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कैसे सरलता ब्यक्तित्व गठन का सुखद माध्यम.....

ये एक सदियों पुरानी कहाबत है दोस्तों

" घरको सुंदर घरनि और राज्यको सुंदर राणी।" इँहा ये समझना होगा कि घरनि या राणी शब्द की अंदर स्थित गुनको ही  प्राधान्य दियागेया है न की केवल उनके शारिरिक सौन्दर्यताको। हाँ, सामूहिक रूप से देखाजाए तो किसीकी शारिरिक सौन्दर्यताको नकारा नहीं जासक्ता। ये भी किसीकी सम्पूर्ण सौंदर्यता का एक अंश बिशेष ही होताI


लेकिन बाकी सारे गुण बिहीन केवल शारिरिक सौंदर्यता को सुंदर मानना बिलकुल गलत। किसी भी एक पदार्थ या गुण को सम्पूर्ण शब्द रूप देने से पहले उसको सामूहिक रूपसे अबलोकन करलेनी चाहिए।


पता नहीं कैसे एक ट्रेंड चलरहा है हमारे आजकी समाज और सभ्यता में। किसी की पास समय नहीं । जहां देखो केवल ब्यस्त बहुलता। कोई कहिं जाता कोई  कहीं आता। पता ख़ुद की नहीं केवल अभिभाषण," कौन क्या कहता और करता" समझ में नहीं आता किसलिए ये भागदौड़ जिंदगी की ? निसाना कहानपे और गोली कहिंपे।


हरकिसीकी जुबांपे भलाई की बात मगर काम उल्टा। आदर्शको सभीने सराहना करते मगर आदर्श बादिको नकारते। समझना मुश्किल बनजाता गिरगिट जैसे रंग बदलनेवाले लोगोंको देखकर।समिक्ष्या करना तो दुरकी बात। समझने में है हैरानी।


बड़ा दुःख लगता एक चींटी को नदी में बहजाना देखकर। इच्छा होता कुछ उपाय करके उसकी जान बचानेको। उद्रेक हो जाता वहिंपे जिबकी प्रति स्थित अनाविल ममता और जिबका सहानुभूति की गुण। झलस उठता सरल मानविय गुण का एक झलक। जो उसका बास्तविक मानविय धर्म। जिसे जब सही ढंग से अख्तियार कीयाजाए तो किसीकी जीबन में होसकता एक बलिस्ट ब्यक्तित्व का गठन।


आज इसपर एक कहानी। आइए जानते हैं कैसे सरलता एक बलिस्ट ब्यक्तित्व निर्माण का माध्यम बनता है:


एक गुरु के कुछ शिष्यगण थे। जब उसकी अंतिम समय आनेहि वाला था। गुरुदेब सारे शिष्यगण को पास बुलाते हैं और उपदेश छल में परामर्श देते हैं जीबन में " अच्छा इंसान बननेको।" शिष्यगण सुनते हैं और कहते हैं," है गुरुदेब,आप हमेसा यही बात कहते आये हैं मगर हमे पता नहीं होता कि आख़िरकार असल मे "अच्छा इंसान शब्द का प्रकृत अर्थ क्या है ? कैसे किसीको एक अच्छा इंसान कहा जासक्ता।" कृपया आप हमे इसे समझाने का कस्ट कारकरें गुरुदेब।


शिष्यगण के अनुग्रह हेतु गुरुदेब सभीको एक प्रश्न करते और कहते," बताओ अब मेरे मुहूं में कितने दांत है ? "शिष्यगण कहते ये आप क्या कहरहे है गुरुदेब। अभी आपका चतुर्थ अबस्था चलरहा है। आप इसकी अंतिम क्षयन में है तो मुहूं में दांत काहांसे आएगा ?" ठीक है बोलके गुरुदेब अगली प्रश्न पूछते हैं और कहते हैं," अच्छा ये कहो कि मेरा जिह्वा कबसे है ?" वे कहते जन्म से। तो अब बताओ कि कारण क्या होसकता की दांत जिह्वा से पीछे उगता मगर झट ही टूट जाता मगर जिह्वा अंतिम क्षयन तक साथ देता नहीं टूटता।


शिष्यगण बोले गुरुदेब कुछ भी समझ मे नहीं आता। गुरुदेब अब समझाते की " देखो जिह्वा में  सरलता होता तो कभी टूटता नहीं मगर दांत में कठिनताकी गुण रहता तो जल्द ही टूट जाता। इसीलिए जो ब्यक्ति धैर्य के साथ सबकुच सहकर सरल होता व है अच्छा इंसान। सरल होनेसे उस आदमी का बचन भी स्वाभाविक रूपसे मधुर होता है" जिसे सुनकर शिष्यगण आस्वस्थ होते हैं और इसे अपनाके अच्छा ब्यक्ति बनने में जुट जाते हैं।


इसीसे ये सिख मिलती है कि सरलता अच्छा ब्यक्तित्व गठन का एक सुखद माध्यम है। 
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