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अपने आप को बचालो



प्रभंजन आज भी नौकरी की तलासमे है। तीन शाल होगेया है रोजाना इसकी पिच्छे घूमते घूमते। उसका यही एक काम सुबह से साम तक केवल नौकरी ही ढूंढना। काफी किसीसे करचूकी है कि कहींसे अपनी लायक का कोई नौकरी मिलजाए मगर कोई एक भी हाथ लगता नहीं। ऐसा नहीं कि उसके लिए नौकरी के लिए जमाने में कोई अबसर है नहीं लेकिन प्रभंजन की लायक का मिलती नहीं। घरपे बुड्ढे माँबाप। कुच्छ कमा नहीं पाते। घर चलने को अब अर्थका संकट मंडरा रहा है। घरकी सारे जिम्मा अब उसकी ऊपर। खाली हाथ। घर और जीबन चलेगी कैसे? यही एक चिंता हमेसा प्रभंजन को सतारहा है। आज कल व काफी दुःखी और निराश में है।
अपने आप को बचालो

पहले जैसे आज भी व सबेरेसे ही अपनी सारे नित्यकर्म निपटाके अपना ही मार्गमें जाने ही वाला था। ठीक उसी वक्त माँ कहते हैं, "बेटा, एक बात मत भूलना। तुम्हारे पिता जी कलसे ही बुखार में है। आज जैसे भी हो उनकेलिए दबाई लेके ही आना। घर में अब एक फूटी कौड़ी भी नहीं जो में तुझे देसकूँ। कहिंपे कोई काम करके कुच्छ कमालेना बीटा। कामसे काम दबाई ज़रूर लाना।"
माँ की बात प्रभंजन के सरपे चट्टान-सा भारी मेहसूस हुआ। अब व करेगा क्या? कुच्छ समझ नहीं पाया। हाँ या ना कुच्छ नहीं कहा और घरसे निकल गेया। आज उसकीपर कुच्छ जिम्मेदारी है तो काफी कोशिशें करनेलगा मगर फ़ाएदा कुच्छ भी नहीं। फिरसे निराशा हाथलगी। ऐसे-ऐसे करके साम होनेलगा। नौकरी की कोई गंध भी नहीं। क्याकरे सोचतेहुए घर लौट ही रहाथा।
देखा राज पथ की बगल में एक बडासा पेंडल। सुसज्जित, खचाखच भरा दर्शक मगर शांत और मनोरम परिबेश। ब्यास पीठ में एक ज्यानी पंडित लोगोंको कुच्छ ज्यान देरहे हैं। चर्चा चल रही है, "कैसे एक ब्यक्ति अपनी आपको कोई भी एक गंभीर समस्यासे निकाल पाएगा।" प्रभंजन उसवक्त काफी उदास और परिसानी में था। पंडित जी जोकुच्छ कहरहे थे उसकी कामकी चीज ऐसा लगा तो वहिंपे कुच्छ देर ठहरगया और सुनने लगा। बाकी सारे लोग भी बड़े ध्यानसे सुनरहेथे।
पंडित जी कहरहे थे, "किसी भी ब्यक्ति के लिए व स्वयं उसका सबसे बड़ा दोस्त है। पहले अपनी आपको पहचानो और स्वयं को पहले प्यार करो। भगबान तो सबकेलिए होते हैं। जो स्वयं को सहायता प्रदान करता है भगबान उसे सहायता प्रदान करते हैं। समस्या किसके पास नहीं है? डरके मारे समस्यासे निकलजाने से मुसीबत का हल नहीं होता बल्कि समस्या और बड़ा रूप लेके कबलित करदेता।"
किसी भी समस्या की अंदर डुबकी लो और कुच्छ करते चलो। एक न एक दिन ज़रूर सफलता मिल ही जाएगा। अपनी आस पासका नकारामकता को नजर अंदाज करलो। ऐसे करने में तुम्हे भले सकारात्मकता मिल ना पाए मगर नकारात्मकता से तुम्हे छुटकारा मिलेगा। तुम नकारात्मकता से अपनी आपको बचापाओगे।

कभी कभी असफलता की डर हमे शारीरिक और मानसिक तौर पर पंगु अथरब बनादेता। कभी भी असफलता से डरना मत। खुदपर भरोसा रखें और बिस्वास करें। अपनी अंदर स्थित अंतर्निहित सक्ती को पहचानें। फिर देखना, कोई भी परिसानी से तुम बच जाओगे। जो तुम्हारेलिए सबसे बड़ा कर्म और धर्म है। ये एक बेहतरिन तरीका। इसे दिन प्रतिदिन जीबन में प्रयोग करके पहले अपने आपको बचालो। "
सकारात्मकता
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प्रभंजन बात समझ गेया। घर आतेवक्त एक दबाई दुकान में गेया और मालिक को कहा ठीक है साहेब मैं कलसे ही आपके काम पर आएंगे लेकिन इसीलिए आज ही आपको मुझे एक हजार रुपैया और मेरे पीड़ित पिता जी के लिए कुच्छ दबाइयाँ देनाहोगा। माली हाँ कहके ऐसा ही किया। अगली दिनसे ही प्रभंजन वहिंपे एक सेल्समैन की रूप में काम सुरुकिया। अब पांच शाल बात व एक दबाई कंपनी की मैनेजर है। एक खुशहाल ज़िन्दगी जिरहा है।

खुशहाल जिंदगी

यहिसे ये सिख मिलती है कि कोई एक ब्यक्ति किसी भी समस्यासे निकलने के लिए स्वयं को सबसे जैदा सहायता प्रदान करसकता है। कुच्छ पद्धतियों को अबलम्बन करके अपनिआप को बचसक्ता।
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