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योग्यता की परख


 योग्यता की परख


ये एक ध्रुब सत्य हे दोस्तों,बिभेदता सृष्टि की नियम हे रहेगा l मानब समाज भी इसीसे दूर नहीं l
संसार में तरह तरहकी लोग देखनेको मिलते हें ये कोई अस्चर्य चकित की बात बिलकुल है नहीं। उनके आकृति प्रकृति में भी भिन्नता रहना हे स्वाभाबिक। मगर उनको अछितरह से पहचानना और अपनी कर्तब्य को निर्बहन करना जरुर एक कला इसे हर कोई को हे सीखनी । अन्यथा कुपात्र में दान देनेका कोई नहीं रहता मायेना l सहायता का भी रहता एक परिसीमा इसीलिए किसी को कुछ भी सहायता प्रदान करनेसे जरुर ये उचित होगा जानना की व ब्यक्ति जिस पर आप करने जारहेहो करुणा या सहायता वाकई है इसकेलिए योग्य या नहीं l


योग्यता की परख
योग्यता की परख


इसी बिषय पर आपके समक्ष्य एक कहानी :

 एक लंबे समय से एक आदमी चन्दन नगर में रहता था l वह बहुत आलसी था l इतिना आलसी था की  चबाने वाले खाने से बचने के लिए भी तरल भोजन खाता था l वह जो कुछ करता था वह उसकी खुद की इच्छा का नहीं था l यह दूसरों के ज़बरदस्ती का फल हथा l कोई उसे भोजन से भर देता था तो वह उस भोजन को बहुत अनिच्छा से निगलता था । यह उसके दांतों या मसूड़ोंको नहीं छूता था l

उसका  एक माँ थी। वह बूढ़ा था। वह किसी और के बिल में खच्चर की तरह काम करता था। वह अपने बेटे को हर दिन कमाके खिलाता था। वृद्ध महिला की दुर्दशा देख के पडोसिओं ने उस आलसी को डांटते थे, जो भी उसके घर आता थे उसे सलाह देता थे - "तुम इतने आलसी क्यों हो? क्या तुम्हारी माँ को कुछ कमाके लाकर देना तुम्हारा  कर्तव्य नहीं है? क्या वह शर्मिंदा नहीं है ? इतनी बड़ी उम्र में काम ना करना अक्षम्य अपराध है। क्या तुम ये नहीं जानते ?"  किसी की नहीं सुनता l वह केवल अपना बिस्तर जानता था l दिन भर और रात भर  उसमें सोता ही रहता था ।

एक दिन उसकी बूढ़ी माँ कीमौत हो गई, फिर भी वह बिस्तर से बाहर नहीं निकला। वह अपनी माँ के शरीर के साथ कब्रिस्तान में भी नहीं गया l उसके पड़ोसी गण दयालु थे। उन्होंने बुढ़िया के शरीर को दफनाया l

अपनी माँ की मृत्यु होगई,उसकी मदद करने के लिए कोई और नहीं था फिर भी वह अपरिवर्तित था l वह बिस्तर में ही था l उसके पड़ोसियों के पास उसके स्वयं के लिए बहुत दया था तो खाने के बाद, वे उसे जो चाहते उसे ले आते और उसे डाल देते थे उसके मुँह में। नहीं । पड़ोसी अभी भी उसे खिला रहे थे; मगर व्यस्त थे l वे अब आदमी को खिलाने नहीं जा रहे थे। यह उनका निर्णय था। जिस दिन वे एक साथ मिल गए, वे आलसी आदमी से बोले - "देखो भाई हम कितिना पसीना बहा रहे हैं और खाना जोड़ रहे हैं। तुम आलसी हो और कुछ भी नहीं कर रहे हो। आगे और हमलोग तुमको मदद नहीं करसकते l“ उत्तर में व आलसी बोला ,” हम कुछ  नहीं कर सकते। अब आप भोजन प्रदान करें,  अन्यथा हम मरेंगे l यह हमारी गलती नहीं होगी l ”

उसने थोड़ी देर तक कुछ नहीं खाया। उसका पेट जल रहा था। वह भूखा था। वह बेकाबू था। उसके पास उसे खिलाने के अलावा कोई चारा नहीं था। वह दिन भर चिंतित रहा। वह बिस्तर से उठकर शहर की मुख्य गली में चला गया। वहां वह काफी देर तक सोता रहा। नतीजा ये हुआ की सड़क पर यातायात  बंद होगया था।
गाड़ी चालक, रिक्शा चालक और पैदल चलने वाले लोग नाराज थे l उन्हें इस बात पर गाँव के मुखिया के द्वारा सराहा गया। मुखिया घटना स्थल पर आ गए। आलसी आदमी को  वहाँ से बाहर निकलने का आदेश दिया l लेकिन आलसी स्थिर रहने लगा l एक लकडी की तरह l उसे मौत की सजा सुनाई गई थी l

इस बार आलसी व्यक्ति अपने जीवन को बचाने के लिए जाग जाएगा ऐसी हर किसी की भावना  था। लेकिन अब हर कोई हैरान है l आलसी व्यक्ति अभी भी उसी जगह पर पड़ा हुआ है जैसे की तैसे  l लोग अब सोचने लगेथे की ऐसे लोगों को बचाने में कोई लाभ नहीं l इस बार मौत की सजा देखी जाएगी। उसे उठाकर गाड़ी में डाल दिया जाता। वाहन में अन्य लोगों द्वारा मौत की सजा देनेके लिए लिया जारहाथा l
वे बाजार को पार कर गए और वहाँ एक आलसी की रिश्तेदार गाड़ी में आए। उस क्षण, आलसी आदमी मरा हुआ दिख रहा था। रिश्तेदार ने उससे कहा, "तुम मेरे साथ आओ। मेरी गाय की देखभाल करो। मैं तुम्हें रहने के लिए और खाना खाने के लिए एक घर दूंगा। तुम क्यों मरने जारहे हो ? मैं तुम्हारी मदद करूँगा। "

लेकिन आलसी आदमी फिर भी पेड़ की तरह लेटा रहाथा, भले ही उसे देर हो गई, और चौकीदार फिर से गाड़ी खींचने लगा। वे थोड़े चले गए थे। एक जमींदार ने उसे रोका। व अलसी आदमीको कुछ केला लाके खाने को कहा लेकिन आलसी आदमी चुप था। उसने जवाब नहीं दिया। केवल देख ही रहाथा।

जमींदार ने देखा - यह एक अनोखा आलसी था। उसने पूछा - "तुम क्या ये चाहते हो कि मैं चनों को केले से बाहर निकालूँ और तुम्हें दे दूँ ?"

आलसी आदमी ने अपना सिर हिलाया और आपनी सहम देदिया। जमींदार ने सोचा – सायद यह व आदमी की आखिरी इच्छा है। इसलिए उसने सभी केले में से चॉप लिया और आलसि को खाने को  दिया।

आलसी आदमी ने फिर से जमींदार को इशारा किया और कहा, "आप इन केले को पहिया के पानी की तरह बनालो । जमींदार एक कटोरा लेकर आया। उसने केले को उसमें डाला और पहिया पानी को अपने हाथ में ले लिया। फिर उसने कटोरे को आलसी आदमी को सौंप दिया। मगर अभी व आलसी  जमींदार की ओर इशारा किया कुछ करनेके लिए।

जमींदार गुस्से में था। वह गुस्से से चिल्लाया, "चुप रहो। चुप रहो। तुम्हारा मुँह भी  खोलना मुश्किल हो रहा है। मैं तुम्हारे लिए हूँ।"

उन्होंने कहा -" आलसी कहाँ है तुम, मुझसे क्या चाहते हो ?  मैं क्या हूं ?  तुम्हारा कोई अवैतनिक नौकर, कि मैं तुम्हारा हर बात मानूंगा ? मुझे आप पर दया है l यह मेरी गलती है। आप चाहते हैं कि आप दूसरों के परिश्रम से आप के जीवन का आनंद लें। आप को जीने का कोई अधिकार नहीं है "

फिर उसने पहरेदारों को देखा और कहा, "देर मत करो। उसके सिर को तुरंत ही काट डालो। नहीं तो, वह आलसी आदमी हमारी ही करुणा का फायदा उठाकर हमें समझाएगा कि वह बिना काम के भी रह सकता है।"

योग्यता की परख
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इसी से ये सिख मिलती हे की किसीको मदद करना कोई बुरी बात नहीं है मगर कोई मदद करनेसे पहले ब्यक्ति की उस करुणा या सहायता का योग्यता पर जरुर परख लेनी चाहिए।


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