खुश कैसे रहें.....
दोस्तों,जब भी जीबन दर्शन पर कोई भावना आता,अक्सर एक बात मस्तिष्क को आंदोलित करता ये है व बिजिगिसा ,"आखिर मानब जीबन किस काम के लिए?" प्रश्न तो बहत ही छोटा लेकिन इसी में निहित भाबार्थ का गुढ़ रहस्य कितिना तात्विक और कठिन पता नहीं जो संसार की कितने जनयानिओं तथा बेइजनयानिकों को उलझन में रखदिया है। मानब सभ्यता की प्रारम्भ से लेके अभीतक किसी एक को ये पता ही नहीं कि इसका सठीक और सिद्धांत मार्ग क्या है ? ये एक प्रश्न जगत में कितने मानबों को कितीने श्रम और समय समाधान ढूंढने में लेचुकि है किसीको भी अंत नहीं,आगे फिर प्रयास जारी है।
इतिहास में हम जब मानब जीबन की बिबर्तन बाद को अबलोकन करते पता ये चलता कि आदिम काल से अबकी परमाणु काल तक हमेसा हर कोई ब्यक्ति एक सब्द की पीछे भागते आये हैं व और कुच्छ नहीं "खुशी" ही।
पुरातन काल में ये खुसी थोड़ीसी सुलभ था। बजह ये की उस वक्त जीबन काफी सरल था। जैसे जैसे समय आगे चलता गेया मनुस्य की रुचि और आदर्श काफी भौतिकबादी बनता गेया। अब व ऐसा एक स्थान पे पहंच चुका है जहाँ खुशी पाना एक समस्या बनके दुःस्वप्न बनचुकि है हरकिसी के लिये।
बास्तविक तौर पर आज की मानब समाज के लिए ये एक गंभीर समस्या। खुशी एक सकारात्मक भावाबेग होनेके नाते ब्यक्ति में स्वयं सम्पूर्ण ब्यक्तित्व बनाने के साथ साथ जीबन को खुशहाल बनाता है। इसके बिना किसीके लिए भी जीबन बोझ बनजाता।
मनोबीजयनानिक दृश्टिकोण से देखाजाए तो "खुसी"हमारे में एक सकारात्मक ऊर्जा पैदा करके जीबन को प्रगति की ओर गतिशिल बनाता है। कैसे आइए जानते हैं एक कहानी की माध्यम से:
अरुण एक बिस साल का सेहरी लड़का। राम नगर में रहता है। सेहर की ही एक साइंस कॉलेज में पढ़ता है जो उसकी घर से बीस किलोमीटर दूरीपर होता। प्रतिदिन घर से एक किलोमीटर पैदल चलके बस स्टॉप पे आजाता फिर बस में कॉलज पहंचता। घर से निकलते ही मोबाइल निकाल के हर दोस्तों को कॉल करके पूछता की वे लोग काहाँ काहाँ पे हैं। कॉलेज में हर दोस्तों को मिलता। हर किसी को सहायता प्रदान करने के लिए हातबढाता। घर मे हो या बाहार कोई भी काम में हर किसी को सहायक बनना उसका एक आदत बनचुका है। ये एक उसका अच्छा गुण जो हमेसा उसको सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है जिसे व खुद मेहसूस कररहा है। परिबर्तित परिस्तियों में अपनी आप को जड़ित करने में सक्षयं बनाता है।
दोस्तों,हमे ये जन्यात है कि जीबन सुख दुःख की एक समिश्रण ही है। जीबन में कभी अनुकूल तो फिर कभी प्रतिकूल परिस्थियां आता ही है। परिस्तिथि जैसा भी कियूं ना हो हमेसा हंसता ही रहना और किसी को हँसाना एक बहत बड़ा गुण है जिसे एक कला या कौसल कहा जास्कता है। अभ्यास के तौर पे इसे शिखा जासकता है मुफ्त में। हर रोज इसे जीबन में प्रयोग करके कोई आचरणगत बना सकता है। अरुण में ऐसा एक महत गुण है।
किसी को भी पराई नहीं मानता अरुण। किसीभी वक्त पर किसीको भी मदत करना उसका एक बड़ा निसा था। माहौल कैसा भी हो व अपना ये महत गुण की तहत सौहार्दयपूर्ण बनाहिलेता।
कभी कोई महातांखी ब्यक्ति से जब व कोइ मदत पाता तुरंत ही उसको कृतजन्यता जन्यापन करता जो उसका संपर्क उस ब्यक्तियों के साथ और निजोड बनाता। सभी के साथ सुसम्पर्क रखना और सच्चाई तथा सचोट संपर्क बनाया रखना उसका एक आदत है जो उसे धीरे धीरे प्रगति की राहों में ले ही जारहा है।
आजकाल की बात करें तो किसी के पास समय ही नहीं किसीके साथ अछि संपर्क जोड़ने के लिए। ऐसा भी है कि स्वामी की समय ही नहीं पत्नी को ये सुनाने के लिये की व उसे कितिना प्यार करता है। बजह बनजाता संपर्क में तिक्तता। अरुण में ऐसा कभी होता ही नहीं। व सभी को बराबर स्नेह और प्यार दिखाता है। संपर्क दिन वा दिन और बेहतर बनता ही जा रहा है। जीबन मधुर से और मधुर की ओर बढ़ता ही जा रहा है।
यही से ये सिख मिलती है कि हर परिस्तिथि में खुश रहना एक कला है जिसे नियमित जीबन में प्रयोग करके आचरण गत कियाजासक्ता है। सकारात्मक ऊर्जा पैदा करके जीबन में खुशहाली लाने में ये एक बलिष्ठ माध्यम है तो हर कोई इसको आचरण गत बनाने केलिए प्रयास करना ही चाहिए।
यही से ये सिख मिलती है कि हर परिस्तिथि में खुश रहना एक कला है जिसे नियमित जीबन में प्रयोग करके आचरण गत कियाजासक्ता है। सकारात्मक ऊर्जा पैदा करके जीबन में खुशहाली लाने में ये एक बलिष्ठ माध्यम है तो हर कोई इसको आचरण गत बनाने केलिए प्रयास करना ही चाहिए।
धन्यवाद.....
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