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कहने से करना अच्छा

कहने से करना अच्छा

आज भी सूर्यकांत जब स्कूल जारहाथा। शुदर्शन को रास्ते से ही चिल्ला के कहरहाथा-"अंकल जी तुम घर आओगे न ? कबसे ठगी करते आतेहो ? आज साम नहीं आओगे तो फिर देखलेना मैं तुम से और कभी बात नहीं करूंगा।" सूर्यकांत एक छोटी सी बचा। काहाँ से समझेगा बात। मेहज बारह शाल की उम्र। शुदर्शन का जिगिरी दोस्त निशिकांत की बीटा। सातवी कक्ष्या में पढ़ाई करता है। क्या पता उसे की क्या कुछ है हालात अब शुदर्शन का ? जब से निशिकांत का किडनी रोग में मौत होगेया है तब से उसकी परिबार का सारे जिम्मा शुदर्शन का कंधे पे है। निशिकांत का बिधबा पत्नी माधुरी और बेटा सूर्यकांत को कभी ये मेहसूस नहीं होनेदेता कि निशीकांत मरगेया है ,अब उनलोग क्या करेंगे ? कालतक ये सारे बात ठीक ही चल रहाथा लेकिन अब कुछ बात को लेके शुदर्शन काफी परिसानी में है।


हमेसा माधुरी और सूर्यकांत का खयाल रखता। हर चीज की कमी को पूरी करता। हर सुख दुःख में शामिल होतामाधुरी और सूर्यकांत की परिबार का एक सदस्य ऐसा। अब भी निशिकांत का परिबार की तरफ से शुदर्शन के प्रति स्नहे,श्रद्धा की कोई कमी है नहीं। अपनी पिता जी जैसे आज भी शुदर्शन को ब्याबहार दिखाता सूर्यकांत अपना कोई भी मुराद पुरिकरने को अझट करता ,तांग करता शुदर्शन को।

अब व कुछ द्विधा में हैं जिसके कारण व सूर्यकांत को ये बोल नहीं पारहा है कि"हाँ बेटा हाँ..... आज में जरूर घर आजाउंगा साम में।" केबल चुपचाप सर हिलादेता। बच्चा सूर्यकांत घूम घुमके देखतेहुए स्कूल की ओर चलाजाता।

शुदर्शन का एक कपड़ा का दुकान है। कुछ देर बात एक साधु महात्मा आते हैं वहीं पे। शुदर्शन महात्मा जी को सासठहांग प्रणिपात करतेहुए बैठनेके लिए एक आसन देदिया। महात्मा जी शुदर्शन की मुखमंडल में परिसानी की संकेत देखके कहते हैं,"बेटा सायद तुम कोई परिसानी में हो ? कारण क्या है बीटा ? बताओ जरा।"

शुदर्शन महात्मा जी को बोलता,"क्या कहूँ महाराज,जमाना ही खराब है। आप तो ये जानते ही है कि मेरे और निशिकांत में कितिना गहरी दोस्ती था। व बेचारा चलागेया तो मैं हमेसा उसका परिबार को साहाज सहानुभूति प्रदान करता हूं जिसे लेकर आसपड़ोस की लोग मुझे अब आलोचना समालोचना करनेलगे हैं, कहते हैं,"कहीं मेरे और माधुरी की बीच कोई अबैध संपर्क है। छि ...छि ,क्या कुछ गंदा बात करते हैं ? ये एक बात मुझे सुनके अच्छा नहीं लगता महाराज, सोच नहीं पाता अब में करूँ क्या?" मुझे ये बात खा ही जारहा है गुरु जी। भगबान की लाख सुकरिया की आप इसी हालात में मुझे मिलगये है। कृपया मुझे इसी संकट से निकाल लीजिए गुरु जी ,निकाल लीजिए।

साधु महात्मा शुदर्शन की सारे बातें सुनने के बात कहते हैं,"अब तू क्षयान्त हो जा बेटा। सारे समस्याओं के समाधान होता है। अब तुझे एक प्रश्न की उत्तर देना पड़ेगा। बेटा ये कहो कि वे सारे लोग होते कौन ?" शुदर्शन कहता आस्पदोष कि लोग। महात्मा बोलते,"बेटा उतना ही नहीं। वे व लोग होते हैं जो लोग कुछ नहीं करते या जिन के पास कुछ करदखाने का कोई आशा नहीं होता। घर हो या बाहार जो लोग असफल रहते वही लोग इसी श्रेणी में रहते हैं। उनलोगों से कोई अपेक्षया राखा नहीं जास्कता। व लोग सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में माहिर होते हैं इसीलिए वे लोग गपसप की पिटारा लेके घूमते रहते हैं। तिल को ताल बनाना तथा सस्ते और चालाकी से बातचीत करने में माहिर होते हैं। बीटा,ये समझलेना की निरपेक्षय स्थिति में जो तुम्हारे अनुपस्थिति में तुम्हारा प्रसंसा करता व जरूर तुम्हारा कोई अतरंग होसक्ता है लेकिन आज काल की जमाने में उनके संख्या न कि बराबर है।

निंदा में बिचलित न होना और प्रशंसा में उत्फुल्लित न होना ब्यक्ति जीबन में स्थिर प्रगति लाता है। अतः तुम्हारे बिपक्षय होनेवाले समालोचना को स्वागत करना एक अच्छी बात है। अतीत में राजा महाराजलोग अपनी आत्म प्रचार करनेकेलिये कुछ कर्मचारिओं को नियुक्ति देते थे। तुम्हे ये मुफ्त में ही मिलरहा है तो सबसे अच्छी बात है ।

तुम तो जानते हो बेटा, फलधारी बृक्षय को ही हमेसा ढेला खानी पड़ती है । असफल ब्यक्ति ही हमेसा सफल ब्याकि की साथ प्रतिद्वंदीता करता। एक और बात याद रखना बेटा,कभी भी कहीं पे असफल ब्यक्ति की आलोचना या फिर समालोचना नहीं होती केबल चर्चित ब्यक्ति ही चर्चा में रहता। सफलता प्रतिरोध लाता। समझो कि व कहनेवाले उसीमे से कोई एक प्रतिबंध है ,साथ ही एक आशिर्बाद सादृश्य भी।

जो कुछ हम हमारे खामियों को जानपाते वेलोग उसे संसोधन करने में सहयोगी बनते। मानो की वे एक प्रकार उपकार ही करते। अपनी भलाई ना सोचतेहुए तुम्हारे बारे में समय देते। तुम्हारे बारे में सोचते। इसीलिए कहने वाले को कहने दो कारण कहने से करनेवाला हमेसा श्रेष्ठ होता है।


यही से ये सिख मिलती है कि कहने से करना सबसे अच्छा है। अछि काम करने समय कुछ बाधाएं आत जिसकी विहित समाधान के उपरांत मिलता केबल सफलता और सफलता.....

धन्यवाद.....
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