अध्भुत सा एक जमाना चलरहा है दोस्तों " जमाना ऐसे चलता है " कि नाम पे। ऐसा एक लब्ध प्रतिष्टित trend चल रहा है कि जिसका स्वाध्याय और कर्तब्य निष्ठा पर कोई संपर्क या तालमेल बिलकुल है नहीं। बास्तविकता से कहीं कोसो दूर। हर कोई दिखता कुच्छ और करता कुच्छ। सत्यता से न कोई संपर्क न कोई ठोस आधार। ऐसा एक मानसिकता का क्या है यथार्थता ? कियूं लोग ऐसा एक कलुषित संस्कृति को अपनाने को रहते इतिना ब्याकुल ? श्रद्धा से दीक्षित होजा -ते एक भांड और अर्थ हीन आदत में ? आसंका इन्हां उपजना स्वाभाविक की कारण केवल पाना चंद सुख और सहज प्रणाली अपनाकर आगे निकल जाना। जो भी हो परिणाम ? " आपे जिनेसे बापू का नाम " अर्थ को चरितार्थ करते हुए ऐसा एक कैसा भी जीबन जी लेना और अपनी आप को लब्ध प्रतिष्टित बोलकर अपना ही ढोल अपनी आप बजाना हास्यास्पद ही है।
हास्यास्पद और आस्तार्यजनक एक कार्य प्रणाली चल रहा है,दोस्तों। दिन प्रतिदिन जीबन में हमलोग हमेसा हर तरफ मेहसूस कर रहे हैं कि जमाने में निन्यानबे प्रतिसत लोग अपना काम नहीं करते। जब कोई करते भी तो काम पे व निष्ठा नहीं होता। ऐसे में सूत्रपात होता एक विश्रृंखलित जीबन प्रणाली की धारा जो बाकी सारे सम्पर्कित कार्य धारा को अपनी आप प्रभावित करता जाता। मजबूर करता उन सारे को भी विश्रृंख -लित होने को। एक अजीब सी मानसि -कता विकसित होताजाता हरकिसीकी मस्तिष्क में कई " ये संसार का रीत है।" तब मन में हिचकिचाहट नहीं रहता इसे अपनाने में।
फल मिलता लेकिन वही " जैसी करनी वैसी भरनी " की आधार पे। मिलता हमेसा दुःख, अशांति,क्लेश और अनुताप आदि। कुच्छ भी अच्छा नहीं होता परिणाम अंत में। बिबेकशीलता के अंतिम स्थिति में भी अपना कर्तब्य निष्ठा को अपनाकर एक बास्तविक और अर्थ पूर्ण जीबन प्रति सकारात्मक मानसिकता उजागर ना होना बास्तविक एक दुःख की बात।
जहां देखो ऐसा एक हालात। कोई नहीं तैयार करनेको अपना काम। एक पिता अपने ही बच्चे के लिए करनेको अपना कर्तब्य है नाराज़। बेटा अपने ही माता- पिता का करता हतादर। नहीं बनता बुढापे में कोई सहारा। पति-पत्नी में नहीं है व प्रेम की धारा,विस्वसनीयता। एक दूसरे पे निष्ठाबान कर्तब्य की। एक शिक्षयक नहीं चाहता करनेको निष्ठा के साथ अध्यापन। फल स्वरूप सारे ओर नजर आता एक अब्यबस्तित स्थिति। बढ़ता जाता एक अजिबसी कलुषित culture, फैलता जाता बिशृंखला। बदलदेता जीबन का गतिपथ और लक्ष्य। बढाताजाता एक ऐसा मनोबृत्ति ," जमाना बड़ा बुरा है " बोलके अपना दोष ढंकने का एक सरल और अभिनब तरीका की।
आज आप के समक्ष्य ऐसा एक प्रसंग कहानी की रूप में जहां कर्तब्य निष्ठा की अभाव से कैसे एक आदमी का जीबन अंत हिजाता:
पता नहीं आज से पिछले दो दिन से कियूं रतिकांत को बुखार और लगातार उल्टी होता ही जारहा है। घर की सारे टोटके खत्म होचुकी है फिर भी तबियत में कोई सुधार है ही नहीं। ऐसे में घवाले नजदीकी primary hospital लेगये उसे इलाज के लिए। वहिंपे कुछ टैस्ट कियाजाता मगर पता नहीं तुरंत ही उसे अचानक refer कियाजाता district hodpital को । ये कहकर की मामला गंभीर है। कोई treatment बिना आगे पठादेते।
घरवाले घबराके तुरंत ही उसे लेजाते district hospital,वहिंपे भी अनुरूप परिस्थिति। चलतारहा केवल टेस्ट पर कोई treatment नहीं होता। वे लोग भी refer करदेते उससे जैदा बड़ा hospital को।
घरवाले फिर रतिकांत को वहिंपे लेजाते मगर वाहां भी the same परिस्थिति। चलताजाता टेस्टपे टेस्ट । काफ़ी समय लगजाता सारे टेस्ट होनेको। तबतक कोई treatment नहीं होता।
इसी बीच मरीज़ की जिंदगी और बुरा बहजाता। परिशेष में वहिंपे ही रतिकांत का मौत होजाता। कारण केवल कर्तब्य निष्ठा का अभाव। ट्रीटमेंट नहीं केवल refer चलतागेया।
यहीं से ये सिख मिलती है दोस्तों की कर्तब्य निष्ठा का अभाव ब्यबस्था को बिश्रृंखलित करनेके साथ साथ जीबन के लिए खतरा पैदा करता है। इसीलिए हमेसा हरकिसी को कर्तब्य निष्ठ ब्रत में दीक्षित होनी चाहिए।
हास्यास्पद और आस्तार्यजनक एक कार्य प्रणाली चल रहा है,दोस्तों। दिन प्रतिदिन जीबन में हमलोग हमेसा हर तरफ मेहसूस कर रहे हैं कि जमाने में निन्यानबे प्रतिसत लोग अपना काम नहीं करते। जब कोई करते भी तो काम पे व निष्ठा नहीं होता। ऐसे में सूत्रपात होता एक विश्रृंखलित जीबन प्रणाली की धारा जो बाकी सारे सम्पर्कित कार्य धारा को अपनी आप प्रभावित करता जाता। मजबूर करता उन सारे को भी विश्रृंख -लित होने को। एक अजीब सी मानसि -कता विकसित होताजाता हरकिसीकी मस्तिष्क में कई " ये संसार का रीत है।" तब मन में हिचकिचाहट नहीं रहता इसे अपनाने में।
फल मिलता लेकिन वही " जैसी करनी वैसी भरनी " की आधार पे। मिलता हमेसा दुःख, अशांति,क्लेश और अनुताप आदि। कुच्छ भी अच्छा नहीं होता परिणाम अंत में। बिबेकशीलता के अंतिम स्थिति में भी अपना कर्तब्य निष्ठा को अपनाकर एक बास्तविक और अर्थ पूर्ण जीबन प्रति सकारात्मक मानसिकता उजागर ना होना बास्तविक एक दुःख की बात।
जहां देखो ऐसा एक हालात। कोई नहीं तैयार करनेको अपना काम। एक पिता अपने ही बच्चे के लिए करनेको अपना कर्तब्य है नाराज़। बेटा अपने ही माता- पिता का करता हतादर। नहीं बनता बुढापे में कोई सहारा। पति-पत्नी में नहीं है व प्रेम की धारा,विस्वसनीयता। एक दूसरे पे निष्ठाबान कर्तब्य की। एक शिक्षयक नहीं चाहता करनेको निष्ठा के साथ अध्यापन। फल स्वरूप सारे ओर नजर आता एक अब्यबस्तित स्थिति। बढ़ता जाता एक अजिबसी कलुषित culture, फैलता जाता बिशृंखला। बदलदेता जीबन का गतिपथ और लक्ष्य। बढाताजाता एक ऐसा मनोबृत्ति ," जमाना बड़ा बुरा है " बोलके अपना दोष ढंकने का एक सरल और अभिनब तरीका की।
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कर्तब्यनिष्ठ |
आज आप के समक्ष्य ऐसा एक प्रसंग कहानी की रूप में जहां कर्तब्य निष्ठा की अभाव से कैसे एक आदमी का जीबन अंत हिजाता:
पता नहीं आज से पिछले दो दिन से कियूं रतिकांत को बुखार और लगातार उल्टी होता ही जारहा है। घर की सारे टोटके खत्म होचुकी है फिर भी तबियत में कोई सुधार है ही नहीं। ऐसे में घवाले नजदीकी primary hospital लेगये उसे इलाज के लिए। वहिंपे कुछ टैस्ट कियाजाता मगर पता नहीं तुरंत ही उसे अचानक refer कियाजाता district hodpital को । ये कहकर की मामला गंभीर है। कोई treatment बिना आगे पठादेते।
घरवाले घबराके तुरंत ही उसे लेजाते district hospital,वहिंपे भी अनुरूप परिस्थिति। चलतारहा केवल टेस्ट पर कोई treatment नहीं होता। वे लोग भी refer करदेते उससे जैदा बड़ा hospital को।
घरवाले फिर रतिकांत को वहिंपे लेजाते मगर वाहां भी the same परिस्थिति। चलताजाता टेस्टपे टेस्ट । काफ़ी समय लगजाता सारे टेस्ट होनेको। तबतक कोई treatment नहीं होता।
इसी बीच मरीज़ की जिंदगी और बुरा बहजाता। परिशेष में वहिंपे ही रतिकांत का मौत होजाता। कारण केवल कर्तब्य निष्ठा का अभाव। ट्रीटमेंट नहीं केवल refer चलतागेया।
यहीं से ये सिख मिलती है दोस्तों की कर्तब्य निष्ठा का अभाव ब्यबस्था को बिश्रृंखलित करनेके साथ साथ जीबन के लिए खतरा पैदा करता है। इसीलिए हमेसा हरकिसी को कर्तब्य निष्ठ ब्रत में दीक्षित होनी चाहिए।
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