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व ब्यस्तता ही सफलता

सिमा की पढ़ाई अब खत्म होचुकी है। शिक्षयागत योग्यता M. A. IN PSYCHOLOGY करचूकी है। एक संभ्रांत परिबार की लड़की। रूपगुण, कलाचातुरी हर क्ष्येत्र में निपुण। बेटिकि बढ़ती उम्र पिता सदाबिहारी और माता लक्ष्मी जी केलिए सरदर्द की कारण बनचुकि है। एक ही बेटी, सारे संपत्ति की मालकिन बनेगी। चारुकला नीपुना। सर्वगुण समपर्ण। तरह-तरह की लोग रिस्तेके लिए आते हैं।

सामाजिक परंपरा और सामाजिक सिष्ठचार की तहत पिता जी सुनिताको हमेसा रिस्तेदारों के सामने अच्छी तरह पेश हिनेकेलिए सलाह देते हैं। सुनीता भी पिता जी के कहने की अनुसार सबकुछ करता। वे लोग काफी प्रसन्न भी होते लेकिन बीचमे कुच्छ कारण राहजाता जिसकेलिए उसकी शादी किसीके साथ अभीतक तई नहीं होपाई है। कारण एक ये है कि व हमेसा देखने आनेवाला लड़का को अकेले में लेके कुच्छ बातचीत करता और इसीमे ही रिस्ता बननेसे पहले ही खत्म हो जाता। ऐसे-ऐसे करके पहलेसे ही दश रिस्ते बिगड़ चुके हैं। इसीबीच तीन बर्ष भी निकल चुकी है फिर भी सुनीता की जिद्द एक ही है, "जबतक उसे अपनी काबिलियत का लड़का नहीं मिलेगा तबतग व सादी नहीं करेगा।" जो माता-पिता का परिसानी बढ़ाता ही जारहा है।

रातमे सोनेकी वक्त सदाबिहारी पत्नी से कहते हैं, "सीमा की माँ, सुनते हो। ये लड़की न, मेरा नाक कटवाकर रहेगी। लोग क्याकुच बोलने लगे हैं। व कुच्छ समझती ही नहीं। तुम कभी सुना है कहीं कोई लड़की भी किसी लड़काको प्रश्न करता है? मगर एक तुम्हारी लाडली जो वेसा करता है। लोग उसे सादी करनेको दरनेलगे है। कोई अब रिस्तेको लेकर कोई बात तक नहीं करते। अब संझालो अपनी लडलिको, आज इतिने दिनों बाद एक रिस्ता कल ही आनेवाला है उसे बिगाड़ ना देना। उसके सामने वेसा हरकतें मत्कारना चाहिए।" बेचारी पत्नी भला क्या कहे, "ठीक है कोसिस करूंगी" बोलके लंबी शांस लेनेलगी।

अगली दिन बेटिको रिस्तेदारलोग आनेके बारेमे बतातेहुए माँ लक्ष्मी बेटी सीमासे सलाह देते हैं और कहते हैं कि व इसबार पहले जैसे हरकते नाकारे। मगर सीमा सुनता ही नहीं। बोलती, "माँ सदी मुझे करनी है न, बसकरो। मेरे बात मेरे में ही रहनेदो।" माँ अब कुच्छ निराशा जाहिर करतेहुए कहिंपे चलेजाते।

कुच्छ ही घंटों में रिस्तेदार लोग घरपर आजाते। सीमा इसबार भी ठीक वही बात फिरसे दोहराया। लड़का को एक एकांत कमरे में लेके कुच्छ ऐसा कहा कि "हाँ... हाँ मैं अच्छि तरह तुम्हे जानता हूँ। तुम क्या हो कैसा हो सबकुच्छ मुझे भलीभाँति मुझे जन्यात है। मुझे तुमसे नहीं करनी है सादी। तुरंत ही निकलजाओ मेरे नाज़ोरों से।" लेकिन ये बारी था शशिभूषण का व सीमा की बातको लेकर असेहज तो था मगर कोई डर नहीं था। व पुचनेलगा, सीमा, क्या तखलिब है तुम्हे सादिको लेकर? इतिना निराशाबादी कियूं हो? अपनी आप पर बिश्वास कियूं नहीं है तुम्हारे में? क्या मुझमे व सारेगुण नहीं है जो एक पतिकी रूपमे में तुम्हे नहीं देसकूँगा। बताओ व सारे शिकायतें जो तुम्हे अंदर ही अंदर निराशाकि भाव पैदा कररहा है।

शशिभूषण से ये सारे बातें सुनके सीमा स्तंभीभूत होगेई। खुशीसे अंदर ही अंदर उत्फुल्लित हो रहीथी। बोलने लगी, "सचमुच आज मुझे मेरा मनका पुरुष मिलगेआ। मैं आप से ये सारे बातें सुननेको चाहत रखता था। मैं तुमसे ये जानना चाहता था कि तुम डरपोक तो नहीं हो। मैं ये जानना चाहताथा की तुम में एक परिबारिक जीबन को डटकर जीने में कितिना हिम्मत है? आज मैं बहत खुस हूँ। आप मुझे बहत पसंद हो।" दोनों सादी केलिए सहमत होगये। सादी करके सीमा और शशिभूषण एक खुशहाल ज़िन्दगी जिरहे हैं।

दोस्तों, यहिसे ये सिख मिलती है कि असफलता को डरनेसे सफलता कभी नहीं मिलता। असफलता को प्रतिहत करके आगे निकलजानेका ब्यग्रता को चरम स्थिति में लेजानेका प्रयास अबस्य सफलता ही देता है। 

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