क्या है जीबन मे आदर्श का मूल्यबोध
हरिकृपा और दयासागर दोनों मे अतरंग दोस्ती। दोनों एक साथ पढ़ाई करते ,खेलते कूदते, घूमने जाते,हर काम एक साथ ही करते। अब वे लोग दसवी कक्ष्या मे पढ़ाई करते हैं। उन मे ढेर सारे सामंजस्यता होतेहुए भी काफि सारे अन्य क्ष्येत्रों मे बहत सारे भिन्नता भी है। हरिकृपा हमेसा पढ़ाई पे ध्यानदेता मगर दयासागर अन्य चीजों मे। कृपासागर एकदम सीधेसादे,सरल,भद्र और मितभाषि किसम का लड़का तो दयासागर थोडासा दुष्ट, अभद्र,कर्कश स्वर मे बोलनेवाले स्वभाव का था। इतिना ही नहीं,दोनों में आदर्शगत भिन्नता भी कम नहीं था। हरिकृपा का आदर्श मानविय उच्च मूल्यबोध पे पर्यबसित था तो दयासागर का आदर्श बिल्कुल उनसे बिपरीत ही था। दोनों अपनी अपनी आदर्श को सही मान के मुताबिक आचरण करतेहुए जीबन जीरहे थे।
तुलनात्मक दृश्टिकोण से देखाजाए तो दयासागर हमेसा झूट बोलता,ठगी करता,आलतू फालतू बातें करता,सारे असभ्य और अभद्र आचरण का एक नेक चरित्र था। जैसे भी हो जीबन मे ढेर सारे धन कमाना और अपनी आपको एक लब्ध प्रतिष्टित घनसाली सेठ बनना उसकी जिबनका सबसे बड़ा लक्ष्य था। व भी अपना मार्ग मे कर्म तत्परता देखातेहए आगे बढतागेया।
समय चलतागेया,वे लोग भी अपना अपना मार्ग के अनुसार हरिकृपा अपना आदर्श और पढ़ाई की आधार पर एक शिक्ष्यक कि नौकरी चुनलिया। इधर दयासाग भी अपना आदर्श प्रोनोदित एक रासन का दुकान प्रारम्भ करडाला। असाधु उपाय अबलम्बन करके देखते ही देखते लाखों रुपैया कामाडाला। तुरंत ही उस छोटा सा दुकान को बड़ा दुकान मे परिणत करके मिलाबटी सूत्र को अपना के ढेर सारे पैसा कमानेलगा। अब उसके पास हर व सुख और सुबिधा की चीजें है। सेहर मे दो दो बड़े बंगले,तीन चार चार चक्र बाहन,अनगिनत नौकर नौकरियां करोड़ संख्या मे बैंक बैलेंस कयाकुछ नहीं। देखते ही आंख फिसल जाएगा। जहां देखो सामान ही सामान। दिनभर दुकान मे पालकी पे बिछायागेया एक फुट मोटाई बिसिस्ट रजाई की ऊपर लेट के नौकरों को आदेश देता था। बगल मे पैसा का बॉक्स और मोबाइल फ़ोन दो आयुध की रूप मे होते थे। हात दोनों को लेकिन फुरसत काहाँ, कभी पैसा बास्क पे तो कभी मोबाइल पे ब्यस्त ही रहता। मुहँ में भी हमेसा अंक गणित का बोली चलता ही रहता। सुबह आठ बजे से लेके रात दस बजेतक यही एक ही काम। एक दिन मे पचास हजार का कमाई। फुरसत ही काहाँ।
सामाजिक स्थिति भी कम नहीं। बड़े बड़े सेठ लोगों के साथ दोस्ती जम चुकी है। बाकी लोगों को व नजर काहाँ करता। सामान्य लोगों से बात करनेपर भी अब हिचकिचा हट रहता। सेहर मे कोई पूजा अनुश्ठान के लिए बड़ा रकम अनुदान देना उनका एक अछि स्वभाव जरूर था मगर मकसद एक ही कि नाम और सेहरद मिलेगा। जैसे भी हो एक दाता की लिस्ट मे नाम दर्ज था। इसीलिए हरकोई उसे सम्मान करते थे। जाहाँ भी जाता जय जयकार छूटता था।
पुराना दोस्त तो ,हरिकृपा जब भी कोई समय पाता,दयासागर को कॉल करता। दोनों मे ढेर सारे बातें होता। बातचीत की अंदर दयासागर हमेसा एक बात हरिकृपा को कहता,"हरिकृपा तुम देखते हो जीबन क्या है? में तुम्हे कितिनिबार नहीं समझाया। ये कलयुग है मेरे भाई । तुम्हारा आदर्शबादी चिन्ताधारा अब किसकाम का चीज। कितिना कमाते हो। मुझे देखो ,मेरे पास अब क्या नहीं है। तुलना करलो तुम को। अब भी समय है दोस्त अपनी आपको बदलडालो। कियूं अपनि आप को और परिबार को तखलिफ़ मे डालते हो। अगर चाहो तो में तुमको जरूर मदत करसक्ता हूँ। हरिकृपा लेकिन,नहीं भाई बोल के नकारदेता। सिर्फ इतिना कहता,में जैसा हुँ ठीक ही हूँ।"
ऐसे ही कुछ दिन बीत जाता है। "अन्याय धन काफी बढ़ता लेकिन जाने की वक्त समूल चलाजाता "इसी नियम अनुसार वेसा ही हुआ। दयासागर का मिलाबटी धंदा पकडागेया और सरकार की तरफ से उस दुकान को बंदकरवा दिआगेया। अब दयासागर का रोजगार बिलकुल ठप बनगेया। भाबते हुए व खानापीना छोडदीया तो बीमारर्ग्रस्त बनगेया । सोच नहीं पारहाथा कि व अब करे क्या। वेसा एक समय आगेयाथा की घरसे निकलने को भी इच्छा नहीं बनरहा था। जो भी देखता,दयासागर को उपहास ही करता। सबकी मुहँ पे एक ही बात,"लो बड़ा सेठ,बड़ा चोर निकला।"तब उनकी पास कोई जबाब ही नहीं।
जब कुछ दिन बाद हरिकृपा को ये बात गोचर हुआ तो व इस मुश्किल घड़ी मे दयासागर को साथ देने के लिए मिलने आया। हरिकृपा को देखते ही दयासागर रोनेलगा। अपना कर्म को अब दोष देते गेया। बोल रहाथा। हरिकृपा,तुम ही सही। देखो अब तुम्हारे पास सबकुछ है। मेरे पास न कोई सांति न प्रतिस्ठा। केबल अपमान ही अपमान। इतिनेदिन बाद मेरे समझ मे ये आया कि कैसा एक जीबन जीना चाहिए।
हरिकृपा को केबल प्रसंसा करतेगेया। हरिकृपा भी ये समझ चुका था की अब दयासागर का कांड ज्यान होचुका है। जीबन का सही मार्ग क्या है जानचुका है तो इतिना ही बोला"अब हमलोग एक आदर्श जीबन जिएंगे" और सांत्वना दे रहाथा।
यही से ये एक सिख मिलती है कि आदतें आचरण तैयार करते और आचरण आदर्श को साकार रूप देने मे मददगार होता। इसीलिए हमेसा सुद्ध आदतों को अपनाके सुध आचरण बनाना एक आदर्शबादी जीबन बितानेका प्रकृत माध्यम ही है।
धन्यवाद.....
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