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एक पहचान इंशानियत की

एक पहचान इंशानियत की

निदाबिष्णु आज बैकुंठ का क्षीरसागर में सोरही है । माता लक्ष्मी पदसेबा करतेहुए मंचालन कररहे हैं। एक एकांत, शान्तिप्रद बाताबरण। ठीक इसी एक समय में कुछ ही दूर से सुनाई देता, "नारायण नारायण" का शब्द। प्रभु अंतर्यामी बिष्णु समझगये कलीमुनि का आगमन होगेया है। समक्ष्य आके नारद जी परमपिता और माता लक्ष्मी जी को प्रणाम करते हैं। माता लक्ष्मी आदर करतेहुए महामुनि जी को आसन ग्रहण करनेको कहते हैं। नारद जी बैठते हैं तो बिष्णु जी पूछते हैं, "कैसे हो नारद जी, सबकुछ कुशल तो है?"

नारद जी  कहते हैं, "सबकुछ तो ठीक ही है प्रभु मगर मेरेपास एक बहतबड़ा आसंका है। मैं आज ही पृथ्वीलोक से आपकी पास आरहा हूँ ये समझने केलिए की पृथ्वीलोक में इंसान ही आपका सबसे बड़ा कृति जो मैं जानता हूँ और मानता भी हूँ। सारे इंसान देखने में एक जैसे है। रेहेन सहन, चाल चलन में समान-सा परिलक्षयित होते हैं। फिर आप ऐसे कैसे परखलेते की ये इंसान अच्छा और सही है? पुरस्कार स्वरूप देभिदेते बैकुंठ में उसको स्थान। मैं इसीबात पर हैरान हूँ प्रभु। मुझे ये समझ में नहीं आता। कृपया आप मेरा संका दूर करलीजिए प्रभु।"
नारद जी का बात सुननेके बाद प्रभु जी मुस्कुरादेते और कहते, "अरे ये बात। इसे समझने के लिए तुम्हे फिर से पृथ्वीलोक जानापडेगा। मेरे कहने की अनुसार आपको वहिंपे तीन आदमियों को मुलाकात करना होगा। उनको एक ही प्रश्न" आजकल सभीने कहते हैं कि जमाना खराब है। इसपर आपका क्या राय है। जमाना खराब होने में मुक्ष्य कारण क्या है? "इतिना ही पूछना है और लौट आना है। मैं समझता हूँ इसके बाद अपनि आप आपका आसंकाएँ ख़त्म होजाएगा। मैं आपको तीन ब्यक्ति रामप्रसाद शर्मा, धनंजय सेठ और दुक्षिश्याम भगत को मुलाकात करनेको सलाह देसकता हूँ। अब आप जाके मुलाकात करसक्ते हैं।" नारद जी प्रभु से अनुमति लेके फिर से पृथ्वीलोक चलेआते हैं।

घुमतेहुए नारद जी आके पहले मिलते हैं रामप्रसाद से। रामप्रसाद शर्मा एक ज्यानी पंडित, आचार ब्याबहार, सोच विचार में एकदम अच्छा और सही इंसान। नारद जी छद्मवेश में आके ये पूछते हैं, "शर्मा जी, आजकल सभीने कहते हैं कि जमाना खराब है। इसी बातपे आपका क्या राय है?"
शर्मा जी कहते हैं, "जमाना काहाँ खराब है जी? इंसान का सोच और समझदारी में ही गड़बड़ी है। जिसकी सोच और बिचार सही व सहिकर्म पर बिस्वास रखते हैं और अच्छा फल भी पाते हैं। जब लोगोकी सोचविचार सही बनजाएगा तो उसी अनुसार कर्म होगा और जमाना सही बंजाएगा।" नारद जी ठीक है बोलके वहीं से प्रस्थान करते हैं।

मिलते हैं जाके धनंजय सेठ से और पूछते हैं वही ही प्रश्न। उत्तर देतेहुए सेठ जी बोलते, "जमाना खराब नहीं है साहेब ये बातें उनकेलिए हैं जो मौके को गबादेते। सहितरीक़े से फायदा उठानहीँ पाते। मुझे देखो दश शाल पहले मुझे कोई नहीं जानते थे। मैं जैसे तैसे करके मौकों की फायदा उठाया और आज मेरेपास व सबकुछ है आजकी जमानेका।" नारद जी वाह करके आगे निकलते हैं।

दुक्षिश्याम एक आवारा नालायक आदमी जो हमेसा आलस में लेकर समय बरबाद करता है। नारद जी उन्हें आके मिलते हैं और ठीक वही प्रश्न पूछते हैं। उत्तर में दुक्षिश्याम कहता, "बिलकुल सहिबात है जी, जमाना बहत ही खराब है। राम, श्याम, अमक ढिमक जोकरते है मुझे भाषा में बोलना भी अच्छी नहीं लगता। वेसे लोग जमाना को खराब करते हैं।" नारद जी "हूँ" कहके वहीं से बैकुंठ की ओर चलते हैं।

बिष्णु जी को बताते हैं उन तीनों के उत्तर। प्रभु जी कहते हैं, "कुछ समझ में आया नारद जी? शर्मा जी उत्तम बिचार का बात करते हैं वही ही उत्तम और महान ब्यक्ति। सेठ जी मौके की बारे में कहते हैं जो मानब प्रकृति द्वारा प्रायोजित और सामान्य या साधारण ही है इसीलिए व एक साधारण-सा इंसान। इधर दुक्षिश्याम हमेसा लोगोंके बारे में बातें करता है। अपनी बारे में कुछ नहीं कहता और करता तो व नराधम है। ऐसे ही इंसान का पहचान और बर्गिकरण किया जाता है।" नारद जी अब समझ जाते हैं कि महान, साधारण और छोटेलोगों में क्याकुच अंतर होता है।

यही से ये सिख मिलती है कि एक उत्तम जीबन जिनके लिए उत्तम संग का ज़रूरत है। कौन कैसा आदमी हम उनके बातों से ये भली भांति जानसकते हैं। 
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