स्वामीनाथन आज खुद ये समझ नहीं पारहे हैं कि उनकी बाएँ आँख कियूं ऐसे बारबार फड़क रहाहै। सोचते हुए कभी फिर दिल भी अचानक बीपी बढजानेसे धड़क रहाहै। हालात कुच्छ अच्छा नहीं है। बहत परिसानी में है। बारबार बुरी सोच कहींसे आके उसकी मानसिकता को नकारात्मकता की ओर खींचता ही जारहा है। मन अब बुरीतरह से अशांत और दुःखी है। एक प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर में नौकरी करते अकॉउंटेंट की रूप में। ऐसा नहीं कि व इसी काम में नया हैं। काफी पुराना और अभिज्यं। अपनी काम पर कभी कोई कसर छोड़ते ही नहीं मगर आज ये कैसा आया एक बुरा दिन जो उसकी जीबन में एक असंभब-सा घटना घटगेया। आज जब एकाउंट क्लोजिंग ही होनेवाला था ठीक उसी ही वक्त उसे ये जन्यात हुआ कि एकाउंट में दश लाख रुपैया कम है। तुरंत बातको बॉश को अबगत करादीया। बॉश सुने और कलही देखेंगे बोलके आफिस से निकलगये।
जब ये बात से बाकी सारे कर्मचारी अबगत हुए तब सभीने स्वामीनाथन को दोषी ठहराने लगे। तरह-तरह की बातें बोलनेलगे जो स्वामीनाथन केे सुननेके लिए असेहज लग रहाथा। सारे समझ ये रहतेथे की इसकी पीछे स्वामीनाथन की कोई मंद उद्देश्य ज़रूर निहित है।
अब स्वामीनाथन क्याकरे? अपना स्कूटी निकालके सीधे जाके घर पहंच गए। पत्नी तापसी आब्वाज सुनके गेटपे चलिआई। गेट खोली। देखा पतिकी मुहूँ में कोई हर्ष नहीं। व काफी परिसानी में है। काफी बुद्धिमती एक स्त्री है तापसी। अब व पतिको कुच्छ नहीं कहा। पति के पीछे-पीछे चलागेया। स्वामीनाथन भी तापसी से कोई बात कर नहीं रहेथे। व तो परिसानी में थे ही। तुरंत ड्राइंग रूम में जाके हतास होकर बैठगये। आँख बंद करके।
पत्नी तापसी ये सारे बातें देख ही रहीथी। तुरंत जाके ड्राइंग रूमकी फैन को ऑन करदिया और पतिके लिए चाय लानेको किचेन में चलागेया। कुच्छ ही समय में ही चाय लेके आगई और पति देव को कप बढ़ातेहुए बोला, "लो जी चाय।" स्वामीनाथन पत्नी से चाय लेतेहुए बोलने लगे, "जानतेहो तापसी, आज मेरे साथ जो हुआ? मेरे समझ में नहीं आता कि कैसे ये सारे बातें होगेया? अब इतिने सारे पैसा रिकवरी मैं दूं कैसे? फिर इज़्ज़त की सवाल है। ये जाननेके बाद मुझे लोग क्या सोचेंगे? मैं कैसे फिरसे बॉस की बिस्वाश भाजन बनपाउंगा। बहत बड़ा एक मुसीबत में पडगेया हूँ तापसी। क्या करूँ कुच्छ भी समझ में नहीं आरहा है।"
तापसी एक समझदार औरत। पति स्वामीनाथन को पहले कभी व इतनी बुरी हालात में नहीं देखाथा। समझगेई व अच्छी तरह की उसकी पतिदेव आज पूरीतरह टूट चुके हैं। निराशा और हताशा में ग्रसित है। आत्मबल दुर्बल बन चुकीहै तो इस हालातसे उनको ही निकालना पड़ेगा। सारे बात समझते हुए पतिदेव को समझाने लगी, "कितने पैसेकि ज़रूरत है जी?" स्वामीनाथन कहते हैं, "पूरे दश लाख।" तो तापसी कहती है, "ये भी कोई चिंता की बात है? मेरे पास जो सारे जेबर है लेकर बेचदेनेसे रिकवरी तो होजाएगी न? कालहि लेजाना सुनार की दुकान पर बेचकर सारे पैसे देदेंगे।" पत्नी से ऐसे एक सांत्वना बाणी सुनके फिर स्वामीनाथन तापसिको पलटवार करनेलगे, "अरे नहीं नहीं, बात इतिना ही नहीं। असलमे बात ये की इसके बारेमे लोग मुझे क्या कहेंगे?" तापसी बोलती, "अच्छा ही बोलेंगे जी। जमाने में गलती किसके पास नहीं है? गलतिको तो दोष माना जानहिं सकता। आप इतने समजदारहो तो मैं भला आपको क्या समझाऊँ?"
पत्नी की कुच्छ बातें स्वामीनाथन की नकारात्मक सोच को हटानेमे मददगार साबित हुआ। फिर भी व काफ़ी निराश थे। अगली दिन काम पर जानेको मन नहीं कर रहेथे मगर क्या करें बेचारा? आफिस नहीं जाएंगे तो माहोल कुच्छ अलग बंजाएगा। जैसे भी हो अपना स्कूटी निकालके आफिस की ओर रबाना हुए। पत्नी तापसी दूर तक पति देब को निहार ही रहेथे जहांतक उसकी दृष्टि गोचर हो रहीथी।
"जब स्वामीनाथन आफिस पहंचे सभी के मुहं से एक ही गूंज निकल रहाथा," हमलोग जानते थे स्वामीनाथन जैसे ईमानदार लोग कभी ग़लत काम करनहीं सकते। "स्ववामीनाथन को समझ नहीं हो रहाथा की वे सारे लोग उसकी तारीफदारी कर रहे हैं या कोई उपहास। जब अंदर घुसे तो भक्तबन्धु नामक एक आदमी निकट आके बोलने लगा," माफ कीजिएगा साहब। काल में गलतसे आप से दश लाख रुपैया अधिक लेलिएथे। राखलि-जेए। "स्वामीनाथन की खुशी की सीमा नहीं रहा। व हँसतेहुए बोलने लगे," कोई बात नहीं, गलती किसीसे नहीं होता? मगर गलतिको स्वीकार करके सही मार्गमें जानेवाले सही इंशान कहलाते हैं। "
इसीसे ये सिख मिलती है कि जब कभी पति के आत्मविश्वाश टूट जाता है तो तब समझदार स्त्री पति में आत्मबिस्वाश जगाने में संक्षयं होते हैं। समझदार स्त्रियों में ऐसा हुनर होता है। इसीलिए परिसानी में बुद्धिमती स्त्री की सुझाव ग्रहण करनी चाहिए।
जब ये बात से बाकी सारे कर्मचारी अबगत हुए तब सभीने स्वामीनाथन को दोषी ठहराने लगे। तरह-तरह की बातें बोलनेलगे जो स्वामीनाथन केे सुननेके लिए असेहज लग रहाथा। सारे समझ ये रहतेथे की इसकी पीछे स्वामीनाथन की कोई मंद उद्देश्य ज़रूर निहित है।
अब स्वामीनाथन क्याकरे? अपना स्कूटी निकालके सीधे जाके घर पहंच गए। पत्नी तापसी आब्वाज सुनके गेटपे चलिआई। गेट खोली। देखा पतिकी मुहूँ में कोई हर्ष नहीं। व काफी परिसानी में है। काफी बुद्धिमती एक स्त्री है तापसी। अब व पतिको कुच्छ नहीं कहा। पति के पीछे-पीछे चलागेया। स्वामीनाथन भी तापसी से कोई बात कर नहीं रहेथे। व तो परिसानी में थे ही। तुरंत ड्राइंग रूम में जाके हतास होकर बैठगये। आँख बंद करके।
पत्नी तापसी ये सारे बातें देख ही रहीथी। तुरंत जाके ड्राइंग रूमकी फैन को ऑन करदिया और पतिके लिए चाय लानेको किचेन में चलागेया। कुच्छ ही समय में ही चाय लेके आगई और पति देव को कप बढ़ातेहुए बोला, "लो जी चाय।" स्वामीनाथन पत्नी से चाय लेतेहुए बोलने लगे, "जानतेहो तापसी, आज मेरे साथ जो हुआ? मेरे समझ में नहीं आता कि कैसे ये सारे बातें होगेया? अब इतिने सारे पैसा रिकवरी मैं दूं कैसे? फिर इज़्ज़त की सवाल है। ये जाननेके बाद मुझे लोग क्या सोचेंगे? मैं कैसे फिरसे बॉस की बिस्वाश भाजन बनपाउंगा। बहत बड़ा एक मुसीबत में पडगेया हूँ तापसी। क्या करूँ कुच्छ भी समझ में नहीं आरहा है।"
तापसी एक समझदार औरत। पति स्वामीनाथन को पहले कभी व इतनी बुरी हालात में नहीं देखाथा। समझगेई व अच्छी तरह की उसकी पतिदेव आज पूरीतरह टूट चुके हैं। निराशा और हताशा में ग्रसित है। आत्मबल दुर्बल बन चुकीहै तो इस हालातसे उनको ही निकालना पड़ेगा। सारे बात समझते हुए पतिदेव को समझाने लगी, "कितने पैसेकि ज़रूरत है जी?" स्वामीनाथन कहते हैं, "पूरे दश लाख।" तो तापसी कहती है, "ये भी कोई चिंता की बात है? मेरे पास जो सारे जेबर है लेकर बेचदेनेसे रिकवरी तो होजाएगी न? कालहि लेजाना सुनार की दुकान पर बेचकर सारे पैसे देदेंगे।" पत्नी से ऐसे एक सांत्वना बाणी सुनके फिर स्वामीनाथन तापसिको पलटवार करनेलगे, "अरे नहीं नहीं, बात इतिना ही नहीं। असलमे बात ये की इसके बारेमे लोग मुझे क्या कहेंगे?" तापसी बोलती, "अच्छा ही बोलेंगे जी। जमाने में गलती किसके पास नहीं है? गलतिको तो दोष माना जानहिं सकता। आप इतने समजदारहो तो मैं भला आपको क्या समझाऊँ?"
पत्नी की कुच्छ बातें स्वामीनाथन की नकारात्मक सोच को हटानेमे मददगार साबित हुआ। फिर भी व काफ़ी निराश थे। अगली दिन काम पर जानेको मन नहीं कर रहेथे मगर क्या करें बेचारा? आफिस नहीं जाएंगे तो माहोल कुच्छ अलग बंजाएगा। जैसे भी हो अपना स्कूटी निकालके आफिस की ओर रबाना हुए। पत्नी तापसी दूर तक पति देब को निहार ही रहेथे जहांतक उसकी दृष्टि गोचर हो रहीथी।
"जब स्वामीनाथन आफिस पहंचे सभी के मुहं से एक ही गूंज निकल रहाथा," हमलोग जानते थे स्वामीनाथन जैसे ईमानदार लोग कभी ग़लत काम करनहीं सकते। "स्ववामीनाथन को समझ नहीं हो रहाथा की वे सारे लोग उसकी तारीफदारी कर रहे हैं या कोई उपहास। जब अंदर घुसे तो भक्तबन्धु नामक एक आदमी निकट आके बोलने लगा," माफ कीजिएगा साहब। काल में गलतसे आप से दश लाख रुपैया अधिक लेलिएथे। राखलि-जेए। "स्वामीनाथन की खुशी की सीमा नहीं रहा। व हँसतेहुए बोलने लगे," कोई बात नहीं, गलती किसीसे नहीं होता? मगर गलतिको स्वीकार करके सही मार्गमें जानेवाले सही इंशान कहलाते हैं। "
इसीसे ये सिख मिलती है कि जब कभी पति के आत्मविश्वाश टूट जाता है तो तब समझदार स्त्री पति में आत्मबिस्वाश जगाने में संक्षयं होते हैं। समझदार स्त्रियों में ऐसा हुनर होता है। इसीलिए परिसानी में बुद्धिमती स्त्री की सुझाव ग्रहण करनी चाहिए।
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