सब में है सुंदरता
उस दिन साम की समय। बच्चेलोग बहत परिसानी में थे,ठीक उसी समय दादा जी धपधप चप्पल सब्द के साथ घर पर पधारे । टीकू, बिकु और बनानी आनंद में नाचतेहुए एक साथ चिल्लाने लगे,"दादा जी आगए दादा जी आगए।" दादा जी हृदयानंद दास जी बच्चों को बोलने लगे ,"हाँ.... हाँ मैं आगया हुँ,चलो चलें हाथपाओं धोके पहले कुछ भजन कीर्तन करलेते हैं और फिर कहानी। "ठीक है। बच्चेलोग एक साथ बोलने लगे। हाँ...।
ऐसा ही हुआ। हाथपाओं धोके टीकू, बिकु और बनानी दादा जी के साथ भक्ति मुद्रा में अपनी अपनी जगह पे चुप चाप बैठगये। दादा जी गानेलगे प्रिय बापू जी की व भजन,"रघुपति राघब राजा राम,पतितपाबन सिताराम। इस्वर अल्लाह तेरो नाम ,सब को सन्मति दे भगबान।" बच्चेलोग भी दादा जी के साथ गानेलगे । भजन कीर्तन चलता ही गेया लगभग आधा घंटा की बराबर। दादा जी अब शांति बाणी बोलके ये सोपान को विराम देदिये।
भजन पर्ब ख़त्म होते ही दूसरी पर्ब जल्द ही प्रारंभ करने को वे अझट कर रहेथे। दादा जी बनानी को कभी गालियां नहीं करते । एक ही लाडली पोती। सब से जैदा प्यार करते। हमेसा बनानी की बात मानते। दादा जी को मनाने में टीकू और बिकु हमेसा बनानी की सहायता लेते । अब वे बनानी को दादा जी को कहानी सुनाने केलिए कहने को मंत्रणा देते हैं। बनानी भी दादा जी को तंग कर रहा है,बोल रही है,"दादा जी ,जल्दी से कोई कहानी सुनादो ना।"
दादा जी बोलते हैं,"ठीक है....ठीक है। पहले तुम सारेलोग चुपचाप बैठजाओ। सुनो अभी सुरु करते हैं एक कहानी।" अच्छा बच्चों तुम सब तो ये जानते ही होंगे कि साल में बारह महीने होते हैं और बारह महीने में छे ऋतु । बच्चेलोग एकसाथ कहते हैं। हाँ....हाँ,हमे पता है।दादा जी कहते हैं, बहत ही अछि बात तो बनानी तुम अब कहो की तुम्हे इन में से कौन सी ऋतु अच्छी लगती है और कियूं?
बनानी कहती है। दादा जी ,"मुझे न बर्षा का ऋतु सबसे अच्छा लगता। व फिर कियूं जानते हो-बारिश में खूब बारिश होता। खेत खलिहान ,गड्ढे,नदी नाले,हर जलासय पानी में भर जाता और धरती हराभरा लगता। काफी सुंदर। है ना?"
दादा जी कहते हैं, बिलकूल सही। अब दादा जी बिकु को वही प्रश्न पूछते हैं। उत्तर में बिकु बोलता,"दादा जी मुझे न सीत की ऋतु अच्छा लगता।"दादा जी बोलते व फिर कियूं? बिकु उत्तर में कहता,"रास्ते से लेके सारे ओर साफ सफाई रहता। तरह तरह की फूल फल उगता। किशान अपना फसल घरलेआता। न बहत गरमी या फिर बारिश की कोई चिंता रहता। अति आराम दायक ऋतू है सितकाल। है न दादा जी?" दादा जी कहते हैं, ठीक है।
अब आगेया टीकू का बारी ,दादा जी वही एक प्रश्न टीकू को करते हैं। टीकू बोलता,दादा जी मुझे केबल ग्रीष्म ऋतू ही अच्छी लगती। गरमी में न बारिश की प्रकोप न काफी ठंड की दुख रहती। हाँ ये सच है कि कभी कभी जरूर जैदा गरमी जन जीबन को असतब्यस्त करती मगर बारिश की कारण भी बनती। धरती की जलको अबसोशन करके आकाश में लेके बारिश कराने में इसी की एहमियत कोई नकार नहीं सक्ते ।"
अब बनानी दादा जी को पूछता है,"दादा जी आप को कौन सा ऋतु सबसे अच्छा लगता है?"
दादा जी कहते हैं, सुनो बच्चों,मुझे सारे ऋतु अच्छी लगते हैं । सभी ऋतुओं के अपना अपना एक एहमियत है। कोई फलफूल उगानेके लिए अनुकूल तो कोई धरती को हराभरा बनाने में सहयोगी। हमारे जीबन को सरस सुंदर बनाने में हर ऋतु में कुछ न कुछ सुंदरता रहता ही है। इसीलिए ये कहना गलत ही होगा कि कोई एक ऋतु ही सबसे सुंदर और अच्छा है। "हर कोई में है सुंदरता।"
इसी से ये सिख मिलती है कि हर समय,काल और चीज की एक बिशेषता जरूर रहता अपनी ही समय पे व सुंदरता निखारने लगता तब उसकी सुंदरता को मेहसूस कियाजाता जो उसकी अंदर होता मगर सच में सब में है सुंदरता।
धन्यवाद.....
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