दिब्या एक छोटीसी लड़की। गांब घासीपुरा में रहती। निपट बनांचल। इन्हाँ साक्षयरता हार कुल आबादी का मेहज दस प्रतिसत ही है। जैदा तोर लोग अनपढ़ गंबार। शिक्षया का अभाव हेतु गांब की स्थिति में कोई परिबर्तन ही नहीं। न कोई अच्छी सड़क, बिजली या पानी का सुबिधा न स्वास्थ्य या सरकारी योजनाओं की सुफल कहीं पर दिखाइ देता। "जीबन जीनेका नाम पर जैसे तैसे लोग जी ही लेते एक ज़िन्दगी इहाँ।" सुबह जब लोग गांब से निकलते और सामको जब लौटते कामसे तब गांब की सड़क पर भीड़ बढ़जाती। बाकि समय गांब में सुनाई नहीं देता किसी भी प्रकार का कलरब सिबाय बच्चोंकी बोबाल।
गांब में स्कूल है मगर बच्चे लोग स्कूल नहीं जाते। हर कक्ष्या में पांच से कम संख्यक पढ़ते हैं। उनमें से फिर कुछ अनुपस्थित रहते तो उपस्थान एकदम गिरचुका है। सरकारी काल और शिक्षयकों के तरफ से काफी प्रयास कियाजाचुका है कि छात्राओं की उपस्थान में बृद्धि हो मगर कोई सुफल माला ही नहीं। लोगों की सोच में बदलाव नहीं आता। स्कूली शिक्षया को लोग एक समय बर्बादी ही मानते और अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते कोई काम पर लगादेते ये आड़ में कि व कुछ रोजगार का माध्यम बने।
भगबान यादब दिब्याका पिता जी लेकिन एक भिन्न-सा आदमी। खेतिकीसानी करते हैं। हमेसा अपना काम पर ब्यस्त रहते हैं। जबकभी कोई समय मिलता तो सिक्ष्यक लोगोंके साथ बैठके कुछ सलाह मसुरा करलेते थे। बेटिकि शिक्षया को लेके उसका एक अनुकूल और सकारात्मक मनभाव हमेसा रहता।
दिब्या भी अच्छी पढ़ाई करता। उन्हें सिक्ष्यक गण बहत प्यार देतेथे कियूं की व स्कूलका एक ही लड़की जो पहलीबार स्कूली प्रतियोगिता में भागलेतेहुए जिले में पहला निकालकर स्कूलका नाम रोशन करचूकी है। आगे फिर राज्य स्तर पर उसे मौका मिलनेवाला है।
इसकी पीछे पितामाता से लेकर बहत सारे लोगों की अबदान निहित है। दिब्या का अकलान्त परिश्रम को भी नकार नहीं जासकत। जैसे भी हो ये उनकी जीबन का एक बहत बडा सफ़लता जो बढ़ाताजाता दिब्या में शिखर चूमने की आशा। लगा रहता अपनी मार्ग में सकारात्मक सोचकि साथ।
दिब्याका ये सफलता कुछ नकारबादी और कुसंस्कारी लोगों में ईर्षा का बीज बपन करता। वे दिब्याका सफलताको सामान्यसा परिगणित करनेकेलिए अभिनब प्रयास करतेजाते। कोई बोलता, "बेटिकि जन्म पराई घरकेलिए. इसमें क्या बड़ा बात है?" फिर और कोई बोलता, "एक लड़की को खेलकूद में ऐसे नहीं जानी चाहिए, सामाजिक मर्यादा बोलके भी तो कुछ है?" ऐसे तरह-तरह की बातें। इंगित करते दिब्याको। उनलोगों को नजर में नहींआता दिब्या की सफलता और इसपे निहित उनकी कर्म निष्ठा।
दिब्याको मगर उनलोगों की बात रत्तिभ प्रभावित नहीं करता। निरंतर चलताजाता अपनी ही मार्ग पर, चढता-जाता सफलता का सीढ़ियाँ एक के बात एक। पहंचजाता बुलंदीपर जहाँ हर तरफ से छूटता पुरस्कार और प्रसंसा का स्रोत। अब उन लोगों का आँख फटी ही फटी राहगेई जो पहले समझते थे "एक लड़की की सफलता में क्या है?"
यही से ये सिख मिलती है कि कोई भी कर्म
नकारबादी बाताबरण से मुक्त नहीं है। सफलता तब मिलता है जब कोई इन नकारात्मक
उपादानको अबदमित करके आगे निकलता है।
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