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बात एक हाथ की

बात एक हाथ की

रंगाधार स्वामी एक बहत बड़ा संत और समाजसेवी। भगवा बस्त्र धारी साधु। धर्म कर्म में रुचि रखते ही है मगर साथ ही परोपकार और समाजसेवा को भी अपनी जिबनका ब्रत बनाचुके हैं। भारत का ओडिशा प्रदेश में बलांगीर जिले का एक उपांत ग्रामीण इलाका रामगड में राधा स्वामी नामक एक ट्रस्ट स्थापना पुर्बक समाज सेवा में ब्रती रहते हैं । कभी कबार धार्मिक या कोई सामाजिक कार्यों के लिए दरकार मुताबक इधर उधर भी घूमते हैं। काफी संबेदनशील और विचारशील ब्यक्ति। किसी और की भावनाओं को समझने में या यथायोग्य सम्मान प्रदान करने में माहिर होते हैं।

आज व नजदीकी रेलवे स्टेशन बलांगीर से कोई एक सामाजिक कार्य में शामिल होने के लिए हैद्राबाद की ओर रेल गाड़ी में यात्रा कररहे हैं। गाड़ी अपनी मार्ग और रफ्तार पर स्टेशन पे स्टेशन हो के आगे बढ़ रही है । अब हाल ही में टिटिलागढ़ स्टेशन छोड़ते ही टी. टी.ई स्वामी जी के बागी में घुसे और टिकट टिकट बोलतेहुए अपना काम कर रहे हैं। कुछ ही पल बाद स्वामी जी के पास आये और चिल्लानेलगे ,"क्या बे मुझे बेबकुफ़ समझता है। सीट के नीचे छिपने से बचजाएगा तू ? क्या समझता है अपनिआप को ? बाहर निकल,नहीं तो देखना क्या होगा तेरा हाल।"

टी.टी.ई की उग्रमूर्ति देख के व धीरे धीरे सीट की नीचे से निकलआया । डर की मारे सरीर कांप रहाथा। मुहूं पे कोई उत्तर नहीं था केबल था एक बात,"पैसा नहीं है साहब ।" इधर टी.टी.ई उसको केबल असंजत भाषा मे गालियां देरहे थे। सारे लोग दृश्य को देख ही रहेथे। सचमुझ जैसा एक मृतबत प्राणी। कोई कुछ करनेवाले नहीं । माहौल एकदम अप्रीतिकर सा बनगई थी। 

अब स्वामी जी अपनी जैब से कुछ रुपैया निकालते हैं और टी.टी.ई को उस बच्चे के लिए हैद्राबाद तक एक टिकट देने के लिए बालते हैं। टी.टी.ई टिकट तो देदेते हैं मगर कहते हैं," स्वामी जी इसके लिए टिकट से जैदा खाने के लिए कुछ रुपैया देना उचीत था।" वसामि जी मुस्कुरादेते और टी.टी.ई भी अपनिमार्ग में चलेजाते।

स्वामी जी उस बालक को पूछते हैं,"नाम क्या है बेटा ? काहाँ जाना है ?" व बालक कहता है"मैं महेश हूँ स्वामी जी। तीन शाल होगेया माँ गुजर चुकी है। पिता जी राधुपुर स्टेशन पे कुली काम करते हैं। दूसरी शादी जबसे किए हैं तब से मेरा बुरी समय चलता ही आरहा है। कोई मुझे नहीं पसंद करते। पापा बात बात पर मारते हैं। माँ ठीकसे खाना नहीं देता इसीलिए मैं कहीं पे काम खोजने के लिए जारहा हूँ बाबा।"

स्वामी जी सारे बातें समझते हैं और मनहि मन ये तै करचुके थे की महेश को व हैद्राबाद में स्थित बाल आश्रम में ही दाखिल करवाएंगे जहां उनकी पढ़ाई ठीक से होपाएगा और आगे जाके कोई अच्छा आदमी बन सकेगा। हैद्राबाद स्टेशन जब आया स्वामी जी उसे कहते हैं ",महेश अब तुम्हे और कहीं ओर नहीं जाना है। मेरे साथ आओ तुम्हे पढ़ाई लिखाई करके एक बड़ा आदमी बनना होगा।" व महेश को बालश्रम लेके दाख़िलात करवा दिये साथ ही ये आस्वासना और सलाह देते की "याद रखना बेटा, जिसका कोई नहीं होता उसका खुदा होता । इसीलिए कभी भी उदास मत होना। व हमेसा अच्छा लोगों का साथ देता।" मेरा फ़ोन नंबर रखलो जब भी कभी ऐसा जरूरत हो तो काम में आएगा। इतिना ही बोल के अपनी काम पे चलेगये। महेश वहीं पे रहता,खातापिता,पढ़ाई करता कोई मुसीबत ही नहीं। मनलगा के पढ़ाई में जुट गया।

इसिवक्त पंद्रह शाल बितगेया है। तब का महेश बड़ा होकर इंजीनियर बनचुका है। महीना 1.5 लाख रुपैया तनखा। अमेरिका की सान फ्रांसिस्को में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर की रूप में काम कररहा है। काफी एक खुशहाल जिंदगी जी रहा है।

रंगा स्वामी जी को कोई एक कार्यक्रम में भागलेने के लिए वहीं पे जानापडा। उनको एक होटल में कुछ दिनके लिए रहनापड़ा। महेश खाना खानेके लिए वहिंपे बरार आरहाथा तो एकदिन स्वामी जी को पहचान लिया। होटल की वेटर से जानकारी लेनेके बाद व निश्चित हो गेया। आज स्वामी जी जब लौटने ही वाले थे वेटर की पास जाके बिल कितिना हुआ पूछते हैं तो व बोला,"आपका बिल भुगतान होचुकी है। स्वामी जी आचंम्बित हो रहे थे की कौन उसका बिल देदिया? ठीक उसी समय पर महेश वहीं पे उपस्थित होगेया और प्रणाम करतेहुए बोला,"स्वामी जी मुझे आप पहचानते हो? मैं आपका व महेश हूँ जिसे आप बालश्रम में दाखिल कियेथे। मैं आप का ही बरदान हूँ।" स्वामी जी कहते हैं बात तो सही बीटा लेकिन तुम से इतिने सारे बिल भरवाना मुझे सही नहीं लगता।"
महेश कहता,स्वामी जी मैं आपका भृत्य हूँ। आपकी दयाशीलता और बदान्यता का कोई जवाब नहीं मेरेलिए जो आप किए हैं उसकी तुलना में ये तो कुछ भी नहीं। में इसे मेरा सौभाग्य मानता हूं। आप मेरा अनुग्रह को स्वीकार पुर्बक आशिर्बाद कीजिए।"स्वामी जी महेश को नकार नहीं पाए और आशिर्बाद देके अपनी मार्ग में चलेगये।

यही से ये एक सिख मिलती है कि मंदिर या मस्जिद में जाके दोनों हाथ जोड़के भगबान को केबल प्रार्थना करने से एक हाथ किसी असहाय की प्रति बढ़ाना श्रेयस्कर होता है।

धन्यवाद.....
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