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जीबन का मजा

जीबन का मजा


तेज हवा चलरहा है। बार-बार रहरह के प्रचंड घोर घर्घर सब्द में बारिष दस्तक देरहि है। रातकी दो बजचुकि है। बिजली भी चली गई है। सारे ओर अंधकार ही अंधकार। कमरे में अभिनब चुपचाप टहल रहा है। आंखों में नींद आज भी नहीं। क्या कुछ भावना आके उसको डुबाडता की व ये भुलजाता कब रात निकलगेया। ऐसा एक हालात आज से ही उसकी जीबन में सुरुहूआ ऐसा नहीं लगभग एक शाल से ऐसा एक जीबन प्रबाह चलरहा है। नींद की कमी सरदर्द की मरीज बनाचुका है। बदहजमी और एसिडिटी हेतु खानेपीने में नियंत्रण शारिरीक कमजोरी लाचुका है। अब जीबन में मजा नहीं जो उनकी परिसानी की प्रथम और प्रधान कारण ही है।


जीबन का मजा


ऐसा नहीं कि अब उसकी जीबन में आधुनिक संसाधनों का कोई कमी है। खुद एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। टकड़ा तनखा, पैसा की कोई कमी नहीं। उसकी पास हर उस सुख सुविधाओं की चीजें है। दामी गाड़ी, मोटी रकम की बैंक बैलेंस से लेके सुंदर बेंगलो तक कोई कमी ही नहीं। दुःख की बात एक ही है कि दो शाल पूर्ब एक सड़क हादसे में मातापिता का एकसाथ देहांत जिसकी बजह से अभिनब में एक अकेलापन छगेया है उसकी जीबन पर। ज़रूर एक सदमा हुआथा उनकी जीबन में उस वक्त। होनी भी चाहिए जो एक आम बात है। लोगों की जीबन में अक्सर होता ही है फिर जैसे-जैसे समय गुजरता तो फिर से वे सामान्य स्तर पर आजाते हैं। अभिनब की परिस्तिति में लेकिन ऐसा नहीं होता जो सचमुच एक चिंता की बिसय है।

जीबन का मजा


अभिनब एक उच्च शिक्षित होनेकेनाते अपनिआप को हरसम्भब ये मन सतात्विक समस्या से निकलने को कोसिस भी करता। अपनिआप को काम पर हमेसा ब्यस्त रखता। जब भी कोई अबसर समय मिलता दोस्तों के साथ बिताता। कभी-कभी इधर उधर घूमता। दिनतो वेसे ही कतजाता मगर जब रात आता उसके लिए घर एक संसान जैसा बहजाता जहाँ उसे मजबूरन रहना पड़ता। इसी समस्या का समाधान शुत्र भी उसे अच्छीतरह से मालूम रहता। सादी हो जाता तो अकेलापन दूर होजाता मगर ये पता नहीं कियूं आज कल साडीबिहा की नाम सुनतेही अभिनब अपनिआप को सर्मिन्दा मेहसूस कररही है। जा कभी कोई हिताकांक्षी या दोस्त उन से सादी बिहा की कोई बात करे तो व अभिनब-अभिनब ढंग से कहता, "क्या सादी बिहा ही जी बन में सबसे बड़ा काम है? सादी बिहा करके कोई कभी बड़ा बना है?" इतिना ही बोलके वही से चलाजाता। जीबन में शून्यता की भरपाई नहीं होता रुख़जाता शून्यता ही राहजाता। घर परिबार में स्पृहा ही नहीं रखता। उम्र भी ढल चुका है।

कुछ ही दिन पहले उसका एक समाजसेबी के साथं मुलाकात होता है जो एक अनाथ आश्रम चलते हैं। वहीं पर अनाथ बच्चों को शिक्षया प्रदान कियाजाता है। महाशय समाज सेबी अभनब को कोई रकम सहायता नहीं मांगे बल्कि व दश बच्चों की जिम्मा सौंपा। अभिनब असमर्थ भी नहीं है तो नकार नहीं पाया और अपना जिम्मा बखूबी निभातेगया। हमेसा व अनाथाश्रम में जाता। बच्चों के साथ समय बिताता। कभी मिठाई तो कभी फल लेके उनको दान करता जहांसे अभिनब को ढेरसारे खुशी मिलता। अब व जैदा समय उस बच्चों के बारे में सोचता और उनकेलिए कुछ करने में लगारहता।

इसीबीच पंद्रह बर्ष बिदचुकि है। उन्हीं बच्चों में से पांच इंजीनियर, तीन डॉक्टर और दो समाजसेबी बनके अभिनब का जीबन का आशा और आकांख्या को पुरिकर रहे हैं। उसकी जीबन का सार्थकता का गुण को गुनगुना रहेहैं। अब अभिनब की जीबन में फिर से जीनेका मजा आगया है। उनकी अंदर स्थित समर्थता अब दशगुनी बनचुकि है।

जीबन का मजा


इसी से ये एक सिख मिलता है कि अपनी समर्थता की अनुसार किसी भी रूप का दान जीबन जीने का मजा है।

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