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बहादुरी जीबन में अबसरों का जनक है.....

जिबनकी अविश्रान्त बहमान धारा में अनुकूलता और प्रतिकूलता हेतु गतिपथ परिबर्तन एक आम बात है दोस्तों। परिबेश तथा समयकी असर अमूमन पृथ्वी की हर जिब और पदार्थ पे पड़ता ही है। मानब धरती का सर्बश्रेष्ठ जिब होतेहुए भी इसी नियम या प्रभाव से बरी नहीं है। अबस्य ये भी सच है कि ये सारे भौतिक नियमों का असर हमेसा हमारे खिलाफ ही होता समझलेना गलत ही है। कई बार ये सारे हमे आजसे और बेहतर होने या करने के लिए अबसर भी लाते हैं।



आश्चर्य चकित की बात ये भी है कि इसी नियम के तेहत किसीको भी कहिंपे कोई सफलता नहीं मिलता मुफ़्त में,तबतग जबतग व साहस की साथ डटकर समस्याका मुकाबिला नहीं करलेता। जिसकेलिए आबश्यक बनजाता उसकी अंदर स्थित अंतर्निहित शक्ति का। जरूरत होता एक सकारात्म ईच्छा शक्ति का जिसे हम आत्मविश्वास कहते।


बहादुरी जीबन में अबसरों का जनक है
आत्मविश्वास

दोस्तों,आत्मबल ही कोई भी इंशान का असली बल है। जो इंशान में पैदा करता अदम्य साहस जिबनकी हर प्रकार समस्याओं को डटकर समाधान करनेको जिसके बिना कोई नहीं होता का दूर दूर तक नाम और निशान। सफलता बिहीन यानी इतर प्राणी जैसे एक असफल जीबन कटाना कुच्छ भी नहीं रखता माइना। जीबन रहजाता केवल जीनेका नाम,बनजाता उदासीन,बदासिन, असफल तथा निराशाबाद का गन्ता घर। ऐसे एक अनमोल सा मानब जीबन चलाजाता ब्यर्थ, मूल्यहीन ,होजाता अकारण।



ऐसे में जिबनको कैसे बनाया जासक्ता अनमोल अर्थ पूर्ण ? आजकी समयका है आह्वान। ये सारे प्रश्न बहुत पुराकालसे आंदोलित करते आएहे बहुत सारे मानबबादी चिन्ताशील ब्यक्तियों के मनमे जिसका आज भी खोज है। अपनी अपनी खोज से बहुत सारे मनीषी गण बहुत सारे मार्ग दर्शन कियेहें जिसको अनुसरण करके कोई अपना जीबन को सार्थक और सफल बनासक्ता है।



आज इसपर एक चर्चा कहानी की रूप में आपके समक्ष्य जिसका है नाता भारत इतिहास से जो बिलकुल सत्यताके ऊपर पर्यबसित है:



भारत इतिहास में छत्रपति शिबाजी को कौन नहीं जानते ?  व  भारत इतिहास में एक चमकदार सितारा है। एक पराक्रमी योद्धा,सुशासक और प्रजाबस्तल राजा की तौर पे उनका इतिहास में एक स्वतंत्र स्थान है। बिरासत में उनको सुदक्षय राजा बननेका अबसर नहीं मिलाथा। जो सारे अमर कीर्ति व दुनिया की समक्ष्य रखकर गयेहैं व सारे केवल उनके अंदर स्थित प्रगाढ़ आत्मबिस्वाश और प्रबल साहस का ही फल।



तुलसी दो पत्तेसे बासता। ठीक वैसे बचपनसे ही शिबाजी के अंदर बहत सारे उत्तम मानविय गुण भरपूर था। इँहा उनका बचपन का एक घटना का ज़िक्र कियाजासक्ता। एक छोटीसी बालक थे शिबाजी। उसदिन सड़क में कहिंपे जारहे थे। ठीक उसीही समय पे एक कसाई एक गाय को रस्सी बांध के घिसते घिसते कसाई खानेमें लेजारहा है। व बेचारी गाय भला क्या कर सक्ता। इधर उधर ही देख रही थी। उसकी आंखोंसे लहू निगल रहीथी। खामोसी में आबेदन कर रहीथी लोगोंसे की कोई आए और उसकी जान बचाले मगर अचंबित की बात सडकपे बहत सारे लोग थे फिरभी किसीके पास व सत साहस नहीं कि गाय को कसाई की हाथ से मुफ़्त करसके। सारे हतबाग थे। केवल देख ही रहे थे।



ठीक उसी ही समय गाय और उसकी हालात पर शिबाजी का नजर पडगेया। समझगये व गायकी आबेदन को और उसके प्रति अपना कर्तब्य निष्ठा को। तुरंत पास गए और तलवार निकाल कर रस्सी को काटडाले। इससे पहले कसाई उसके ऊपर कुछ करें पहले से ही हाथ काटडाले।



बात तुरंत ही सारे ओर प्रगट होगेई। नवाब शिबाजी के पिता शाहाजी जी को बुलाते और इस घटना कि बिचार सुनाते हुए आदेश करते है कि शिबाजी को जल्द ही राज्य से निकाल दिआजाए। नवाब का आज्या भला कौन नकार सक्ता। वेसा ही हुआ। शिबाजी को राज्यसे बासन्द कियागेया मगर उसी दिन से ही शिबाजी जुटगये एक स्वतंत्र जन मंगलकारी बनाने में। जिसपर व कामयाब भी होगये। उसका दृढ़ आत्मबिस्वाश और अदम्य साहस एक दिन वेसा एक रंग लाया की उसी ही नवाब को अपनी ही हाथ से शिबाजी को एक स्वतंत्र राज्य का राजा बनाने को मजबूर करदिया था।



इन्हां से ये सिख मिलती है कि साहस जीबन को बेहतर बनानेके लिए सुयोग देता। इसीलिए हर समस्याको साहस की साथ मुकाबला करनी चाहिए किसीको भी जीबन को बेहतर और सार्थक बनाने के लिए।
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