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समझें क्या है जीबन मैं स्नेह-श्रद्धा अभाव का असर

समझें क्या है जीबन मैं स्नेह-श्रद्धा अभाव का असर

इंसान का मन एक विशाल समून्दर जैसा ही है। समून्दर मे जैसे भिन्न भिन्न समय पे उत्तुंग लहरे आके सुविस्तृत निल जलराशि को आंदोलित करदेता ठीक अनुरूप भिन्न भिन्न समय और परिस्थिति में भावाबेग मनुष्य को ब्याबहार मे परिबर्तन लाता है। भावाबेग इंसान का एक गतिशिल और उत्तेजित अबस्था ही है। संतोष से लेके क्लान्ति और दुःख से लेके आनंद तक सारे इंसान का भावाबेग का फल स्वरूप ही है जो उसका ब्याबहारगत परिबर्तन लाके हर क्रिया कलाप को प्रतक्षय या अप्रत्क्षय रूप से प्रभावित ही करता। जहाँ पर उसका मात्रा नियंत्रण से बाहर चलाजाता वहीं पे लेआता अप्रत्याशित कार्यधाराएँ। उसिवक्त ये मुश्किल बनजाता निर्णय करने मे की कोई कभी ऐसा भी करसक्ता है जो सत्य भी हो सक्ता है। ये सारे केबल भावाबेगों के ही खेल है।

  जब उन में से भाबाबेग द्वारा कोई भी एक इंसान आक्रांत होता  और उसको नियंत्रण करने मे असफल बनजाता लेआता हम इंसानों केलिए  अप्रत्याशित मुसीबतें कभी कबार ये बनजाता किसीके लिए जीबन से हातधोने का एक कारण। अति मारात्मक। अति भयंकर।

  ये भी हमेसा ऐसा ही सोचना बिल्कुल गलत ही है कि हर भावाबेग हर परिस्थिति,समय और ब्यक्ति के लिए एक जैसा ही है। सत्य ये भी है कि सब मे ये समान रूप से प्रगट नहीं होता मात्रा की दृश्टिकोण से। जब कभी कोई ब्यक्ति इसको अपनी पास नियंत्रण करपाता उसकेलिए लेआता सुनहरा एक मौका जिबन को लेजाता प्रगति की पथपर। सहयोगी बनजाता ब्यक्ति मैं एक सुंदर चरित्र गठन की ओर। भावाबेगों का नियंत्रण केबल निरंतर अभ्यास और स्वतंत्र प्रतिष्टित कौसल के माध्यम से ही कियाजासक्ता है।

  इन मैं से स्नेह एक भावाबेग है।ये जब भी कभी किसी की जीबन मे आता है ब्यक्ति की जीबन मे लेआता प्रगति ही प्रगति। आज इस पर एक कहानी:

  सांत तो हो गेया मगर प्रतिबादी बनके क्या कुछ बोल रहाथा--"बाकी सबको आइसक्रीम खाने को पांच पांच रुपैया देते तो मुझे कियूं नहीं देते। इसीलिए में और भी कुछ करसक्ता हुँ। बोलता ये भी था,अरे तुमलोग ऐसे ही करते जाओगे और मैं देखता हि रहुंगा। बुद्धू समझते हो मुझको। मैंने काल ही पिता जी को छोटे भैया को चॉकलेट देतेहुए देखा लेकिन मुझे कियूं व नहीं मिला? फिर भी मैं चुपचाप सेहेगेया कियूं की मुझे ये पहले से ही पता है कि इसी घर मैं मुझे किसी को जरूरत ही नहीं। समझता हूं तुम्हारे बातें मैं अछि तरह से। मुझे पढ़ाई नहीं आता तो मुझ से कुछ भी नहीं हो पाएगा ,ये तुम्हारे सोच है न। दपहले मुझे बड़ाहोनेदो फिर देखना ,सबसे बड़ा सेठ ही बनूंगा। उसवक्त किसी को भी एक फूटी कौड़ी नही दूंगा। ऐसा ही बोलतेहुए घर से बाहर की ओर कहीं चलागेया।"

  मलया का हर बात मैं ध्यान पुर्बक सुनरहा था। व उसिवक्त जो भी बोल रहाथा कहीँ भी गलत नहीं था। सारे सच्चाई ही था। उन की मुहँ से जो सारे भाषा की रूप मे निकल रहाथा व सारे उनकी प्रतिबाद के बिना कुछ भी नहीं था। ये व प्रतिबाद जो केबल अनुरूप स्नेह और श्रद्धा ना पानेका।

  रामगोपाल और परिबार बर्ग को समझा दिया मैंने,आपलोगों को आज से ही मलय को समान रूप मे स्नेह और श्रद्धा प्रसदान करना चाहिए नहीं तो आगे उसका स्वभाव और भी बिगड़ जाएगा। अब वे ये समझने के बात वेसा ही करते है। असर भी देखने को मिलरहा है। मलय भी अब पहले जैसे नहीं है। काफी बदल चुकाहै। आचरण और ब्यबहार मे परिबर्तन आचुका है।
यही से ये सिख मिलती है कि अनुरूप स्नेह और श्रद्धा की कमी किसीको गलत एक इंसान बनासक्ता है। इसीलिए शिशु मैं एक अछि ब्यक्तित्व बनाने के लिए हमे उसे यथार्थ परिमाण स्नेह श्रद्धा प्रदान करने मे कभी भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहिए।


धन्यवाद.....

  
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