दोस्तों,हम सभी को ये भली भांति पता है की जीबन है तो समस्या होता ही है। इँहा कोई एक भी समस्या रहित नहीं है। इसीलिए तो जीबन का दूसरा नाम समस्या भी कहलाता है। अबश्य दुनियां की सबसे श्रेस्ठ जिब होने के नाते इंसान में जरूर रहता कुछ क्षयमता जो उसे ढेर सारे समस्यायों को प्रतिहत करने में देता सहायता। फिर भी जिबनकी प्रकृत लक्ष्य को नसमझने के हेतु डूबा रहता अबास्तबीक चीजों के भ्रांत धारणा की पीछे। जहां से पाताजाता केवल दुःख और अनुताप। सहता जाता अकथनीय पीड़ा। जीबन में आजाता संकटा पर्ण स्थितियां। निपटने के लिए लगातार जारी रहता कोशिशें। वहीं पे महसूस होता एक अच्छी इंसान के साथ अच्छा संपर्क की। जिसकी प्रभाव से जीबन में आजाता परिबर्तन और जीबन निखरने लगता। दुःख संतापित जीबन का होजाता अंत।
आज इस बिसय पर आधारित एक कहानी आपके समक्ष्य। कैसे अच्छा एक आदमी के साथ संपर्क बननेसे आजाता किसी और कि की सोच विचार में परिबर्तन और जीबन में आजाता निखार:
हरि दास एक किशोर बयश की बालक। काफी संकटा पर्ण एक जीबन चल रहा है उसका। गरीबी में रहता। पिता जी कबसे इहलीला सम्बरण कर चुके हैं। घर मे बिधबा माँ के साथ संसार एक दुःखद जैसे तैसे चलता है। हमेसा जीबन में धन की कमी राहजाता तो उनकी हमेसा एक ही प्राथमिक ये एक प्रयास रहता कि धन कैसे कमायाजाए ताकि एक खुशाल जीबन बिताया जासके। मगर व करेगा क्या ? कुछ भी समझ में नहीं आरहा है। फिर भी उसका सर्बदा रहता उसी एक ही अनुचिन्ता।
कहते है लोग ,इच्छा है तो सुयोग अपनी आप आही जाता है। ठीक अनुरूप हुआ। एक दिन अचानक व किसीसे सुनलेता की पंडित काशीनाथ जी जो गांब की ही कुछ ही दुरिपे एक निरोला स्थान शांतिबन में एक अकेला जीबन ब्यतीत करते हैं उसके पास एक पारस मणि है जिसे लोहेसे लगानेसे लोहा सोना बनजाता है।
जबसे हरिदास ये बात सुना है तब से आंख में नींद ही नहीं। हमेसा सोचता रहता कि कैसे पंडित जी से उसे हासिल कियाजासके ताकि जीबन में कभी भी आगे और कोई धन की कमी ना राहसके। सोचते सोचते एक निर्णय लिया कि तुरंत ही पंडित जी के साथ मुलाकात किया जाए। शुभस्य शीघ्रं नियम को अपनाके अपना अभियान में निकल गेया शांति बन में। मुलाकात करने को पंडित जी के साथ।
तब पंडित जी एक पेड़ की नीचे अकेले में कोई शास्त्र अध्ययन में ब्यस्त थे। हरि दास पासजाकर यथा बिधि मान्य करते हुए पंडित जी से अपना आनेका अभिप्राय की बारेमें बताया। पंडित जी तुरंत ही हंसते हुए हरि दास को कहते हैं, अरे ये एक सामान्य बात। जो तुम्हारे इच्छा। लेजाओ। वही कमरे में कहिंपे एक कूड़ा में होता होगा। ढूंडलो और लेजाओ मगर एक बात समझलो ये सामान्य सा एक चीज तुम्हारे जिबनको अच्छा नहीं बनासकेगा। फिर भी जैसा तुम्हारा इच्छा।अंदर जाओ और ढूंडलो।
पंडित जी के आदेश अनुसार हरि दास अंदर जाता है। देखता है कि सचमूच व पारस मणि एक अबहेलित अबस्था में कमरेकी कोई एक कोने में कबसे पड़ा है। इससे व समझने लगा कि पंडित जी के पास इससे भी कोई और जैदा बड़ा चीज जरूर है नहीं तो ये पारष मणि जैसे ऐसे एक चीज को व कियूं इतिना हतादर करते। उसे ही हासिल करना चाहिए।
ऐसे ही सोचते हुए हाथ में पारष मणि पकड़ के पंडित जी के पास आपहंचा और कहनेलगा, पंडित जी मुझे भी इसे नहीं चाहिए। मुझे व चीज देदो जिससे मेरे जीबन का सारे दुःख मिटसके। तब पंडित जी कहते हैं, ठीक है व तुम्हे तब मिलेगा जब तुम इस पारष मणि को नदी में विसर्जन करके आओगे। हरि दास का उसुक्ता बढ़ता गेया। जैदा कुछ बड़ा पानेकी आशा में व वेसा ही किया जैसा पंडित जी ने कहा और पंडित जी के पास आगेया।
कहता,पंडित जी आपके आदेश मुताबक में व पारष मणि को जल में विसर्जन करके आया हूँ अब मुझे दया पुर्बक आप व चीज देदीजिए जिससे मेरा सारे दुःख खंडित होजाए। पंडित जी तब उपदेश छल में कहते हैं, सुनलो,अपनी आपको पहचाननेको प्रयास करो। अपनिपे भरोसा रखो और कभी भी किसी की दयाका पात्र मत बनो। ये सारे उपदेश को जीबन में उतारने को प्रयास करो। तुमहारे जीबन से सदाके लिए दुःख संकट दूर हो जाएगी। वेसा ही हुआ। परबर्ती जीबन में हरी दास इसे पाथेय करके एक अच्छा जिंदगी बितासका।
यही से ये सिख मिलती है कि अच्छि संगत हर संकट का मुक्ति की मार्ग है। इसीलिए हमेसा जीबन में अच्छी संगत या संपर्क बनाके जीबन को और बेहतर बनालेनि चाहिए।
आज इस बिसय पर आधारित एक कहानी आपके समक्ष्य। कैसे अच्छा एक आदमी के साथ संपर्क बननेसे आजाता किसी और कि की सोच विचार में परिबर्तन और जीबन में आजाता निखार:
हरि दास एक किशोर बयश की बालक। काफी संकटा पर्ण एक जीबन चल रहा है उसका। गरीबी में रहता। पिता जी कबसे इहलीला सम्बरण कर चुके हैं। घर मे बिधबा माँ के साथ संसार एक दुःखद जैसे तैसे चलता है। हमेसा जीबन में धन की कमी राहजाता तो उनकी हमेसा एक ही प्राथमिक ये एक प्रयास रहता कि धन कैसे कमायाजाए ताकि एक खुशाल जीबन बिताया जासके। मगर व करेगा क्या ? कुछ भी समझ में नहीं आरहा है। फिर भी उसका सर्बदा रहता उसी एक ही अनुचिन्ता।
कहते है लोग ,इच्छा है तो सुयोग अपनी आप आही जाता है। ठीक अनुरूप हुआ। एक दिन अचानक व किसीसे सुनलेता की पंडित काशीनाथ जी जो गांब की ही कुछ ही दुरिपे एक निरोला स्थान शांतिबन में एक अकेला जीबन ब्यतीत करते हैं उसके पास एक पारस मणि है जिसे लोहेसे लगानेसे लोहा सोना बनजाता है।
जबसे हरिदास ये बात सुना है तब से आंख में नींद ही नहीं। हमेसा सोचता रहता कि कैसे पंडित जी से उसे हासिल कियाजासके ताकि जीबन में कभी भी आगे और कोई धन की कमी ना राहसके। सोचते सोचते एक निर्णय लिया कि तुरंत ही पंडित जी के साथ मुलाकात किया जाए। शुभस्य शीघ्रं नियम को अपनाके अपना अभियान में निकल गेया शांति बन में। मुलाकात करने को पंडित जी के साथ।
तब पंडित जी एक पेड़ की नीचे अकेले में कोई शास्त्र अध्ययन में ब्यस्त थे। हरि दास पासजाकर यथा बिधि मान्य करते हुए पंडित जी से अपना आनेका अभिप्राय की बारेमें बताया। पंडित जी तुरंत ही हंसते हुए हरि दास को कहते हैं, अरे ये एक सामान्य बात। जो तुम्हारे इच्छा। लेजाओ। वही कमरे में कहिंपे एक कूड़ा में होता होगा। ढूंडलो और लेजाओ मगर एक बात समझलो ये सामान्य सा एक चीज तुम्हारे जिबनको अच्छा नहीं बनासकेगा। फिर भी जैसा तुम्हारा इच्छा।अंदर जाओ और ढूंडलो।
पंडित जी के आदेश अनुसार हरि दास अंदर जाता है। देखता है कि सचमूच व पारस मणि एक अबहेलित अबस्था में कमरेकी कोई एक कोने में कबसे पड़ा है। इससे व समझने लगा कि पंडित जी के पास इससे भी कोई और जैदा बड़ा चीज जरूर है नहीं तो ये पारष मणि जैसे ऐसे एक चीज को व कियूं इतिना हतादर करते। उसे ही हासिल करना चाहिए।
ऐसे ही सोचते हुए हाथ में पारष मणि पकड़ के पंडित जी के पास आपहंचा और कहनेलगा, पंडित जी मुझे भी इसे नहीं चाहिए। मुझे व चीज देदो जिससे मेरे जीबन का सारे दुःख मिटसके। तब पंडित जी कहते हैं, ठीक है व तुम्हे तब मिलेगा जब तुम इस पारष मणि को नदी में विसर्जन करके आओगे। हरि दास का उसुक्ता बढ़ता गेया। जैदा कुछ बड़ा पानेकी आशा में व वेसा ही किया जैसा पंडित जी ने कहा और पंडित जी के पास आगेया।
कहता,पंडित जी आपके आदेश मुताबक में व पारष मणि को जल में विसर्जन करके आया हूँ अब मुझे दया पुर्बक आप व चीज देदीजिए जिससे मेरा सारे दुःख खंडित होजाए। पंडित जी तब उपदेश छल में कहते हैं, सुनलो,अपनी आपको पहचाननेको प्रयास करो। अपनिपे भरोसा रखो और कभी भी किसी की दयाका पात्र मत बनो। ये सारे उपदेश को जीबन में उतारने को प्रयास करो। तुमहारे जीबन से सदाके लिए दुःख संकट दूर हो जाएगी। वेसा ही हुआ। परबर्ती जीबन में हरी दास इसे पाथेय करके एक अच्छा जिंदगी बितासका।
यही से ये सिख मिलती है कि अच्छि संगत हर संकट का मुक्ति की मार्ग है। इसीलिए हमेसा जीबन में अच्छी संगत या संपर्क बनाके जीबन को और बेहतर बनालेनि चाहिए।
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