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परिवर्तित चेहरा

परिवर्तित चेहरा
परिवर्तित चेहरा

 

 रसोई में खाना बनाने वाली नव्या के कानों में घुली हुई मिश्री के अंश उसके कानों तक पहुँच रहे थे।  सुनते-सुनते उसका मन मायके की मखमली गलियों में बार-बार पहुंच बना, जहां मां की ममतामयी गोद की शीतल छाया लहराती नजर आई।  "मेरी राजकुमारी के बाल इतने तेजस्वी, इतने रेशमी हैं! ... नव्या की सास-ससुर मालिनी देवी उसी समय अपनी सबसे अच्छी भाभी शुचि के बालों के लिए तेल का उपयोग करने के लिए बात कर रही थी। "ओफ मामा!  अब बस करो, कितना अतिरिक्त खर्च करोगी।  मुझे पार्लर जाना चाहिए, फेशियल और स्पा के लिए, अब अपना घर का बना नुस्खा छोड़ दो!" सेल फोन के डिस्प्ले के भीतर खोई हुई शुची को अचानक पता चला कि वह अतिदेय हो गई है, उसके दोस्तों में उसे शामिल करना चाहिए था जिसे उसने शामिल किया था।  स्प्लेंडर पार्लर जाने की ठानी थी।


''ठीक है बेटा, गुजर जाओ...लेकिन पास प्रैक्टिस सनस्क्रीन लोशन!  मैंने तुम्हारे लिए रात को बादाम भिगोए थे।  छिलका उतार कर स्टोर कर लें, खा लें!...और हाँ!  दाल को दूध में भी भिगो दें।" रख लिया है, नव्या को बता दूँगा, पीस कर रखूँगा। हाँ, कई वैज्ञानिक दुकानों को खंगालने के बाद ... हालाँकि मेरा लाडो पहले से ही एक बहुत बड़ा सैलून है, लेकिन मुझे अंदर से सबसे खूबसूरत दिखना है  सगाई और शादी के दिन वैश्विक! ... मेरा भाग्य बेटा-इन-रेगुलेशन भी लाखों मेरे पास वास्तव में एक है, सटीक राजकुमार!" 


मुहब्बत भरी वाणी का एक-एक शब्द चुभने वाला हो गया।  रिश्तेदारों के इस बीच-बीच में, माँ-बेटी की लाड़-प्यार का यह दृश्य लगभग एक दिन का घटक बन गया था, कभी सोच रहा था कि शुचि अपने से अधिक अमीर रिश्तेदारों के एक अधिक मूल्य के बेटे से शादी कर ले।  ऊँचे-ऊँचे व्यवसायी, धनी घराने के सुदर्शन, मृदुल बालक और छोटे संतुष्ट स्वजनों का समूह।  लड़कों के लिए सबसे अच्छा आह्वान यह हो गया कि महिला को बहुत ही तेजस्वी, अविश्वसनीय रूप से शिक्षित, गृहकार्य में पेशेवर होने की जरूरत है और दुल्हन समारोह को अविश्वसनीय धूमधाम, धूमधाम और प्रदर्शन के साथ तैयार करने की आवश्यकता है।  दहेज के लिए कोई सटीक आह्वान नहीं हुआ, बस महिला के जन्मदिन का जश्न स्वेच्छा से देने की इच्छा के बावजूद।  इस स्नेह पर भीगते हुए परिवेश के भीतर एक अप्रत्याशित दृश्य में बदल गया, जबकि शुची की चिल्लाहट सुनाई दी, "मैमास मेरे नए चमड़े के जूते की उपस्थिति कैसे नम है! यह किसने किया?" 


"अरे! यही मैंने नव्या को पॉलिश करने का निर्देश दिया था!...अरी नव्या! वह कहाँ मर गई? आपने जूते के साथ क्या खत्म किया है! शुची अतिदेय हो रहा है और ... एक घटक को भयानक तरीके से नहीं कर सकता!"  मालिनी देवी शायद बेकाबू हो गई थीं और हमेशा की तरह बहू को कोसने लगीं।  ससुराल वाली शुचि के लिए मां-बाप और बादाम शेक के लिए चाय से रुतबे वाली नव्या अब तक दोनों को नजर नहीं आ रही थीं.  "मम्मी! मैंने अपने जूते अच्छी तरह से शार्प करने के बाद दीदी के कमरे में जमा कर रखे थे...कहाँ है, दिखा दूँगा!"  नकारात्मक महिला अकारण आरोप से हतप्रभ रह गई।  हाथ में फुटवियर लेते हुए बोलीं, ''बहन ऐसे चमकते हुए ढूंढ रही है! वह जरा भी नम नहीं है।'' 


"ठीक है, ठीक है! बहस मत करो! ... कोई भी कभी भी ठीक से काम नहीं करता है, या शुचि को महसूस करना चाहिए था ... बेटे को यह शेक जल्दी से पीने दो, अब आप अतिदेय नहीं हो रहे हैं!"  मालिनी देवी ने चाय का प्याला हाथ में लेते हुए कहा।  जैसे ही उसने बादाम शेक का एक घूंट लिया, शुचि ने कहा, "कितना फीका-महसूस लग रहा है, दीदी! समझ में नहीं आता जब तक आपकी उंगलियां मामा की तरह महकने लगेंगी!"  "यह फीका करने में विफल रहा, बहन! मैंने बनाते समय एक ही समय में थोड़ा सा स्वाद लिया था ...!"  नव्या धीमी आवाज में फंसी बोली।  "अरि करमजलि!..पवित्रता के लिए मुझे इसे तैयार किया गया था


शुची अतिदेय हो रहा है और ... एक घटक को भयानक तरीके से नहीं कर सकता!"  मालिनी देवी शायद बेकाबू हो गई थीं और हमेशा की तरह बहू को कोसने लगीं।  ससुराल वाली शुचि के लिए मां-बाप और बादाम शेक के लिए चाय से रुतबे वाली नव्या अब तक दोनों को नजर नहीं आ रही थीं.  "मम्मी! मैंने अपने जूते अच्छी तरह से शार्प करने के बाद दीदी के कमरे में जमा कर रखे थे...कहाँ है, दिखा दूँगा!"  नकारात्मक महिला अकारण आरोप से हतप्रभ रह गई।  हाथ में फुटवियर लेते हुए बोलीं, ''बहन ऐसे चमकते हुए ढूंढ रही है! वह जरा भी नम नहीं है।''  "ठीक है, ठीक है! बहस मत करो! ... कोई भी कभी भी ठीक से काम नहीं करता है, या शुचि को महसूस करना चाहिए था ... बेटे को यह शेक जल्दी से पीने दो, अब आप अतिदेय नहीं हो रहे हैं!"  मालिनी देवी ने चाय का प्याला हाथ में लेते हुए कहा।  जैसे ही उसने बादाम शेक का एक घूंट लिया, शुचि ने कहा, "कितना फीका-महसूस लग रहा है, दीदी! समझ में नहीं आता जब तक आपकी उंगलियां मामा की तरह महकने लगेंगी!"  "यह फीका करने में विफल रहा, बहन! मैंने बनाते समय एक ही समय में थोड़ा सा स्वाद लिया था ...!" 


नव्या धीमी आवाज में फंसी बोली।  "अरि करमजलि!..पवित्रता के लिए मुझे इसे तैयार किया गया था और आपने इसे खाकर सुखाया भी..फिर यह फीका लगता है!"  मालिनी देवी जलती आँखों से नव्या को खोजते हुए रो पड़ी।  तब तक शुचि, जिसने शेक का पूरा गिलास खाली कर दिया था, उच्चारण करने लगी, "मामा को जाने दो! उसके मायके में किसी ने उसे कुछ सही नहीं सिखाया है! ... लालची होना होगा!"  शुचि का संवाद पूरा होने से पहले, लंबे समय तक नव्या, जो अपनी माँ के अकारण, लगातार फटकार पर ध्यान देने में बदल गई, अचानक अब समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ था, हमेशा की तरह अपना सिर झुकाने के बजाय, उसने  उनमें से प्रत्येक को अजीब निगाहों से देखने लगा।  मां-बेटी दोनों के लिए उनकी ये हरकत अचानक से बदल गई। 

"देखो, दिखावट! इसकी बदतमीजी...बिना बात किए मुहावरा कैसे बोल रहा है!"  माँ-बाप की आँखों से झरते अंगारों की इस खबर को सुनकर भी आजकल नव्या ने न तो अपनी आँखें नीची कीं और न ही अपना सिर ज़मीन पर झुकाया, बल्कि मुस्कुराने लगी और... और फिर धीरे-धीरे हँसने लगी।  पहले एक सुस्त हंसी, फिर एक नुकीला, फिर एक नुकीला।  धीरे-धीरे उसकी हँसी के स्वर को और ऊँचा किया गया।  ...हा हा हा हा हा हा!!  वो हँसती रही, बस हँसती रही...!!!  यह मां-बेटी दोनों के लिए बिल्कुल फर्स्ट रेट इवेंट बन गया।  असंभव!  ऐसा कैसे हो सकता है?  पहले तो दोनों कुछ पल हैरत से उसे ढूंढते रहे।  जब शुचि को होश आया तो वह घबरा गया और नव्या को कंधों से पकड़ लिया।  "केके..क्या कर रही हो भाभी!..क्या तुम कभी लंबे समय से पागल हो गई हो?"  मालिनी देवी ने फिर भी आग भरी निगाहों से उसे खोजते हुए कहा, "अरे यह मनहूस है!... मेरी बेटी हर घंटे जलती रहती है! नव्या की हंसी अचानक बंद हो गई। हैरान होकर, उसने उनमें से प्रत्येक को एक ही समय में देखा।  फिर वह अचानक अपना सिर नीचे करके रोने के लिए आई। कुछ ही समय में वह फूट-फूट कर रोने लगी। फिर रोती रही, रोती रही। समझ में नहीं आया कि उसके रोने में क्या हुआ, उसके भीतर करुणा की उमड़ पड़ी  आँखें, मालिनी देवी को अचानक अपने दिल में एक मोड़ महसूस हुआ। शायद धक्का देने से उनमें सास वापस आ गई, माँ कुछ पल के लिए सामने आ गई थी।


जब उस माँ को अब और कुछ समझ नहीं आया,  उसने नव्या को दोनों उंगलियों से पकड़ लिया और उसे पास के सोफे पर बिठा दिया और पानी से भरे साइड डेस्क पर रखे गिलास को चिपका दिया। पानी के 4 घूंट लेने के बाद, नव्या थोड़ा सामान्य होने लगी, फिर खोज रही थी  उसे गहराई से, उसने पूछा, "क्या हुआ है  आप सभी के लिए एक अप्रत्याशित!  ... आप कभी भी ऐसा नहीं करते थे!  ... निर्देश दिया गया था कि इस पर कोई छाया नहीं आई है।  शुचि भी, जो आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगी, ने कहा, "तुमने अपनी भाभी को डरा दिया था, यह सब अप्रत्याशित क्या हुआ?"  नव्या ने बिना कुछ बोले सिर झुका लिया।  वह चुपचाप जमीन पर उतर कर देखती रही।  "क्या आपका स्वास्थ्य ठीक है... कुछ मत कहो!...मेरे विचार अब बहुत आशंकित हो रहे हैं!"  मालिनी देवी ने हिल-डुल कर उसकी जाँच की। 


नव्या ने धीरे से अपनी गर्दन को सहजता से उठाया, खाली आँखों से माँ-बेटी की आँखों को देखने की कोशिश की, साथ ही कुछ गायब भी पाया।  "अब कुछ तो बोलो!"  मां-बेटी की मिली-जुली आवाज में बदल गया।  दोनों की आंखों में पहली बार नव्या ने भावनाओं की थोड़ी गर्माहट महसूस की।  शायद तभी उसका दिल बहुत देर तक बर्फ के टुकड़े की तरह पिघलने लगा।  उसने धीरे से अस्पष्ट स्वर में बात करने की कोशिश की, "मेरी माँ मुझे उसी तरह से लाड़-प्यार करती थी, माँ! मैं उसकी आँखों का तारा बन गया!...मेरे माथे पर एक शिकन उसे बेचैन कर देती थी!...  मुझे काम सिखाने के दौरान वह इतनी कोमलता से बात करती थी कि मुझे जो कुछ भी सीखने का तरीका कभी नहीं पता था। फिर जब मेरी शादी यहाँ स्थिर हो गई, उसके बाद, उसने अब मुझे अपनी उंगलियों से तिनका उठाने की अनुमति नहीं दी  ताकि उसकी संवेदनशील कली अब थक न जाए, कभी भी पानी के घड़े को रगड़ने न दें, ताकि हथेली की लाली अब कम न हो जाए।  ...पर आजकल कोई देखने वाला नहीं है,... उंगलियों के लिए कोई जगह नहीं बची है, जहां वह कटी या जली न हो, खाना बनाना, झाड़ू-पोंछना-बर्तन करना... बचा हुआ भाग फटा हुआ हो  डिटर्जेंट! ”  दोनों को सुनकर पहली बार बड़ा आश्चर्य हुआ। हैरानी की बात यह है कि नव्या को डांटने या बहस करने के बजाय, वे दोनों चुपचाप आजकल लिखी हुई तस्वीर की तरह चुपचाप उसे खोज रहे थे। नव्या की आवाज अब साफ हो गई थी।


"मेरी दादी की बोली होती थी।  मेरे कानों में अमृत रस घोलो, माँ!  सोनचिरैया मुझसे बातें करती थी...चाची,चाची,चाची...मैं अपनी सभी मौसी के लिए क़ीमती हो गई।  सब मिठाइयाँ बोलते थे, कभी कड़वी भी नहीं सुनी...और आजकल मेरे कानों में एक मीठी बोली तरसती है!" नव्या सिसकती हुई बोली।"  बिदाई के वक्त मैंने वादा किया था, आज से तेरी क़ानूनी हिदायत है अपना घर, लाडो!...अपना घर लगातार जोड़े रखें!... कभी भी मायके के संस्कारों को प्रभावित न होने दें!  , बेटी!  "शायद उनकी आँखों की रौशनी कमज़ोर हो गई है, अब वो मेरी खोखली हँसी, नकली मुस्कान को अब और नहीं समझते, उसे पकड़ लेते हैं, लेकिन क्या अब उन्हें मेरा फीका चेहरा, गड्ढों के भीतर डूबती आँखें भी नहीं दिखतीं?..'  बेटी के कानूनी दिशा-निर्देशों का मामला संवेदनशील है, कुछ का जिक्र करना ठीक नहीं... इससे बेटी को नुकसान हो सकता है!'  मैंने सुना है कि वह एक बार मेरी दादी को बता रही थी।" 


"मेरी शादी के समय, जब मेरा भाई घर पर बढ़ते कर्ज के बारे में चिंता व्यक्त कर रहा था, पिताजी ने कहा, मेरी सबसे अच्छी बेटी है, मेरी शादी उचित स्थिति के घर में हो रही है, मुझे भुगतान करना होगा  बिट प्राइस, बेटा, राज वहाँ नया करेगा! ... अपनी राजकुमारी को वहाँ रानी के रूप में रखेगा, देखो!"  उसने झिझकते हुए कहा, "...राजकुमारी..रानी ... वह कौन है, वह कैसी है, वह अपने कानूनी दिशानिर्देशों के निवास में कैसे रहती है, बाद में कोई नहीं देखता!"  लगातार बात करते-करते नव्या पूरी सांस में बदल गई।  वह कुछ क्षण चुप रही तो ऐसा लगा मानो वहाँ सन्नाटा पसर गया हो।  मन का तूफान अपनी सास और भाभी के मन और दिमाग में सैर करने निकल पड़ा।  मालिनी देवी को अचानक ऐसा लगा जैसे नव्या एक तरफा प्रतिकृति की रक्षा में बदल गई हो, जिनमें से प्रत्येक में उसे अपनी बेटी की नियति से परे और भीतर, अपनी बेटी की नियति को प्रदर्शित करता है, और दृश्य अप्रत्याशित रूप से हर तरफ परिवर्तित हो रहे हैं।


  "आप न तो माँ को बताते हैं और न ही माँ को, कि मुझे शुचि दीदी के धनी कानूनी दिशानिर्देशों से जलन हो रही है, उनके संतुष्ट भाग्य को समझने के लिए!... जैसा कि इसे दोहराया जाना है! ... आपकी अपनी बेटी और दूसरे के बीच सबसे अच्छा अंतर है!  बेटी, बाकी सब बराबर है!"  कुछ देर की चुप्पी के बाद नव्या की दबी आवाज निकली।  मालिनी देवी को लगा कि उनकी सभी इंद्रियां कान और आंखों में बदल गई हैं।  जो उसने कभी सुनने के बाद भी नहीं सुना था, जो अब देखने के बाद भी दिखाई नहीं दे रहा था, अब वह पूरी तरह से एक फिल्म की तरह तलाश में बदल गया।  आपकी माँ, आपका मायका, आपका अपना बचपन, किशोरावस्था, किशोर और शादी।  उनकी आंखों के सामने सब कुछ ढलता हुआ नजर आ रहा था।  ये..ये.. कौन यह सब बेहूदा आवाज़ में, उनके सामने बोल रहा है? 


नव्या बोल रही है?...नहीं, नहीं!...वह शुद्ध बात कर रही है, शायद!!...अरे नहीं, वह खुद बोल रही है!!!  और सोच के बवंडर के बीच, उसने देखा कि नव्या का चेहरा धीरे-धीरे शुचि के चेहरे में और शुचि का चेहरा नव्या के चेहरे में बदल रहा है।  बहू और बहू दोनों के चेहरे आपस में घुल-मिल रहे थे कि अचानक उनमें अपना ही चेहरा नजर आने लगा।  मैं फूट-फूट कर रोया और फूट-फूट कर रोया।

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