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गुच्छे की आखरी चाबी

गुच्छे की आखरी चाबी

राजस्थान का रेगिस्तानी इलाके में बालूबन्ध एक छोटी सी गांव। कहीं पे लोग खानेपीने के लिए तरस्ते हैं मगर इँहा लोग बून्द बून्द पानी के लिए तरस्ते हैं। इन्हां का भौगोलिक स्थितियां कुछ ऐसा है। नजदीकी इलाके में पानी का कोई बहत बडा स्रोत नहीं है। पसचिम की ओर जाओ तो सुविस्तृत रेगिस्तानी बालू ही बालू उधर पूर्ब की ओर एक बहत बडा चट्टान की पहाड़ लंबाई में पचीस किलोमीटर तो चौड़ाई में भी कुछ कम नहीं लगभग सात किलोमीटर। ये बालूबन्ध की लोगों के लिए सबसे बड़ा मुसीबत। बालूबन्ध को बाकि सारे इलाके से अलग करदेता। बिकाश की हरकोई पथ की परिपंथी बनता। लोगों को कभी कोई जरूरत पड़े तो पहाड़ की उस पार नजदीकी सेहर को जाना पड़ता लेकिन रास्ता-घाट का कोई नाम और निसान नहीं शिबाए एक छोटी सी पथ्रेली रास्ता पहाड़ की जो गांव को सेहर की साथ जोड़ता। जिसपर लोग केवल पैदल ही चलतेहुए जाते। सदियों से ऐसे एक चलन चलता ही आरहा था।


इन्हां ये सोचना सरासर गलत ही होगा कि बालुबब्ध में सारे बुद्धू ही रहते। समस्या जानतेहुए भी समाधान का कोई हल कियूं नहीं ढूंढते ? अनेक बार पहाड़ को काटकर रास्ता तैयार करने को गाओं की लोग कितने प्रयास करचुके हैं किसीके पास कोई गिनती नहीं। ब्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर काफी प्रयास किएगए हैं लेकिन कोई सुफल है नहीं आज भी व समस्या ही बनकर है।



गुच्छे की आखरी चाबी


तुकाराम बालूबन्ध का ही एक लड़का। पहाड़ की उसपार सेहर गोबिंदपुर में पढ़ाई करता है। छात्राबास में रहता ,दसवी कक्ष्या में है। परिबार में माँ-पापा,भाई-बहन,दादा-दादी गांव में रहते हैं। छुट्टी की समय पे व अक्सर घर आता और पानी की उत्कट अभाव का सामना करता। लोग पानी के लिए कितिना तड़पते हैं देखता और दुःखी भी बनता लेकिन साथ ये भी देखता की सेहर में पानीकी कोई कमी ही नहीं। जहां भी देखो पानी ही पानी चलता ही रहता। व ये भी भली भांति समझता कि उनकी गाँब की पानी की समस्या का कारण क्या है ? उत्तर भी जानता है। केवल एक व चट्टान की पहाड़। मन ही मन कईबार ये भी सोचता की पहाड़ को काटडालूँ और गांव की सारे समस्या को ख़त्म करडालूँ मगर व अबसर और उम्र अब है कहां ?


एक दिन तुकाराम साथियों के साथ मैदान में खेलरहि है और देखा कि बड़े भैया आए हैं। पास जाकर पूछता ,भैया कैसे आनाहूआ ? सबकुछ कुसल तो है ? बड़े भैया कहते हैं,"कल माँ की देहांत होगेई तो तुझे लेने के लिए आयाहूं।" ये बात सुनते ही तुकाराम जोर जोर से रोनेलगा। एक माँ ही थी जिसे व सबसे जैदा प्यार करता था। माँ चलागेया। भैया के साथ घर आया और माँ की मौत की कारण पूछा तो व एक ही सब्द था पानी की कमी। पानी की कमिहेतु डिहाइड्रेशन होगेई और माँ चलबसे। अब तुकाराम ये निर्णय लेहीलिया की कलसे ही व पहाड़ काटना सुरुकरेगा।


अगली दिन जब सबेरा हुआ निकलपड़ा हाथ मे छेनी-हाथुडा लेके अपनी अभियान पर। काटनेलगा पहाड़ को। घरवाले,गाँववाले आकर संझानेलगे लेकिन व किसीकी मानता ही नहीं उसदिन से। अब उसकी उम्र तीस शाल होचुकी है। एक वही काम पे व टिका ही रहता है। इस बीच कितीने लोगों से व सकारात्मक प्रेरणा पाचुका है तो कितनों से नकारात्मक भासाएं मगर व अपनिआप किसी की कोई सलाह बिना अपनी राहों में चलता ही जाता।


उस का सोच हमेसा सकारात्मक ही रहता। कभी कबार कोई कारण हेतु मन में निराशा का भाव भी आता है लेकिन राम नारायण गुरुजी की व बोली यात करता

"कोसिस करना न छोड़े 
  गुच्छे की आखरी चाबी भी
ताला खोल सकता है।"
गुच्छे की आखरी चाबी

आखिर कार वेसा ही हुआ अब व पाहड़ को काटके रास्ता तैयार कर के गांव की समस्या समाधान का रास्ता निकाल ही डाला। अपनी गाँब को इसी रास्ते की सहारे सभ्य समाज की साथ जोड़ ही लिया। हर लोग उसे सरहनानेलगे। 


यही से ये सिख मिलती है कि निरंतर और योजना बद्ध कार्य धाराएं सफलता की चाबी है। सफलता पानेतक कोसिस करना ही चाहिए क्या पता अंतिम कोसिस में ही सफलता निहित हो।


धन्यवाद.....

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