समस्या समाधानका नया एक
मार्ग
कोई भी जीबन समस्या रहित नहीं है दोस्तों I सत्य ये भी हैकि समस्या बिहीन जीबन
जिनका कोई मजा नहीं होता I समस्याही किसी ब्याक्तिको जीबन संग्रामं में ब्रती
बनाता प्रेरणा देता I जिसकी बलपर ब्यक्ति किसी भी महत आकांक्ष्याकी पूर्ति करनेके
लिए आपनी आपको उत्सर्गिकृत करके जिबनको नै एक बुलंदिपर लेजानेको समर्थ बनता I
जब कभी कोई समस्या जीबन में आता समाधान के लिए ब्यक्ति तब खोजने को
ब्यातिब्यस्त बनता इसकी उचित समाधान का पन्था I एक समस्या का होसकता बहुबिध समादान
का मार्ग मगर अब आइए एक कहानिकी माध्यमसे ये जाननेको कोसिस करते की दृढ़ मनोबल और
पबित्र चिंता कैसे समस्या समाधानका मार्ग बनता :
भगवान भृगु रुसी के
पुत्र मृकंड का कोई पुत्र नहीं था। रुसी मृकंड चिंतित थी कि उसे पितृतर्पण स्थिति
से वंचित किया जाएगा क्योंकि उसके पास बेटा नहीं था। अंत में, उन्हें अपनी
पत्नी के साथ एक बेटा होने की उम्मीद के साथ तपस्या किया था। उसकी तपस्या के
फलस्वरूप उसे एक पुत्र हुआ। मृकंड ने बेटे का नाम रखा। मार्कंडेय सिर्फ 5 साल के हैं। एक
पूर्ण योगी रुसी झोपड़ी में आया। योगी जीको साष्टांग दंडवत करते वक्त, बालक को
देखने के लिए रुषी व्याकुल था। यह पूछे जाने पर कि उनके पिता क्यों चिंतित थे, योगी ने कहा, 'रुशिबर! आप का यह
कुमार बहुत सुंदर और सुधरा हुआ दिखता है। लेकिन दुर्भाग्य से वह केवल छह महीने आयुकी
है। यह बिधि का बिधान है।
सप्तर्षि ने कहा- हे सृष्टि के रचयिता! लड़के की जिंदगी
खत्म हो रही है। आपकी तरह,
हम एक संत होने
के लिए धन्य हैं। यह आशीर्वाद कितना सत्य है? क्या ब्रह्मा
लड़के के व्यवहार से बहुत खुश होंगे। "लड़के का जीवन मेरे जैसा ही होगा," उन्होंने कहा।
इस उपहार के परिणामस्वरूप, मार्कंडेय एक रूसी संत बन गए। बहुत से लोग इस
बात से अनजान हैं कि ईश्वर की अदृश्य शक्ति निकट है और हमें निराशा की अँधेरे में
चलनेकी वक्त हमेसा पासमें रहता है , इसे अनेक लोग जान नहीं पाते I अगर दृढ बिस्वाश
और पबित्र चिंता है तो भगबान ही सारेकाम करहिदेते I
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