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माफ़ करना मानसिक दर्द का सबसे अच्छी दबा है.....

ये जिबन है दोस्तों,हमेसा एक जैसे सलख आराम गतिमें चलेगा असंभव है। कभी ऐसा बन नहीं सक्ता।  सुख दुःख, हसी मजाक,खट्टा मीठि जीबन में रहता है और समझा जाए तो रहना भी चाहिए अन्यथा इसमें से कोई एक को ही एहे -शास किया जाता तो बाकी सारे को हमलोग जान नहीं पाते। जीबन में कोई मजा नहीं होता। एक ही स्वाद किसीको भी हमेसा के लिए अच्छी नहीं लगता। ऐसा एक स्थिति आजाता जिसे मान -सिक शांति की दृश्टिकोण से देखाजाए तो बहुत बुरा ही होता। वेसा एक स्थिति में जरूरत बन जाता मानसिक दर्द निबारक दबा की।



लो,हाँ, इस बात को स्वीकार करके आत्म शन्तुस्टी करलेनि चाहिए कि "इस्वर जो करते हैं प्राणिकी भलाई के लिए।" जो सत्य और समुचित ऐसा लगता है। जिबनकी चला पथ पर कहिंन कहीं किसी कारण बस मानसिक अशांति आना हर किसीके लिए एक आम बात है। कभी किसी चीज की अभाव के कारण बस फिर कभी किसी रिस्ते को लेकर अभावनिय घटना तथा परिस्थियां उत्पन्न होने से मानसिक अशांति का सिकार हर कोई होते ही हैं। जिसे हमसब जानते हैं।



मगर सबसे दुःख दाई व होता है "संपर्क" को लेकर । जब किसी भी बजह को लेकर किसी दोनों या अनेकों में  घनिष्ठ संपर्क में दरारें आते हैं और इसके साइट इफ़ेक्ट निकलते तरह तरह की। पहचानना मुस्किल बनजाता। ऐसे दुःख को सेहना भी उतना ही कठिन होता। किसीके लिए ये बनजाता कठिन से बहत कठिन और नामुमकिन सा। जीबन में परिस्थितियां जटिलता का जहां इंसान ठहरा नहीं पाता सही राहों को करजाता गलत काम फल केवल दुःख ही पाना। जीबन में नहीं रहता ऐसा परिस्थियां हमेसा। मगर ये चंद कुच्छ ही खराब मुहूर्त और परिबेश कि प्रभाव से प्रभावित होके समंदर मंथन करलेता। जिसमे से केवल निकलता बिष जो किसीके लिए भी अच्छा नहीं होता। इतिना सुंदर संपर्क और जिंदगी को निमिष में खत्म करदेता।



आज आपके सामने कहानी के रूप में ऐसा एक प्रसंग:

प्रणब बहुत बड़ा एक मेडिसिन कंपनी का C.A । रोजी की साथ अभी अभी सादी की संपर्क में बन्धचुका है। मेहज एक महीने पूर्ब। चारदिन से मन सही नहीं है । जबसे व उसका ही एक गलत दोस्त से ये सुनलिया की " पहले से ही रोजी के साथ उसकी फुफा कि बेटा रामनारायण का love affair चल रहा था। दोनों सादी भी करनेवाले थे मगर रामनारायण का कोई नौकरी अभीतक नहीं लगा तो रोजी की घरवाले इसे नकार दिए और तुम्हारे साथ रोजी का बिबाह हो गेया।"



बात को अब चारदिन हो चुका है। हमेसा रोजीकी phone को check करता ये जाननेके लिए की अब भी उन दोनों में कोई संपर्क है या नहीं। कोसिस करता कोई पुख्ता सबूत इकट्ठा करनेके लिए।




माफ़ करना मानसिक दर्द का सबसे अच्छी दबा है.....





इसीबारे में रोजी को कुछ नहीं कहता। उसकी phone ही चेक करताजाता। दो बार इसकी अंदर देख भी चुका है। रोजी और रामनारायण के बीच बातचीत भी हो चुकी है। ये प्रणब का द्विधा को और जैदा बढानेके लिए पर्याप्त था। व अब अपना दोस्त का बात को सच ही समझने लगा जो बिलकूल ही गलत था। मानसिक अशांति उतना ही जटिलता की ओर जानेलगा। मानसिक संतुलन धीरे धीरे खोनेलगा प्रणब।



उसे अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहाथा। रात में drink करके फिरता था घर। उसदिन कुछ जैदा ही पिलिथि तो पत्नी रोजी को उतना बुरी तरह से मारा की व बेहोस हो गई। नाक कान से खून निकल रही थी । उसकी जीबन संकटा पन्न अबस्था में था। वेसा एक अबस्था देखके प्रणब का नशा तुरंत ही उतर गेया व बिना देर करतेहुए एक taxi बुलाया और रोजी को नजदीकी hospital लेगया। रोजी की पिताजी और मम्मी वहीं पे आए। दोदिन बाद रोजी बिलकुल स्वस्त होगेई।



रोजी से मां-पापा जब ऐसा एक हालात का कारण पूछे तो व सच सच बतादिया। प्रणब और ससुर जी के बीच कुछ कड़वा बातचीत हो गई। अब पिता जी रोजी को बोलते हैं," चलो बेटी पियर जाना है। ये कोई एक अधम निकला।"



प्रणब मगर बिलकूल चुपचाप था। केवल रोजी को ही बोल रहा था। " मुझ को माफ करदो रोजी आगे ऐसा और कभी नहीं होगा।" सारे बात समझते हुए रोजी तब पिता जी को कहता है," पिता जी, सादी के बात आखिर पति की घर ही पत्नी केलिए स्वर्ग है। पति-पत्नी का प्रेम सात जन्मों के लिए होता है। ऐसे में मैं कैसे पति प्रणब को ऐसे छोड़ पाऊंगी। मेरे प्रति उसका प्रेम का एहसास को मैं भला कैसे भुलपाउंगी। उसदिन जब मैं बेहोश पड़ा था। वहीं पे केवल प्रणब ही मेरे पास थे। व उस वक्त चाहते तो मुझे मरने को छोड़ सकते थे। हॉस्पिटल कियूं लाते। ये उसका मेरे प्रति स्थित प्यार का ही सुबूत है पापा। मुझे अब प्रणब की साथ मेरे घर ही जाना है।" बेटी से ऐसा एक बात सुनकर पिता जी और सारे लोग आश्चर्य चकित होगये। हरकोई रोजी की महत भावना को सरहनाने लगे। रोजी प्रणब को माफ़ करदिया और सभी ने मानसिक अशांति से मुक्त हो गए। फिर से प्रणब और रोजी की जिंदगी में एक नई मौसम खेलगेया।



 दर्द निबारक दबा
दर्द निबारक दबा 




इसीसे ये सिख मिलता है कि किसी को हमेसा के लिए दूर करदेनेसे हमारे या जिसको हम नकारते हैं उसका मानसिक परिसानी खत्म नहीं होता। इस समस्या से निपटनेकेलिए सबसे सरल तथा बलिस्ट माध्यम ," माफ़ करना ही है।"
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