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सफलता का एक बहत बड़ा रहस्य.....

पुराने जमानेमें असीरगढ़ एक राज्य था। राजा दुष्ट वहिंपे शाशन करते थे। महान प्रतापी राजा। नाम और काम में एक जैसी है। नाम, सेहेरत, इज़्जत, दौलत सभमे पारंगत। उसका एक बहत बडा शेना भी था। हमेसा तो युद्ध नहीं लगता। जब कभी युद्ध से कोई फुरसत मिलता तब चलेजाते शिकार खलनेमें। इसके पीछे उसका एक सोच भी रहता कि सेनामें हमेसा चौकस्ती बनायारहे आलसपन ना आए। उनकी सीकर खेलनेमें ये भी एक बड़ा आदत था कि कहिंपे भी व दुसरीबार शिकार खेलनेमें नहीं जाते।

इसीबार व राज मेहलसे पश्चिमी दिशा की ओर पात्रमंत्री और सेनाको लेके चलते हैं। कुछही दूर जानेके बाद व एक घोर घन जंगलमें पहंचते। पथ भारी दुर्गम। जंगली पशुओं की कोलाहल समीपसे ही सुनाई देरहा है। काफी भयानक लेकिन उतनाही मनोरम तथा कौतूहल पूर्ण परिबेश। दूरसे मंद-मंद पवन लेआता अपनी संग सुगंध चंदन का जो राजाको मजबूर करता सोचनेको खामुसीमे कि, "इँहा ज़रूर कोई चन्दनका बन है उस दिसेमे।" कुछ ही दूर समीपमे। एक नई सोच कौतूहल को बढ़ादेता। राजा दुष्ट को मजबूर करदेता उसी दिशेमे जानेको, सेनाको निर्देश देनेको।

चलते हैं उसी दिसेमे। परिबेश करते एक चंदन ही बनमे। लेकिन एक अद्भुत-सा दृस्य दृस्टिगोचरहुआ उसकी नजरमें। इतिना बड़ा एक घोर जंगलमें देखते हैं एक कुटिया। राजा नजदीक जाते अकेलेमें। देखते कुटिया में केवल एक ही आदमी। एकदम दयनीय अब्सथेमे। नकोई धन नकोई साधन। बाहर दिखिडता केवल कोइलाकि छोटी बड़ी पहाड़। जो उसकी रोजीरोटी चलाजाता। व ब्यक्ति हरदिन चंदन पेड़ काटके जलाता और वहींसे जो कोयला निकलता उसे काफी कम दाम में नजदीकी सेहरमे बेचता। काफी मेहनत करता। जो ये सारे ब्रुतान्त उसीसे ही राजाको सुननेको मिला।

उसका नाम था राधाधब। राधाधब से ऐसा एक बात सुनके राजा आश्चर्य चकित बनगए। मनहि मन सोचने लगे "सायत, आदमी एक मूढ़ ही है।" राजा उसपे दया भाव प्रदर्शन पुर्बक बोलनेलगे, "सुनो, मेरे तरफसे तुम्हारे लिए ये एक भेट की आजसे ये चंदन बन तुम्हारा हुआ। कलसे तुम्हे कोयला का धंदा बंदकलो और इसको सही तरीकेसे इस्तेमाल करके एक अच्छेसे ज़िन्दगी जिलो।" राधाधब काफी खुश होजाता ये सोचके की उसे और इन्हाँ कोई नहीं है कि जो पहले जैसे कभी कोयला बनानेमें मनाकरसके। आगे खुररूमखुल्ला पेडजलाक़े बेधक कोयला बेचेगा।

इसमें कुछ बर्ष चलाजाता। राजा वही रास्तेसे गुजर रहेथे तो राधाधब की बात याद आगेया। राजा वही कुटिया पर चलेजाते ये जाननेके लिए की अब "उसका हाल क्या हुआ है?" मगर काफी निराश बने कियूं की राधाधब की ज़िन्दगी में कोई परिबर्तन ही नहीं। उसे पूछते हैं, "अरे राधाधब तुम्हें मैं इतना बड़ा चंदन बन का मालिक बनादिया फिर भी तुम्हारा हालात जैसी ही वैसी? अब क्या काम करतेहो?" उत्तर में राधाधब कहता"मैं और करसकता महाराज अब भी कोयला ही बेचता।"

राजा जी अब उसे काफी गालियाँ देते और कहते, "आगे और तुम्हे कभी कोयला नहीं बेचनेका। आज ही एक छोटासा चन्दन लकड़ी लेके सेहर जाके बेचनेको प्रयास करो।" इतना ही कहकर राजा वहींसे निकलजाते। राधाधब भी राजाके बात अनुसार एक छोटीसी चंदन लकड़ी लेके नजदीकी सेहर जाता। एक आदमी राधाधब की हाथमे चन्दनकी लकड़ी देखके कहता। मुझे देदो में तुम्हे पूरे देश रुपैया देदुंगी। राधाधब सोचता इतनाही क्या हड़बड़ी है आगे देखते हैं इसकी दाम क्या है। फिर आगे चलता। आगिमे और एक आदमी कहता इसे मुझे देदो मैं तुम्हे पूरे हजार रुपैया दुंगी। नहीं बोलके वहींसे राधाधब फिर आगे निकलता तो फिर कोई एक आदमीसे मिलता जो उसे चंदन लकड़ी की बदलेमें तीन हजार रुपैया देदेता उर लेजाता। अब जब इतनसी छोटी चन्दनकी लकड़ीसे इटनिबड़ी रकमकी कमाई देखके राधाधब काफी खुस हुआ मगर उतनाही आत्मग्लानि भी हुआ कियूं की उसे मेहसूस ये होगेया की व कितिना मूर्खता। सोच रहाथा, "काश पहलेसे ही मुझे पताहोता?

सफलता का एक बहत बड़ा रहस्य.....

दोस्तों, यहिसे ये एक सिख मिलती है कि अजन्तानता सफलताका एक बहत बड़ा समस्या है। इसीलिए हमेसा कुछ जानेका रुचि रखना चाहिए जो सफलताका एक बहत बड़ा रहस्य है। 
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