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क्या है जीबन में स्वाभिमान का स्थान.....?

क्या है जीबन में स्वाभिमान का स्थान.....?

दोस्तों,ईस्वर की इसी दुनियां में सर्ब श्रेस्ठ है मानब का स्थान। मानब को ये श्रेष्ठता दिलाने में सहयोगी बनते हैं उनमें स्थित वे सारे बुद्धि,ज्यान,स्वाभिमान आदि जैसे ढेर सारे मानविय गुण। प्रतिपादित करने में समर्थ बनाते मानब को उनकी श्रेष्ठता पहनादेते ताज संसार का सर्ब श्रेष्ठ जिब का बढ़ाते एक बाद मानबता। मानब को लेजाते उसी स्तर पर जहां मानब बनता महान से महियान। आज इसी आधार पे एक कहानी:

एक गधा और एक कुत्ता में गहरी दोस्ती था। हमेसा एक साथ रहते,खेलते कूदते,घूमते फिरते। एक दिन वे लोग एक संग कहीं पे जारहे थे घूमने ,रास्ते में जातेहुए एक स्कूल की सामने जब पहंच गए उन्हें  सुनने को ये मिला कि" तेरे से पाठसाठ कुछ नहीँ होगा.....गधा कहीँ का? मास्टर जी कोई एक छात्रा को बोल रहे थे।" ये सारे बात स्पष्ट रूप से कुत्ता और गधा सुन रहेथे। मास्टर जी का ये एक बात गधा को काफी आघात पहंचाया। कुत्ता की समक्ष्य अपनी आप को लज्जित मेहसूस किया और अपना सर नीचे करदिया।

कुछ देर उपरान्त दोनों दोस्त एक साथ ही घर आरहे थे। रास्ते में आने के वक्त उन्हें एक दृष्य देखने को मिला कि"एक कुत्ता एक सफेद कार में बैठा है और उसका मालिक कितने प्यार से उसे बिस्क्यूट ख़िलारहे थे।"ऐसा एक दृष्य देख के कुत्ता का दिल गर्ब से मोटा होगेया था लेकिन गधा को उतना ही दुःखी बनाया था। गधा में नीरस का भाव बढालिया था।"

गधा अपनी आप सर्मिन्दा मेहसूस करते हुए अकेले में हमेसा ये सोच रहा था,"मुझे गधा ना बन के कुत्ता बनना अच्छा था। सचमुच,इंसानों के दुनियां में कुत्तों के कितिना आदर नहीं है? हरकोई उनको कितिना नहीं प्यार जताते? ऐसा फिर कियूं नहीं होगा। वाकई कुत्तों लोग उनसे कई गुना समझदार होते हैं। सारे बातों को उसका दोस्त कितना जल्द ही समझ जाता जो उनसे नहीं होता। ऐसे ही समझते हुए अपनिआप को ही दोष देते जाता और अपना गधा जन्म को बेकार ही मानता था।"

एक दिन वहीं कहीं पे एक सभा का आयोजन हो रहाथा तो कुत्ता अपना दोस्त गधा को पूछता"क्या तुम मेरे साथ वहीं पे भाषण सुनने जाओगे क्या?हाँ..... मैं ये जानता हूँ ,तुम व भाषण को समझ काहाँ पाओगे फिर भी घूम फिर कर तो आपाओगे।" गधा सबकुछ समझ रहाथा कुत्ता का ब्यनगात्मक बातें। मन हि मन बहत दुःखी था मगर उसे ये पताथा की कुत्ता सच ही बोल रहाथा तो व चुपचाप वहां जानेके लिए तुरंत ही तैयार होगेया।
दोनों सभा स्थल पे पहंच के किसी कोने में खड़े रहै। उसी वक्त एक टोपी धारी नेता भाषण मार रहेथे। बहत सारे लोग चुपचाप ध्यान पुर्बक सुनरहे थे। गधा हमेसा कुत्ता को देख रहाथा। कुत्ता की हवा भाव से व ये समझ रहाथा की कुत्ता सबकुछ समझ रहाथा जो गधा कुछ ही नहीं रामझ रहाथा। 

कुछ देर बाद सभाकार्य समाप्त हुआ कुछ लोग नेताजी को घेरगये। कुछ लोग आपस मे बातचीत भी कर रहे थे। उन में से एक लोग बोलरहाथा,"नेता एक गधा है और ये सारे लोग भी गधे है जो जानते हुए भी नेता जी की झूठी बातों को समर्थन और प्रसंसा करते हैं।"

ऐसा एक बात सुनते ही बगल की और एक लोग बोलने लगा" कियूं  वे नेता जी को प्रसंसा नहीं करेंगे उनके फेंकागेया रोटी के टुकड़े से जो वे लोग जीते हैं। यही एक बजह की वे लोग नेता का बात को ठीक भूल ना समझ के कुत्ता जैसे पुंछ हिलाक़े समर्थन करते ही जाते हैं। इसीलिए नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता।"

अब ऐसा एक बात सुन के कुत्ता का मुहूं निच्चे की तरफ हो गेया व समझ गेया की बुद्धि से स्वाभिमान का स्तर बहत बड़ा है।

यही से ये सिख मिलती है कि बुद्धि से स्वाभिमान बडा होता है। जिस के पास स्वाभिमान नहीं होता उनको कोई गुरुत्व नहीं देते या सम्मान नहीं करते।

धन्यवाद.....
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