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फिर आगे हुआ क्या.....?

फिर आगे हुआ क्या.....?

एक दिन की बात। साम की समय था। एक पुष्करिणी की किनारे पे एक बहत बड़ा बट बृक्षय के ऊपर कुछ बंदर लोग रात्रि जापन कर रहेथे। चांद की रात था तो चांद की प्रतिछवि पुष्करिणी की पानी में झलस रहीथी। कुछ बालक बंदर कौतूहल पूर्ण मन में चांद पकड़ने के लिए उत्सुक बनरहेथे। आकाश की चांद को पानी में देखकर वे सारे काफी हर्षित थे। उन में से एक बंदर बोलरहाथा,"अरे देखो,पुष्करिणी में चांद!आओ इसे पकड़ते हैं।"

चांद को पकड़ने के लिए तरह तरह की उपाय सोचने लगे। उनके समक्ष्य ये एक बड़ा समस्या था कि ,"वे चांद को पकड़ेंगे कैसे ? कोई समझ में नहीं आरहा था।" जब ऐसा ही एक कल्पना जल्पना चल रहाथा एक बंदर अत्यधिक उत्सुक बनते हुए कुछ भी न समझते हुए चांद पकड़ने के लिये पानी में कूद गया मगर  "पानी में चांद होता काहाँ ?" पानी में से चांद एकदम छू .....।

पानी में तेहरते तेहरते व बंदर कहरहा था"अरे,काहाँ गेई व कमबख्त चांद ?" बाकी बंदर ऊपर से ये बोलरहे थे"सायद तेरे कूदने से डर गेया।"फिर व बेचारा करेगा क्या । पेड़ पे जाके बाकी बंदरों के साथ चुपचाप बैठगेया।

कुछ समय बितगेया। पानी फिर से थमिल स्थिति में आगेया तो चांद पानी मे से हँसतेहुए निकलपडा। चांद को देखते ही बंदरों के मन में फिर से चांद पकड़नेवाला एक नई उतसाह निकल आया।

इसबार वे एक अलग किसम की योजना बनानेलगे। जब योजना चलरहाथा सारे बंदर आपस में चुपचुप के बातें कर रहेथे ये सोच के की कहीं ये बात चांद को पता ना लगसके। परिशेष में ये निर्णीत हुआ कि एक के हाथ पकड़ के और एक ऐसे ऐसे करके चुपचाप पानीकी नजदीकी बनके चांद को पकड़ ही लेंगे।

ऐसा एक योजना बना के सुरु करलिये चांद पकड़ने का अभियान। ये सारे बातें एक बूढ़ा बंदर देख रहाथा।

जब बंदरलोग एक के बाद एक हाथ पकड़ पकड़ के आपस मे लटक ही रहेथे पहली बंदर पकड़ने वाला डाली " मड सब्द " करके टुट ही गेया। फिर आगे क्या हुआ.....?

यही से ये एक सिख मिलती है कि परिस्थिति और ब्यक्ति को ना समझते हुए कियेजानेवाले हर कोई काम ब्यर्थ ही होता।

धन्यवाद.....


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