जानें कैसे कोसिस जान बचाता है
भगबान की इसी सुंदर संसार मे कितीने रहस्यमय कार्यधाराएँ चलता रहता है ये सोचना भी हमारे जैसे साधारण मस्तिष्क के लिए असंभब प्रतीत होता है। हर किसीकी जीबन नाटिका एक समय सीमा मे ही खत्म हो जाता। किसी के पास कोई मौका ही नहीं रहजाता कोई काम को अपनी मन मुताबिक अंजाम देनेकेलिए। इतिना बड़ा बिस्तृत संसार मे जीब से लेके ब्रम्ह तक हर कोई में फिर रहता बिभेदताएँ। इँहा दो मे कभी भी एक जैसा सादृश्यता देखने को नहीं मिलता ये ही है सबसे बड़ा भ्रांति प्रगट करनेवाला कारण जो अक्सर हर किसी को द्विधा मे डालता। किसी को प्रकृति को अनुध्यान और बिचारसिल तरीके मे बिश्लेसन करके एक उचित कार्य ग्रहण करने मे हमेसा मुसीबत मे डालता।
भौतिक या जैविक संसार का बात हो। संसार का परिबर्तन नियम की तेहत बदलता ही रहता। ये भी सच्च है, किसी के पास ये नियम जैदा तो किसीके पास कम असरदार होता ,परिमाण दृस्टि से ,लेकिन जरूर होता ही है।
जैविक संसार मे ये परिबर्तन का परिमाण सबसे जैदा,कारण जिब प्रबृत्तियाँ। जीबन जिनेकेलिए दरकारी वे सारे आबस्यकताएँ,जिस के बिना जीना नामुम्किन बनजाता। इंसान से लेके इतर प्राणी तक ये हरकोई को पता की जीबन के लिए संघर्ष अनिबार्य है। संघर्ष की मात्रा मे आबस्यकता और सामर्थ्यता की मुताबिक भिनता परिलक्षयित होता, कभी कभी ये संघर्ष मे बिजिगिसा लेआता सठता और असाधु कार्यपंथा जो किसी की जीबन मे लेआता मुसीबतें तो कभी किसीको पहनादेता बिजेता का मुकुट। सफलता का पर्णों मे लिखदेता बिजेता का नाम।
आज इँहा ऐसा एक कहानी। एक बंदर महाआनंद मे इधर उधर घूम रहा है। कभी इस पेड़ तो कभी उस पेड़ मे चढ़ के कहिंपे कोई फल तो कहीँ पे कुछ पत्तें खारहा है। काफी खुशहाल एक जीबन उसका चल रहाहै। घुमतेहुए पहंचजाता उस जामन की पेड़ पे जो एक तालाब की किनारे मे है, जहाँ जामन पक के कभी कबार गिर भी रहा है। हर्ष उल्लास मे जामन व खारहाहै।
इधर तालाब मे तेहरते तेहरते एक मगरमछ आपहंचगेया उस जामन पेड़ की नीचे। देखा ऊपर एक बंदर काफी आनंद मे जामन खारहाहै। बंदर को पूछा क्या खारहेहो। बंदर बोला, देख नहीं पारहेहो क्या ? ये जामन है। हा..... हा...। काफी स्वादिस्ट और मजेदार। बंदर की बात सुन के मगरमछ की उसुक्ता जामन चखने को बढतागेया। बंदर को बोला,जरा मुझे भी कुछ जामन तो ख़िलायाकरो। सुन के ये मेरे मुहँ से पानी निकल रहाहै। इतिने सारे जामन तुम अकेले ही खाजाओगे क्या? कुछ तो मुझ जैसे हतभागा दोस्त को भी ख़िलायाकरो?
मगरमछ की मुहँ से ये निकलाहुआ दोस्त सब्द बंदर को मगरमछ को जामन ख़िलाने के लिए मजबूर बनादिया। व जोर से कुछ डाली को हिलादिया तो खूब सारे जामन मगरमछ की मुहँ मे गिरने से व खानेलगा। महसूस किया वाकई खूब स्वादिस्ट। खूब सारे खानेलगा और मनहि मन सोचनेलगा,जामन तो इतिना स्वादिस्ट है, बंदर का कलेजा कितिना स्वादिस्ट नहीं होगा जो व हमेसा ऐसा ही स्वादिस्ट फल खाताहै। मुझे जैसे भी कियूं न हो,बंदर को खानाही होगा। बड़ा मजा आएगा,बंदर की स्वादिस्ट मांस । हा... हा।
ऐसा ही एक मंद उद्देस्य रखके बंदर को बोला,"आज से में तुम्हे दोस्त ही पुकारूंगा। तुम्हारे जैसे दोस्त फिर में काहाँसे पाऊंगा। मुझे इतिने सारे जो स्वादिस्ट जामन खिलाए हो इसका एहसान कैसे में भुलजाऊँ। मगर अबसोस में एक जल जीब हूँ। जल से दूर रह कहांपाउंगा तुम्हारे साथ। भगबान करे कि हमारे दोस्ती यूँ ही सलामत रहे। तुम हरदिन इँहा आना। हमारे मुलाकात ऐसे ही चलतारहे।
सरल बंदर दोस्ती के नाते हरदिन वही पेड़ पे आता और मगरमछ को ऐसे ही जामन खिलाके चलाजाता। दिनवा दिन संपर्क बढतागेया। परंतु मगरमछ अपनी मनसा को साकार रूप देनेकेलिए ब्यस्त रहता। एक ही बात उसको पीड़ा देरहाथा की कैसे व बंदर की कलेजा को खाएगा। फिर एक बुद्धि सोचनेलगा और अगली दिन जब बंदर के साथ उसका मुलाकात हुआ बोला,"दोस्त,हमारे दोस्ती को बहत दिन होचुकिहे। हम दोनों एक दूसरे को अच्छीतरह से जानते हैं। अब हमारे दोस्ती को और ऐसे ही सीमित रखना कियूं चाहिए?
में ये सोचरहाहुँ की कालहि मेरे घर तुमको लेजाउंगी। बंदर पूछा व कैसे संभब होपाएगा। तुम जलचर जीब और में स्थलचर। पानी मे कैसे तेहरके तुम्हारे घर जापाउंगा। तब मगरमछ बोला कोई चिंता का बात ही नहीं। तुम्हे में मेरे पीठ पे बैठा के लेजाऊँगा। कालहि तैयार होके आजाना।
अगली दिन बहत पहले से जामन पेड़ की नीचे मगरमछ आके बंदर की प्रतिक्षया मे था। बंदर आते ही उसको अपना पीठ पे बैठाके तेहरते तेहरते अपना घर लेआया। अब इधर उधर घुमाया और जब साम ही होनेवाला था, बंदर मगरमछ को तालाब की तीर पे उसे छोड़ने को कहा तो व बोला,"अरे मूर्ख बंदर ,तुम इहाँसे और जाना काहाँ। मुझे तेरा व स्वादिस्ट कलेजा ही खाना है। तू कितिना भोला और बुद्धू हो। तनिक इतिना भी नहीं सोचा कि कैसे खाद्य और खादक के बीच भी दोस्ती बनसक्ता है। अभी तू तैयार हो जा बस कुछ ही देर के बाद ही तुझे मरनाही होगा।"
मगरमछ की ये बात सुन के बंदर तो समझगेया की इस मुसीबत से बचना सायद उसकेलिए नामुम्किन है। फिर भी कुछ तो प्रयास करनाचाहिए। समझ के मगरमछ को बोला,"आखिर तुम मेरा दोस्त हो। तुम्हारा हर इच्छा पूर्णकारना ही मेरा सबसे बड़ा धर्म है। में ये करके रहूंगा ही,लेकिन अबसोस जो तुम्हारेलिए सबसे स्वादिस्ट चीज मेरा कलेजा में वहाँ जामन की पेड़ मे ही भूलके छोड़ आयाहूं। व भी हम को कितिना समय लगेगा वाहाँसे लानेको,चलो चलें जल्दही लेके वापस चले आएंगे। तुम्हे व सबसे अच्छा ही लगेगा।"
बंदर की ये बात सुनके मगरमछ बिना सोचे समझे वेसा ही किया। पीठ पे बैठाकर बंदर को कलेजा लानेको जामन की पेड़ पास जब हुआ कुदके बंदर पेड़पर चढ़गेया और मगरमछ को बोला,"अरे मूर्ख,किसीकी कलेजा कभी क्या सरीर से ओर कहिंपे होता। चल निकलजा इहाँसे। तू दोस्ती के नाम पे एक कलंक है।"
यहाँ से ये एक सिख मिलती है कि अछि इंसान को पहचान के ही दोस्ती करना चाहिए। दूसरा ये की जितिना भी बड़ा मुसीबत कियूं न हो हलकरने के लिए कोइस जरूर करना चाहिए।
धन्यवाद.....
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