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निंदा जीबन बिकाश का मार्ग बनसकता है.....

एक निपट ग्रामीण इलाकेमें एक गांब मधुबन। ऐसे तो गांवोंमें रहनेवाले लोग सरल होते ही मगर निराकार उनमे से सबसे जैदा सरल ब्यक्ति। गुण में जैसे एक साधु। न कोई चल कपट, न किसिपे कोई हिंसा या फिर अपनी पर अहंकार। एकदम-सा शांत-सरल। निराडम्बर पूर्ण जीबन जापान प्रणाली मगर मूर्ख नहीं। काफी ज्नानबान।

काफी खुशहाल उनका एक ज़िन्दगी चल रहाहै। घरमें चार बच्चे और पत्नी रोमा। मध्यवित्त एक परिबार। गांब में अपना पैतृक कुछ जमीन जायदात है उसे कमा कुठाके परिबार गुजारना मुश्किल नहीं मगर स्वछल भी नहीं कहाजासकता। बाकी समय निराकार जबकभी कोई फुरसत की समय पाता तो बेकार नहीं गबाता। कुछ न कुछ अच्छा ही काम करलेता। कभी व कहिंपे पेड़ लगाता तो फिर कभी किसीके सहायता करलेताथा। परिणाम स्वरूप गांब में कुछ सीमित लोगों के साथ ही उसका संपर्क का निबिडता था।

उनमें स्थित चारित्रिक सत स्वभाव हेतु व कभी कोई एक भी ग़लत काम नहीं करता जो बाकी सारे लोगोंके लिए सबसे बड़ा एक मुसीबत रहता। इसीलिए निराकार सभीके सरकी गर्मी बन चुकी थी। जहाँ भी व है कोई ग़लत काम नहीं बनसकता। जब कभी भी कोई ग़लत सुनता तो"ऐसा नहीं होनी चाहिए" बोलके सभीको कहताजाता। शायद ये उनका एक बडासा दुर्गुण था जिसपर कुछ लोग उसपर जलते थे और समक्ष्य तो कुछ नहीं कहते पीछे भलीबुरी कहलेते।

"जीबन जीने का नाम है" समझके जोलोग जीबन बिताते हैं निराकार उनके एकदम बिपरीत था। उसे कौन भला कियूं अच्छा कहेगा? फिर उनका भी इन सारे बातोंपर कोई असर नहीं पड़ता। हमेसा अपनी ही जीबन शैली में जीबन जापान करताजाता। उनकी भीतर स्थित दृढ़ मनोबल उसे हमेसा सही राहोंपर लेते जाता। जैसा भी एक प्रतिकूल परिस्तिति उनकेलिए कियूं न हो उसे निपटने में उनमें काफी खास एक समर्थता रहता। दिन वा दिन निराकार में सात गुण की बीज अब सही तरह से पल्लवित होक पुष्पफल आने लगा है।

जीबन आगे और जैदा सरल तथा सहज बनते जारहा है। 。 मनमें हरपल शांति। छंन्द कपट रहित जिंदगी। दिलमें आनंद ही आनंद। जीबन का असली मजा उसे मिलता ही जारहा है। जब ज़िन्दगी किसीके लिए मुसीबत होता वहिंपे निराकार के लिए ज़िन्दगी एक मजा है।

जब जीबन जिनमें मजा आया तो और जैदा अच्छा काम करनेके लिए रुचि बढ़ गेया, बढ़ते गेया की जीबन सफलता की अंतिम शिखर को छुली।

इँहा महाकबी कालिदास जी के जीबन चरित्र का उपलक्ष्य दिआजासक्त। कालिदास जी जिबनकी पहली चरण में एक महान मूर्ख ही थे जो बैठाहुआ शाखा को अपनिआप कुढहाली में काटने वाले थे। ये भी पता नहीं रहता था कि जब", मैं बैठने वाले शाखा पेंडसे अलग होजाएगी तब उसका हाल क्या होगा?"


निंदा जीबन बिकाश का मार्ग बनसकता है.....


लोग अक्सर ये कहते हैं, "भाग्य जिसका साथ देता तो उसका पीछे भी एक ललाट होता।" ऐसा ही हुआ था कालिदास की ज़िन्दगी में। एक राजकन्या की साथ उसका बिबाह हुआथा व फीर एक ज्यान सभामें पंडित लोगोंको हराके मगर ये एसा एक संजोग का खेलथा।

बिबाह की उपरांत जब व राजकन्या को ये पता लगता कि उसकी पति एक महान मूर्ख है तो व उसे बुरीतरह से निंदा और भर्शना करनेलगे कालिदास संभल नहीं पाए और माँ सरस्वती जी को स्मरण करतेहुए गंगा जी में आत्मबि-सर्जन करने ही वालेथे तब देबि सरस्वती प्रकट होतेहुए संसार की सबसे बड़ा ज्यानी होनेका बरदान दियेथे। ऐसे काभिकि व महा मूर्ख कालिदास अब महान पंडित बनके अनमोल कीर्ति जगत को देगये।

इसीसे ये शिख मिलती है कि कभी-कभी निंदा भी किसीकेलिए जीबन बिकाशका एक मार्ग बनसकता है जो ब्यक्ति की सकारात्मक सोचपर निर्भर है। 
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