किस काम के है दोस्ती.....?
बिधु और साधु में दोस्ती है। दोनों एक स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। पढ़ाई में भी कोई किसी से कम नहीं। हमेसा स्कूल परिक्षया में इन दोनों में से एक ही पहला निकलते और कोई एक दूसरा। बाकी सारे बच्चे उनके पीछे हमेसा ही रहते। दोनों के परिबार जन दोनों को पढ़ाई में और अच्छा करने को प्रसवाहित भी करते। ये एक अच्छा बात,होना चाहिये। ये सारे बातों को लेके दोनों में दोस्ती होतेहुए भी पढ़ाई की बारे में कोई भी कभी एक दूसरे को सच्च नहीं बोलते।
बिधु हमेसा साधु को बोलता"क्या करें यार घर में इतिना काम करना पड़ता है कि पढ़ने को समय ही काहाँ मिलता।" साधु भी बिधु को छलनात्मक ढंग से बोल ही देता,"मेरा भी तबियत काहाँ अच्छा रहता दोस्त जो में कुछ पढ़ाई करसकूँ।"
"जैसे जैसे वे लोग ऊपर कक्ष्या में जारहे थे वेसे ही उन के दोस्ती में दरार बढ़ता ही जारहा था। दोनों एक दूसरे के प्रति संदेहात्मक मनोभाव बढ़ाने लगे। बजह, एक दूसरे के प्रति ईर्षा और कुछ नहीं। "अंतर में सारे कूट कपटता रहतेहुए
भी दोस्त लोगों के सामने ऐसे पेस होते हैं कि वे एक ही है।
दिनवा दिन उन के मन में स्थित प्रतियो - गितात्मक मनोबृत्ति में तीब्रता बढनेलगा।
गहराई इतिना था की दोनों को ही पढ़ाई में स्थाणु बनादिया। जब कक्ष्या में परिक्षया हुआ तो बाकी सारे बच्चे उनसे आगे निकलगये। ये एक बात सभी को आश्चर्य चकित बनादिया।
स्कूल की प्रधान आचार्य परिक्षया फल को तर्जमा करने के वक्त ये नजर में आया कि बिधु और साधु एक दूसरे को झूठ ही बोलरहे थे। इसीबारे में प्रधान आचार्य बाकी शिक्षयककों भी नजर देने को परामर्श दिये।
बीधु और साधु एक दूसरे को झूठ ही बोल रहे थे इसे प्रमाणित करने के लिए प्रधान आचार्य ने एक दिन दोनों को अलग अलग समय पे पास बुला के एक ही चीज लाके देने को बोले। दोनों ने प्रधान आचार्य को खुश करने के लिये घर से व चीज लेके आये और अपने पास छिपा के रखनेलगे। उनके मन में स्थित संदेहात्मक मनोबृत्ति उन्हें बेबश कर रहाथा एक दूसरे के चीज को देखने के लिए। वेसा ही हुआ। आखिरकार दोनों ने दोनों के चीज देख ही डाले। बिधु ये समझा कि साधु और मेरा चीज तो एक ही जैसा है तो मुझे मेरा चीज प्रधान आचार्य जी को नहीं देना पड़ेगा और नहीं दिया। साधु भी ठीक वैसा ही समझकर अपना चीज प्रधान आचार्य को नहीं दिया। दोनों ही अपने अपने चीज छिपा के घर लेके चले गये।
अगली दिन प्रधान आचार्य पढ़ाने के लिये उनके कक्ष्या में आये और एक कहानी बखानने लगे जो बिलकूल साधु और बिधु के मनोभाव की ऊपर पर्यबसित था। कहानी की अंत में आचार्य बच्चों को पूछा कि वे लोग उसी कहानी से क्या सीखा। बच्चे लोग अपने अपने तरीके से उत्तर देरहे थे मगर साधु और बिधु बिलकुल चुपचाप बैठ रहे थे। "जब प्रधान आचार्य ब्यक्तिगत तौर पे उनको प्रश्न पुछनेलगे तो वे केबल रोनेलगे। रोते रोते प्रधान आचार्य के समक्ष्य अपना भूल स्वीकारने लगे।" ठीक उसी वक्त बाकी सिक्ष्यक गण बहिं पे पहंचगये जो पहले से ही बगल पे छिप कर रहे थे। वेसा ही प्रधान आचार्य का निर्देश था वे समझाने लगे की "अच्छी काम के लिए दोस्ती है और कुत्रिम दोस्ती घातक साबित होता है।" बिधु और साधु बात को समझगये ,मन मिला के चलनेलगे फिर से पढ़ाई में अच्छा करनेलगे।
यही से ये सिख मिलती है कि छलनात्मक दोस्ती सर्बदा बर्जनीय। दोस्ती हमेसा अच्छी काम के लिए होनी चाहिएI
यही से ये सिख मिलती है कि छलनात्मक दोस्ती सर्बदा बर्जनीय। दोस्ती हमेसा अच्छी काम के लिए होनी चाहिएI
धन्यवाद.....
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें