इंसानियत की उपलक्ष्य
दोस्तों,समय सबसे बलवान। समय की स्रोत में सबकुछ बहजाता है सिबा एक सत कर्म। अब की बर्तमान कुछ ही पल में बनजाता अतीत। समय की काल चक्र में भूत काल बहजाता सबकुछ। आदिम युग से लेके अबकी अणु परमाणु युग की बीच कितने सभ्यताएं समय की अंतराल में विलीन हो चुके हैं किसी को कोई पता नहीं। कितने अनगिनत समस्याओं को अबदमन करतेहुए इंसान या मानब समाज इहाँ तक पहंचा है कोई कोई अंत ही नहीं। जैसे भी हो ना कियूं ये कोई एक साधारण बात नहीं। वाकई मानब या मानब समाज के लिए एक गर्ब की बात।
एक बिंश सताब्दि कि धरती की समक्ष्य जो सारे समस्याएं हैं उन में से इंशान में इंशानियत नाम्नी मानविय गुण की कमी सबसे बड़ा एक समस्या बनचुकि है। फिर ये एक समस्या बहत सारे समस्याओं के सूत्रधर प्रतीत होता है। इसीलिए अब इंशान में इंशानियत गुण को विकसित कर के इंशानियत की आधार पर एक आदर्श समाज गठन करना धरती की हर एक नागरिक के जिम्मा है।
आइए आज हम इंशानियत पे आधारित एक कहानी सुनते हैं:
एकदा स्वामी हरीदाश जी ओडिशा की एक रेलवे स्टेशन पर बिश्राम लेरहे थे। बहत सारे लोग स्वामी जी को दर्शन करने के लिए आते रहते थे। वे सारे लोग उनको ढेर सारे प्रश्न भी पूछते रहते थे। स्वामी जी भी एक एक करके सभी के प्रश्नों की उत्तर देरहे थे।
इस बीच तीन दिन बीत चुकी थी। खाने पीनेके लिए स्वामी जी के पास कोई अबसर ही नहीं था। सबसे बड़ा एक अचंबित की बात ये थी कि तीन दिन उपरान्त भी कोई एक भी आदमी स्वामी जी को खाने पिनेको लेकर कोई बात ही नहीं कर रहेथे। तृतीय दीबस पे एक गरीब आदमी आया और स्वामी जी को बोलने लगा,"स्वामी जी,मैं देख रहा हूँ आप तीन दिन से एक घूंट पानी तक पियानहीं। ये बात देख के मुझे बड़ा दुःख आता है।"
सामी जी सोचने लगे,"सायद भगबान ही एक गरीब आदमी की रूप में मेरे पास प्रकटित हुए हैँ। व बोलने लगे,आप दया पुर्बक मुझे कुछ खाना देंगे क्या?" व गरीब आदमी जाती में मोची था तो प्रति उत्तर में बोला"स्वामी जी ,मैं भला आपको कैसे खाना खिला सकूंगा? मैं आपको कुछ चावल और दाल देसकता हूँ जिसे आप पका के भोजन करसकेंगे।" ऐसा एक बात सुनके स्वामी जी व गरीब आदमी को घर से एक तुकुडा रोटी लानेको कहते हैं। गरीब आदमी भी तुरंत ही घर से एक तुकुडा रोटी ले आता और स्वामी जी को देता।स्वामी जी रोटी खारहे थे ठीक उसी वक्त कुछ भद्र लोग वहां आपहंचजाते और बात को देख के ये बोलने लगते,"स्वामी जी एक नीच ब्यक्ति से रोटी लेके नहीं खाना चाहिए था।"
स्वामी जी उनको उत्तर देतेहुए बोलते,"नीच जाती का मतलब क्या है? तीन दिन से तुम सारे लोग मुझे प्रश्न ही कररहे थे कोई एक भी इसी बीच ये नहीं पूछा कि मैं कुछ खाया हूं या नहीं। फिर भी अपनी उच्च जाति को लेके गर्ब करतेहो। ये गरीब आदमी के द्वारा दिखाएगये इंशानियत को क्या तुमलोग नकार सकते हो? दया पुर्बक गरीब आदमी और नीच जाती को सम्मान देना शिखो। इतना ही करने से तुमलोग मां भारती की आदर्श संतान बनके आशिर्बाद लाभ कर पाओगे।
यही से ये एक शिख मिलती है कि जाति या दौलत की बल पर कोई बड़ा आदमी नहीं बनता। उच्च मानविय मूल्यबोध यानी इंशानियत ही किसीको श्रेष्ठ प्रतिपादित करसक्ता है।
धन्यवाद.....
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