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कैसे बढ़ाएं दृढ़ मनोबल का अभ्यास

कैसे बढ़ाएं दृढ़ मनोबल का अभ्यास

बंटी एक अच्छा लड़का। पढ़ाई से लेके खेलकूद तक हर क्ष्येत्र में पारंगम। स्कूली परिक्षया में व हमेसा पहला निकलता। अब व अपना उच्च शिक्षया खत्म करके किसी नौकरी की तैयारी में है। काफी परिश्रम करता है। स्वभाव में सरल मगर थोड़ीसी भावाबेगी। छोटीसी बात को भी दिल पे चिपकालेता।

आज सुबह की ग्यारह बजे व बैंक p.o का रिजल्ट निकला है जो बंटी दो महीने पूर्ब परिक्षया दियाथा। अपनी मोबाइल पे सर्च मारा और रिजल्ट शीट को देखते गया मगर उसका नंबर कहीं पे नहीं था। तुरंत ही रिजल्ट शीट को दो चार बार ऊपर नीचे करके दौड़ते हुए बेडरूम पे घुसगेया,अंदर से दरवाजा बंद करके छिपछिप के रोनेलगा। काफी दुख में ही अपनी आप को दोष देतेहुए ये सोच रहा था,"मुझे,इस एग्जाम के लिए और जैदा पढ़ाई करना था। पिता जी और माता जी का आशा बिस्वास मुझ पे कितिना नहीं थी। कितीने लोगों को वे ये नहीं कहचुके हैं, की"मेरे बेटा बंटी पढ़ाई में काफी अच्छी है। बैंक p.o एग्जाम देचूका है। मुझे ये बिस्वास है कि जरूर उसको कामयाबी मिलेगा और नौकरी में व लग जाएगा। महल्ला की वे लोग मुझे सोचेंगे क्या?"

बंटी उसी वक्त अपनी आप को ही दोषी मान के रोता ही जारहा था। इधर माँ दो बार बोलचुक थे,"बंटी बेटा अभी घड़ी में एक बजचुकि है। पढ़ाई बंद करलो। जल्दी से नाहालो,खानेपीने की वक्त ,खाना खाके फिर पढ़ाई करलेना। जरा तबियत की भी ध्यान देना है, बेटा। जल्दी करो ,आके खाना खालो।"

माँ की ये प्यारी ममता की बातें बंटी को और पीड़ा देरहाथा। और और रोरहा था। व सम्पूर्ण रूप से दुःख की मारे बिखर चुका था। एक और बात उसे द्विधा में डालरहा था कि व कैसे ये बात माता-पिता को बोलेगा की"मैं एग्जाम में नाकामयाब निकला हुँ।" कहने को साहस ही नहीं था।

अब घड़ी में दो बजगेई है। कमलाकांत बंटी की पिता जी घर पहंचते ही स्त्री को पूछते हैं,"बंटी अब है काहाँ?" बंटी की माँ बोलते हैं,"भगबान जानें बैडरूम में क्या कररहा है। कितिनि बार कहचुकी हूँ, आ खाना खाले बेटा मगर सुनता काहाँ है। दरवाजा बंद करके सोता रहता है, सायद .....।"

ऐसा एक बात सुनके कमलाकांत चौंकगये तुरंत बैडरूम की तरफ जाके दरवाजा ठकठकाते हुए बोलने लगे, "बेटा बंटी,दरवाजा खोलो बेटा। आजाओ मिलके हम दोनों खाना खाएंगे। आओ बेटा आजाओ।" बंटी पिता जी की बात टाल नहीं पाया और रोतेहुए खिड़की खोल के बेडरूम से निकला। तब पिता जी बोलने लगे ,"कुछ नहीं बेटा ,रोते नहीं। चुप हो जाओ। जीबन में हमेसा सफलता ही मिलेगा ऐसा तो जरूरी नहीं है। मैं जानता हूँ कि तुम p.O एग्जाम में असफल बने हो। इसीलिए दुःखी हो। लेकिन इसी में दुःखी होने का कोई कारण नहीं है। जीबन में नाकामयाबी की जरूरत भी है जो हमे एक नई अभिजन्यता प्रदान करता है। अपनी गलतियों को सुधारने केलिए एक मौका देता है। ये भी मत सोचना की इसीलिए मुझे कोई क्या कहेगा। दुनिया से तुम्हारा लेनादेना क्या है? दुनियां तुम को कुछ नहीं देता तो तुम्हे दुनियां की बारे में कियूं सोचना है। जीबन में धीरज रख के अपनी कर्तब्य करतेजाना सही है। सफलता के पीछे दौड़ना और तुरंत ही मिलने की आशा भी गलत है। अगली बार अच्छी पढ़ाई के साथ फिर से चेस्टा करलेना,मेरा तो बिस्वास है तुम जरूर सफल बनोगे।"

पिता जी से इतिने सारे बातें सुनके बंटी की मन से निराशा का भाव चलागेया। फिर से अच्छी पढ़ाई के साथ p.o एग्जाम देके कामयाब बनगया और अब व एक बैंक p.o बन चुका है।

इसी से ये सिख मिलती है कि मनोबल सफलता की कुंजी है। जीबन में ऐसे कई बार असफलता आना स्वाभाविक है जो अक्सर किसी की मनोबल को दुर्बल बनासक्ता है। उसी समय पे जरूरी बनजाताढ़ मनोबल दृ बढ़ानेवाले तरीके की जो सभी को जन्यात होनी चाहिए।

धन्यवाद.....
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