सुबह की छे बजचुकि है। माँ सुजाता बेटी सुनीता को इसबीच तीन बार बोलचुकी है," उठो बीटा, सुबह हो चुकी है। जल्दी से उठो न बीटा। हाथ मुहं धोलो। तुम्हे फिर तैयार होकर मेट्रो में कॉलेज जानी है। जल्दी उठो फटाफट सारे काम निपटालो।" माँ की बोली पर जवाब देतेहुए सुनीता कहती है," आज मूड नहीं है माँ। मुझे नहीं जानी है कॉलेज। मुझे थोड़ा सोनेदो न। मुझे अच्छा नहीं लगता।"
माँ का दिल तो धड़ धड़ धड़कने लगा। मनहि मन क्याकुच उलटा सीधा सोचनेलगे। फिर भी बेटी सुनीता की परिसानी और हालात को देखतेहुए बोला," ठीक है बीटा,कोई बात नहीं और कूच देर सोजाओ।" उनकी नजर मगर हमेसा सुनिता पर टिकी रहता। सुनीता भी सो कहां पाता ? बैडरूम में ही इधर उधर होता रहता।
सुनीता की हाव भाव माँ की आसंकाओं को और और बढ़ा रहीथी। सुनीता की सहेली गीता को कॉल करती। गीता को पूछती," बेटी गीता तुम काहाँ पे हो ? कॉलेज निकलचुकि हो क्या ?" गीता बोलती," हाँ मौसी। सुनीता आज नहीं आरही है क्या ? कब से कॉल कररही हुं, उठाता तक नहीं।" सुजाता पूछती," बेटा गीता ,मुझे तुमसे पूछना था कि कल कॉलेज में सुनीता की साथ क्याकुच हुआ ? आज व परिसानी में नजर आरही है। बोलती है कि तबियत ठीक नहीं है। तुम उसकी सबसे अच्छी सहेली है तो सोचा तुम से ही पुछलूँ।" गीता अब सच सच सारी बाती बतादेती। कहती," हाँ मौसी ,तुम मेरी माँ जैसी हो तो तुम्हे झूठ बोलना सही नहीं होगा। ऐसा मैं समझती हूं। कल राजेश और सुनीता की बीच एक दूसरे में जवाबी लड़ाई हुई। मैं जब वाहाँ पहंचा तब इतिना ही सुना सुनीता राजेश को बोलरहीथी," तुम एक धोखाबाज हो। तूने मेरे प्यार को ये सिला देनाथा ? मेरा अंदाज आज सच निकला। तुम्हे मैं पसंद नहीं थी तो कियूं ऐसे एक झूठी प्यार का नाटक रचारहेथे ? अब मेरी हालत क्या होगा कभी ये सोचाहे क्या ? बोलते हैं मुझसे सादी नहीं होगा ? फिर मैं उसे समझा बुझाके घर लेआया। कल इतिना कूच हुआ मौसी माफकरना और सुनीता को ये मत बताना । जान गेया तो मुझे मारही डालेगा।"
अब घड़ी में दश बजचुकी है। सुनीता वेसे ही बेड में इधर उधर हो रही है। जितिना जैदा वक्त निकल रही है माँ की परिसानी भी बढताही जारही है। मन में और कुच भ्रांति उग रही है। समय समय पे व सुनीता की पास जाके बोलरहि है," उठो न बेटा, कितिना देर हो चुकी है ? अब तो उठभि जाओ। खानापीना करके फिरसे सोजाना।" अब सुनीता माँ की बातको टाल नहीं पाया," झट ही नित्यकर्म सम्पादन करके कुच खाके फिर से बेड पे जाके लेटिरहि।
पिता जी कमलाकांत आफिस से सामको घर आते हैं। बेटी को कहते हैं," चलो बेटी, अब डॉक्टर जी के पास चलते हैं। हैल्थ चेक उप कराके आते हैं।" सुनीता मगर मना करती। पिता जी को कहती," अब नहीं पापा,तबियत अच्छी नहीं रहा तो कल ही जाएंगे।" पिता जी बेटी की बात पे हाँ..... भरदेते।
रातभर सुनीता सोनहिं पाया। परिसानी में उसकी दिमागी हालात कुछ ठीक नहीं थी। माँ बार बार कुछ देर अंतराल में सुनीता के पास आतेही रहतेथे। बोलते थे," तबियत कैसी है बीटा ? अब सोजाओ रात बहत होचुकी है।" बेटी सुनीता ऐसे ही हाँ कहरहीथी मगर सच्चाई कोई और थी।
देररात जब कमालाकान्त औऱ सुजाता बैडरूम पे गए, सुनिताकी पापा कहनेलगे," हाँ जी ,सुनते हो ? राजेश,सुनीता का बॉय फ्रेंड की पिता जी अभिषेक बाबू आज मेरे पास आके अकेले में बताए ," कमला बाबू आपको ये पाताहै या नहीं मैं नहीं जानता लेकिन मुझे पता चलचुका है कि राजेश और सुनीता एक दूसरे से जानसे जैदा प्यार करते हैं । पिता जी होनेके नाते हुमारेलिए ये फ़र्ज़ बनता है कि हम उन्हें बिबाह की बंधन में बंध देनी चाहिए। ये आज मैंने तुमसे बताने आयाहूं। आप की हाँ या ना में बात टिका है। मैं सोचता हूं ,ठीक ही रहेगा। सुनिताको राजेश पसंद है तो हमे कियूं नहीं होना चाहिए। कियूं जी मैं ठीक ही कहा न ?" सुजाता ये सारे बात सुनते ही हाँ..... भरदी। उनकी सारे परिसानी कहीं दूर होगेई। दौडतेहुए सुनीता की पास आगए और माँ-बेटी एकदूसरे से आलिंगन करतेहुए खुशी की आंसू निकालते रहे.....
यही से ये एक सिख मिलती है कि परेसानी समस्या का हलनहीँ ब्याज है । इसीलिए हमेसा इसीसे दूर ही रहना चाहिए।
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