ऐसा एक कहाबत है दोस्तों की " घर के लिए बुड्ढा और क्ष्येत के लिए गड्ढा" जरू -री होते हैं। इसका मतलब ये है कि घर को श्रुंखलती तथा परिमार्जित ढंग से चलाने लिए एक बुजुर्ग का जरूरत रहता है। जिसके पास खूब सारे अनमोल अभिजन्यता होता घर परिबार को किसी भी प्रकार का संकट से दूर लेजाने को। जैसे एक क्ष्येत में जब एक जल पूर्ण गड्ढा होता तो व क्ष्येत कभी भी सूखा से पीड़ित नहीं होता। जब कभी ऐसा एक स्थिति उपस्थित होता इनके मेहसूस होता प्राधान्यता। लगाव लगजाता उनसे अपनापन का।
" अपनापन एक भावना " है दोस्तों,जो एक जिबनको सरस सुंदर बनाने में प्रमुख भूमिका अदाकारता। इसके बिना जीबन में आजाता अकेला पन। जीबन बन जाता सूखा पीड़ित क्ष्येत जैसे। जीबन की सारे आशा,अभीप्सा मरजाता वहीं की वहीं। दूर दूर तक जीबन की गतिपथ में छाजाता सन्नाटा। तब फिर मेहसूस होता ये अपनापन सब्द का गुंजरण। वहीं पर भी ईच्छा होता फिरसे एकत्रित करनेको और इसीमे ही सिमट जानेको जो सारे बिछड़े हुए भूतकालीन अपनेपनकी अनुभूतियों में। ऐसा करने का अंतराल में लुक्कायित रूप में रहता आया कि यहीं से कुच्छ सुकून मिलजाए मगर ऐसा एक पल में दोनों सुकून की और दुखद अनुभूतियां केवल देते दुःख और दुःख जैसे भी परिस्तिति कियूं न हो भवाबेग एक ही होता। नहीं होता सुकुनकी नाम और निशान हमेसा मिलता दुःख और बेदना।
अभी तक हम लोग करते आएहे अपनापन का बिरोधा भाष का बातें मगर इसका सकारात्मक असर है अनगिनत और अलौकिक। आज इसपर हमलोग एक कहानी की रूप में करेंगे कुछ बातें:
सागरिका और सौरभ में आज भी है व अंतरंगता। पहले से एक ही संग पढ़ते आएहे। आज वे स्कूली शिक्षया ख़त्म करके कॉलेज में दाख़िलात लेने जारहे हैं। सौरभ एक गरीब आदमी का बेटा मगर पढ़ाई में उतना ही अच्छा। सागरिका भी उससे नहीं था कम। दोनों में पढ़ाई को लेकर हमेसा चलता ही रहता प्रतिस्पर्धा लेकिन नहीं होता आपस में दुश्मनी की आकांख्या।
हमेसा सागरिका सौरभ को पढ़ाई में मदद करता। पुस्तक से लेकर कलम तक सारे उपकरण निसंकोच और ईर्षा रहित ढंग से देदेता ताकि व उसकी बराबरी हो सके। सौरभ भी सल्लज उसे स्वीकार करताजाता कियूं की उसके पास और है नहीं कोई दूसरी चारा। पढ़ाई तो हर हालमें करना ही होगा। ऐसा एक अपनापन बढ़ता ही गेया दोनों में दिन प्रतिदिन की जीबन में कि अब वे दोनों के लिए ऐसा एक परिस्थिति आगेया है जहाँ परस्पर से कोई एक को अलग होना नामुमकिन सा है।
सागरिका का पापा एक संभ्रांत और धनी सम्प्रदाय की आदमी। नहीं चाहते ऐसा एक परिस्थिति की कभी आगे ऐसे कोई बात बन जाए दोनों में नजदीकियां बढ़ जाए। इसीलिए व सागरिका को सेहर से दूर एक कॉलेज में दाखिल करनेका मोड में हैं मगर सागरिका का एक ही जिद जब व पढ़ेगा तो सिर्फ ही सेहर का Givt. College में। कारण अपनापन।
सागरिका का जिद्द की आगे पिता जी का इच्छा हार माना बदल गेया। वेसा ही हुआ जैसा सागरिका चाहताथा। फिर से सागरिका और सौरभ एक ही कॉलेज में पढ़ने लगे। दोनों में बड़तागेया नजदीकियां। उम्र की बिकाश धारा में पहले की अंतरंगता अब बदलने लगा प्यार में। दोनों में एक नई जिंदगी का प्रारंभ हुआ। चलता गेया ऐसा एक प्यार का शील शिला।
इसबीच सौरभ का नौकरी लगी कोलकाता में। बन गेया बैंक मैनेजर महीना अशीहाज़ार रुपैया तनखा। अब व चाहता तो सागरिका से जैदा सुंदर तथा प्रतिभाशाली लड़िकी से सादी करसकता था मगर नहीं वेसा व नहीं किया। अपनापन उसे खींच लाया सागरिका को लेकर अपना एक घर बसानेको। वेसा भी हुआ। एक सुंदर संसार का सुरुआत हुआ दोनों में।
यहिसे ये शिख मिलती है कि अपनापन जीबन में सकारात्मकता लाके जिबनको निखारने में मददगार साबित हो सकता है।
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अपनापन |
" अपनापन एक भावना " है दोस्तों,जो एक जिबनको सरस सुंदर बनाने में प्रमुख भूमिका अदाकारता। इसके बिना जीबन में आजाता अकेला पन। जीबन बन जाता सूखा पीड़ित क्ष्येत जैसे। जीबन की सारे आशा,अभीप्सा मरजाता वहीं की वहीं। दूर दूर तक जीबन की गतिपथ में छाजाता सन्नाटा। तब फिर मेहसूस होता ये अपनापन सब्द का गुंजरण। वहीं पर भी ईच्छा होता फिरसे एकत्रित करनेको और इसीमे ही सिमट जानेको जो सारे बिछड़े हुए भूतकालीन अपनेपनकी अनुभूतियों में। ऐसा करने का अंतराल में लुक्कायित रूप में रहता आया कि यहीं से कुच्छ सुकून मिलजाए मगर ऐसा एक पल में दोनों सुकून की और दुखद अनुभूतियां केवल देते दुःख और दुःख जैसे भी परिस्तिति कियूं न हो भवाबेग एक ही होता। नहीं होता सुकुनकी नाम और निशान हमेसा मिलता दुःख और बेदना।
अभी तक हम लोग करते आएहे अपनापन का बिरोधा भाष का बातें मगर इसका सकारात्मक असर है अनगिनत और अलौकिक। आज इसपर हमलोग एक कहानी की रूप में करेंगे कुछ बातें:
सागरिका और सौरभ में आज भी है व अंतरंगता। पहले से एक ही संग पढ़ते आएहे। आज वे स्कूली शिक्षया ख़त्म करके कॉलेज में दाख़िलात लेने जारहे हैं। सौरभ एक गरीब आदमी का बेटा मगर पढ़ाई में उतना ही अच्छा। सागरिका भी उससे नहीं था कम। दोनों में पढ़ाई को लेकर हमेसा चलता ही रहता प्रतिस्पर्धा लेकिन नहीं होता आपस में दुश्मनी की आकांख्या।
हमेसा सागरिका सौरभ को पढ़ाई में मदद करता। पुस्तक से लेकर कलम तक सारे उपकरण निसंकोच और ईर्षा रहित ढंग से देदेता ताकि व उसकी बराबरी हो सके। सौरभ भी सल्लज उसे स्वीकार करताजाता कियूं की उसके पास और है नहीं कोई दूसरी चारा। पढ़ाई तो हर हालमें करना ही होगा। ऐसा एक अपनापन बढ़ता ही गेया दोनों में दिन प्रतिदिन की जीबन में कि अब वे दोनों के लिए ऐसा एक परिस्थिति आगेया है जहाँ परस्पर से कोई एक को अलग होना नामुमकिन सा है।
सागरिका का पापा एक संभ्रांत और धनी सम्प्रदाय की आदमी। नहीं चाहते ऐसा एक परिस्थिति की कभी आगे ऐसे कोई बात बन जाए दोनों में नजदीकियां बढ़ जाए। इसीलिए व सागरिका को सेहर से दूर एक कॉलेज में दाखिल करनेका मोड में हैं मगर सागरिका का एक ही जिद जब व पढ़ेगा तो सिर्फ ही सेहर का Givt. College में। कारण अपनापन।
सागरिका का जिद्द की आगे पिता जी का इच्छा हार माना बदल गेया। वेसा ही हुआ जैसा सागरिका चाहताथा। फिर से सागरिका और सौरभ एक ही कॉलेज में पढ़ने लगे। दोनों में बड़तागेया नजदीकियां। उम्र की बिकाश धारा में पहले की अंतरंगता अब बदलने लगा प्यार में। दोनों में एक नई जिंदगी का प्रारंभ हुआ। चलता गेया ऐसा एक प्यार का शील शिला।
इसबीच सौरभ का नौकरी लगी कोलकाता में। बन गेया बैंक मैनेजर महीना अशीहाज़ार रुपैया तनखा। अब व चाहता तो सागरिका से जैदा सुंदर तथा प्रतिभाशाली लड़िकी से सादी करसकता था मगर नहीं वेसा व नहीं किया। अपनापन उसे खींच लाया सागरिका को लेकर अपना एक घर बसानेको। वेसा भी हुआ। एक सुंदर संसार का सुरुआत हुआ दोनों में।
यहिसे ये शिख मिलती है कि अपनापन जीबन में सकारात्मकता लाके जिबनको निखारने में मददगार साबित हो सकता है।
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