
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